Wednesday, 6 December 2017

रावण की आत्मकथा:-

रावण की आत्मकथा:- 
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मै रावण हूँ आज आप सब लोग मुझे हर गाँव हर शहर मे जलायेगे ओर सब कहेंगे कि अच्छाई पर बुराई की जीत हुई लेकिन ज़रा सब सोचे ओर चिंतन करे कि क्या वाकई मे मॆ इतना बुरा था जितना कि आज इंसान हो गया हॆ अगर मेरी बहिंन का अपमान लक्षमणद्वारा न किया जाता तो मॆ सीता को क्यो उठा कर लाता फ़िर सीता को लाने के बाद मेने सीता के साथ कोई भी जबरदस्ती नही की न ही उनका अपमान किया मेने तो सिर्फ उनके उत्तर की प्रतिक्षाकी
तीनो लोक मॆ मेरे समान कोई भी बल शाली नही था फ़िर भी मॆ अपनी मर्यादा मॆ ही रहा सीता की पवित्रता पर कोई आँच न आने दी मॆ चाहता तो सीता को अपने महल मॆ जबरदस्ती रख सकता था लेकिन मॆ जानता था कि इससे सीता के चरित्र पर व्यर्थ ही संदेह पेंदा होगा इसलिये मेने सीता को महल से दूर आशोक वाटिका मॆ परिचायको के साथ रखा 


राम को सब मर्यादा पुर्शोतम कहते हॆ लेकिन मेरे पुत्र भाई सम्बन्धी सभी म्रत्यु को प्राप्त हो गये लेकिन मेने कभी इस बात का ले कर उसका बदला सीता से नही लिया मॆ अंत तक अपनी मर्यादा मॆ रहातो बताओ मर्यादापुरर्शोतम मॆ था या राम
मेरे सोने की लंका मॆ कोई गरीब नही था सभी को न्याय मिलता था
मॆ श्रापवश भले ही राक्षस कुल का था मगर मेरी प्रजा सम्पन्न ओर आराम से रहती थी
जब हनुमान ने मेरे पुत्र का वध कर दिया तब भी मेने राज़ धर्म का पालन करते हुऐ सिर्फ पूँछ मॆ अग्नि लगाने की सज़ा दी हाल कि इससे मेरा पूरा नगर जल गया जब अंगद मेरे पास आया तो मेने मित्र का पुत्र होने का उसे पूरा सम्मान दिया स्नेह दिया जब कि मॆ चाह्ता तो उसे बन्दी बना सकता था
मेरे सारे भाई कुम्भकरण सहित मुझसे स्नेह करते थे बस सिर्फ विभीषण ही मेरी भावना को नही समझता था मॆ कहता था कि मेरे राज्य मॆ सिर्फ भगवान शंकर की उपासना होगी या मेरी लेकिन वो विष्णु को भगवान मानता था फ़िर भी मेने उसके साथ कोई अत्याचार नही किया
मॆ जानता था कि विभीषण राम के प्रति सहानभूति रखता हॆ फ़िर भी मेने उसे राम की शरण मॆ जाने दिया क्या भाई को आपनी मातृमूमि को संकट मॆ देखने के बावजूद शत्रु की शरण मॆ जाना क्या धर्म संगत था मॆ चाह्ता तो विभीषण को बन्दी बना सकता था उसे देश द्रोह के आरोप मॆ मृत्यूँ दंड दे सकता था मगर मेने ऐसा नही किया उसे राम के पास जाने दिया क्यो कि मॆ जानता था कि मॆ अब अपने पुत्र सम्बन्धीयों सहितमारा जाऊँगा तो मेरे वंश मॆ कोई तो जीवित रहे मेरा वंश समाप्त न हो तो इसके लिये मेने विभीषण को चुना वो शान्त मॄदु भाषी ओर धार्मिक पृवतिका था मेरे नाभि मॆ अमृत हॆ ये बात सिर्फ विभीषण ही जानता था उसको मेने राम के पास जाने दिया ये मेरी रणनीति थी
कई सदियों से मुझे जलाया जा रहा हॆ जब की मेने इस बात का पश्चाताप भी राम से प्रकट कर दिया था मुझे माफ नही किया किंतु आज कल मुझे जलाने वाले स्वयं क्या कर रहे ?
इस देश मॆ स्त्री के साथ कितना अमानवीय व्यवहार हो रहा हॆ एक दंम्पति और उनके दो मासूम बच्चो को जिन्दा जला दिया, युपी में औरतो को सरे बाजार में नंगा कर पुलिस द्वारा पीटा गया.. क्या ये आप लोगों को दिखाई नही दे रहा हॆ छोटी छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार उन्हे मार देना ओर फ़िर मुझे जलाना क्या न्यायोचित हॆ
या तो अपनी इन परवर्तीयों पर रोक लगाओ या फ़िर मुझे जलाना बंद करो...
मे अपराधी ज़रूर हूँ लेकिन दुराचारी नही हूँ लेकिन आज तो लोग दुराचारी भी हॆ ओर अपराधी भी
मे तो सिर्फ राम का गुनहगार था मगर ये तो सारे समाज के गुनहगार हॆ
मुझे जलाओ मगर मेरे साथ उन गुनहगारो को भी जलाओ नही तो किसी को कोई हक नही हॆ सिर्फ मुझे जलाने का...!
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दशगृीव दशानन् दशकन्धर मैं रावन मैं ही लंकेश्वर

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