सूक्ष्म शरीर (चेतना)
सूक्ष्म शरीर को शुद्ध करने व अपने भावनात्मक स्वास्थ्य हेतु, निम्नलिखित अपनायें -
१. कुछ निष्काम कर्म करें अथवा किसी भावनात्मक संतुष्टि देने वाले सामाजिक या आध्यात्मिक उद्देश्य से जुड़ें।
२. जिससे आप को प्रसन्नता मिले, वह करें। यदि आप को घूमने जाना पसंद है, चित्रकला, भोजन बनाना, पढ़ना अथवा ऐसा कोई भी कार्य करना अच्छा लगता है, वह करें। अवसाद पर लिखे विभिन्न लेख व अन्य लोगों की कहानियाँ न पढ़ें।
३. उन लोगों से बात न करें जो आप को भावनात्मक रूप से शुष्क बना देते हैं। टेलीफोन पर बातचीत व तथ्यहीन वार्तालाप कम कर दें।
४. किसी को भी न बतायें कि आप अवसाद में हैं। अधिकतर लोग यही कहेंगे कि चिंता की कोई बात नहीं है, आप केवल तनाव में हो; और अन्य सब आप के लिए कुछ नहीं कर सकते।
५. और तो और, चिकित्सक भी, जब आप उनके पास कुछ एक बार जा चुके हो फिर भी अवसाद की शिकायत करते रहो, तो आप को अवसाद का शिकार घोषित कर के आप को किसी बेतुके दवाओं के नुस्खे पर डाल देंगे। मैं तो यह कहूँगा कि हो न हो यह अवसाद दवा बनाने वाली कंपनियों द्वारा बनाया गया एक षड्यंत्र मात्र है, जो उनके लिए लाभदायक है।
अवसाद भय का एक रूप नहीं है जिसे समाप्त करने के लिए आप को उसका सामना करना ही होगा। यह मन की एक अवस्था मात्र है, यद्यपि इच्छित अवस्था नहीं। जिस तरह आप आइसक्रीम के विषय में सोचें तो सही परंतु वह लें न, ठीक उसी प्रकार आप अवसाद को भी भगा सकते हैं। यह असंभव है कि आप यह जानें या अनुभव करें कि आप को अवसाद है, यदि आप इस के होने के विचार को वास्तव में मन में जगह न दें।
कारण शरीर (आत्मा)
प्रतिदिन अपने समय में से कम से कम ३० मिनिट निम्नलिखित करने में दें व देखें कि कैसे देखते ही देखते अवसाद चमत्कारिक रूप से गायब हो जाता है -
१. सुबह १५ मिनिट ध्यान में बैठें व १५ मिनिट सोने से पूर्व। अधिक समय तक बैठना और अधिक अच्छा होगा। इस से पहले कि आप ध्यान कर पायें, आप को एकाग्रता बनानी होगी। ऐसा करने के लिए एक मोमबत्ती जलायें, इसे अपनी आँखों के स्तर पर अपने से लगभग दो फुट की दूरी पर रखें व बिना पलकें झपकाए इसे देखें। पलकों को झपकने से रोकने में कुछ मेहनत लगेगी किंतु जितनी देर आराम से हो सके यह करें। यह त्राटक द्वारा एकाग्रता सिद्ध करने की उस मानक विधि से थोड़ा भिन्न है जिसमें आँखों को बिल्कुल भी झपकाया नहीं जाता।
२. अपने मन को सांसारिक विचारों से हटाने के लिए कोई भजन अथवा सुखद प्रतीत होने वाला संगीत सुनें।
३. जितना संभव हो अपनी दाईं करवट सोया करें। यह इडा नाड़ी व बाईं नासिका का संचालन तीव्र करता है व शरीर के तापमान को नीचे लाता है। इस के पीछे एक कारण है कि क्यों ध्यान की विधियाँ सर्द स्थानों पर फलती फूलती हैं। सर्दी में, व बाईं नासिका से श्वास लेने से मन की विभेदकारी क्षमता उल्लेखनीय रूप से शांत हो जाती है।
४. सदैव प्रसन्न मुद्रा बनाए रखने का प्रयास करें। यह जान लें कि आप ईश्वर के हाथ की कठपुतली हैं और वह आप का सदैव ध्यान रख रहे हैं। जो कोई भी उनकी शरणागति की आस लगाता है, वह निश्चित ही ईश्वर का कृपापात्र बन जाता है। इस विषय में संशय को मन में बिल्कुल भी स्थान न दें।
५. और सदैव मुस्कुरायें! प्रयास करें। उस मुस्कान को चेहरे से हटने न दें।
ध्यान पाँचों ऊर्जाओं को व्यवस्थित करता है व पाँचों कोषों का भेदन करता है।
इसे और साधारण तरह से कहा जाए तो आप तीन शरीर, पाँच कोष व पाँच ऊर्जाओं के सिवा और कुछ नहीं हैं। यदि आप तीन पहलुओं पर काम करते हैं – शरीर, अंतःकरण व आत्मा – तो आप २८ दिन के भीतर ठोस परिणाम देखेंगे।
इसे लगातार ४० दिन करना ऊर्जाओं को संतुलित करता है। अधिकतर योगिक क्रियायें अपना संपूर्ण प्रभाव दिखाने में ६ मास का समय लेती हैं। अतः इसे ६ महीने लगातार करना आप का अवसाद पूरी तरह दूर कर देगा, इस के साथ साथ आप के अंतःकरण की अवस्था एवं आप के चक्रों के घुमाव को रूपांतरित कर देगा। आप पूरी तरह से ठीक हो जायेंगे। छः महीने। कोई दवा नहीं।
जैसा कि चैतन्य शिवांशने कहा है ‘कार्य अभी बहुत बाकी है…समय बीतता जा रहा है …’ मैं इस विषय पर और बहुत कुछ लिखना व बाँटना चाहता हूँ, परंतु यह लेख पहले ही भयंकर रूप से लंबा हो चुका है। मैं आशा करता हूँ कि आप प्रयत्न करेंगे व उपरोक्त बातों को अपना कर बेहतर महसूस करेंगे।
ईश्वर करे कि सभी सचेतन प्राणी आनंद का अनुभव करें एवं रोग, निर्धनता व भूख से मुक्त जीवन व्यतीत करें।
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