Saturday 16 December 2017

सूक्ष्म शरीर (चेतना)

सूक्ष्म शरीर (चेतना)
सरल शब्दों में कहें तो आप की चेतन अवस्था का ही दूसरा नाम सूक्ष्म शरीर है। किसी भी एक समय में आप की चेतना इन पाँचों में से किसी भी एक अवस्था में हो सकती है – चैतन्य, उपचैतन्य, अनाचैतन्य, अचैतन्य और पराचैतन्य। इस के साथ साथ आप स्वप्न, जागृत, सुषुप्त अथवा तुरीय – किसी भी अवस्था में हो सकते हैं। एक बार फिर, लेख को संक्षिप्त रखने कि दृष्टि से, मैं इस शब्दावली की व्याख्या फिर कभी करूँगा। अभी के लिया मैं चाहता हूँ कि आप इन शब्दों से परिचित हों ताकि आप एक व्यापक दृष्टिकोण रख पाएँ। यही वह स्थान है जहाँ आप की सभी भावनाएँ रहती हैं, वह है सूक्ष्म शरीर। शरीर की सभी स्वाभाविक क्रियाएं जैसे ह्रदय की धड़कन, नाड़ी-चालन, रक्तचाप आदि पर सूक्ष्म शरीर का प्रभाव होता है। सूक्ष्म शरीर पर नियंत्रण आप को शरीर की सभी स्वाभाविक क्रियाओं पर नियंत्रण करवा सकता है। मैं यह तथ्य अपने स्वयं के अनुभव से कह रहा हूँ जिसे मैं प्रयोगशाला की व्यवस्था के अंतर्गत प्रमाणित कर सकता हूँ।
कारण शरीर (जीवात्मा)
आप की जीवात्मा पर ही आप के भौतिक अस्तित्व व चेतन अवस्था का सीधा उत्तरदायित्व है। बहुत से योगिक ग्रंथ प्रतिपादित करते हैं कि मृत्योपरांत जीवात्मा एक शरीर से दूसरे शरीर की ओर प्रस्थान करती है, बिल्कुल उसी प्रकार जिस प्रकार हम मैले वस्त्र त्याग कर नये धारण करते हैं। परंतु बात यहीं समाप्त नहीं होती; जीवात्मा अकेले ही यात्रा नहीं करती है। चित्तवृत्तियाँ भी इस के साथ ही जाती हैं। वह चित्तवृत्तियाँ जो शब्द, स्पर्श, रस, रूप, व गंध का आस्वादन कान, त्वचा, जिह्वा, नेत्र व नासिका के माध्यम से करते हुए – बाह्य जगत का अनुभव करते समय बलशाली हो चुकी हैं। एक तरह से कारण शरीर आप का असली स्वभाव है। यह आप की निर्मल आत्मा है, आप के मन की सहज अवस्था है। परंतु जिस प्रकार जंग लगा लोहा विद्युत का प्रतिरोधक होता है, ठीक उसी प्रकार प्रतिबंधित-आत्मा आनंद की प्रतिरोधक है। मन की सभी वृत्तियाँ आप के कारण शरीर में विद्यमान रहती हैं।
रोग का जीवन चक्र
सामान्यत: सभी शारीरिक रोग लक्षण मात्र होते हैं, न कि कारण। वे उस प्रतिबंधित चेतना के लक्षण हैं जो अब प्रदूषित है। जब सूक्ष्म शरीर तनाव में होगा तब रोग के चिन्ह भौतिक शरीर पर प्रकट होंगे। पर उपचार व चिकित्सा द्वारा भौतिक शरीर के कुछ रोगों का नियंत्रण संभव है, किंतु संपूर्ण आरोग्यता तभी आती है जब सूक्ष्म शरीर से मूल कारण जड़ से समाप्त कर दिया जाता है। एक ऐसे कैंसर के रोगी के विषय में सोचें जिसके पेट के ट्यूमर का ऑपरेशन हुआ हो। उसका ट्यूमर चाहे किसी भी प्रकार का हो, यदि वह अपनी जीवनशैली में परिवर्तन नहीं लाता, जो उसके भौतिक शरीर पर सीधा प्रभाव डालती है, और जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को नहीं बदलता – जो उसके सूक्ष्म शरीर पर सीधा प्रभाव डालता है, तो उसके ट्यूमर के फिर से उत्पन्न होने की संभावना बन जाती है। यदि वह अपने कारण शरीर से संबंध स्थापित कर पाता है – ध्यान के द्वारा या फिर गहन समर्पण के महाभाव द्वारा – तो वह रोग को अपने तंत्र में से बाहर निकाल फेंक सकता है, वह भी सदैव के लिए।
कुछ रोग भौतिक शरीर में उत्पन्न होते हैं व सूक्ष्म शरीर (अंतःकरण) से गुज़रते हुए कारण शरीर (आत्मा) को प्रभावित करते हैं। ऐसे रोग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इनको ठीक करना कुछ सहज व शीघ्र होता है, उनके मुकाबले जिनका कारण होता है एक रुग्ण कारण शरीर। ऐसे रोग जो विकृत मानसिकता के कारण सीधे सूक्ष्म शरीर में होते हैं, वे भौतिक शरीर की स्थाई व्याधियाँ बन जाते हैं। एक भावनात्मक असंतुलन व उससे पनपा रुग्ण सूक्ष्म शरीर – यही सभी चिरकालिक रोगों का मूल कारण होता है। कारण शरीर से उत्पन्न रोगों का निवारण सबसे अधिक समय लेता है, और प्रायः ये भौतिक शरीर को उसकी अंतिम अवस्था तक पहुँचा देते हैं।
आप की प्रतिबंधित आत्मा की अवस्था का आप के अंतःकरण (चेतना) पर सीधा प्रभाव पड़ता है जो परिणामस्वरूप आप के भौतिक शरीर पर असर करता है। जो व्यक्ति एक तनावरहित जीवन जीते हैं वे अक्सर स्वस्थ शरीर के साथ लंबी अवधि तक जीने का आनंद लेते हैं। भौतिक शरीर की क्रियाएँ अंतःकरण एवं आत्मा की अवस्था से प्रभावित होती हैं। उदाहरणस्वरूप, जो रोगी दवाओं की बेहोशी के प्रभाव में होता है वह हिल भी नहीं सकता क्योंकि उसका अंतःकरण (सूक्ष्म शरीर) मूर्च्छा के प्रभाव में है। और अन्य कोई जिसे मृत घोषित कर दिया गया है, अर्थात वह आत्मरहित है, वह कभी भी अपनी चेतन अवस्था में लौट नहीं पाता, कभी भी शरीर को हिला नहीं पाता।
अवसाद के कारण
एक प्रासंगिक प्रश्न – अवसाद किस कारण से होता है? अवसाद मन की एक स्थिति है। यह कारण शरीर में उत्पन्न होता है। मन अपनी ही अव्यक्त मनोवृत्तियों का शिकार बन गया है। यह अपनी इच्छाओं को दबाने या एक अतृप्त जीवन के कारण हो सकता है, यह दोनों ही अंतःकरण में व्याप्त अज्ञानवश होते है। बहुत से लोग एक अतृप्त जीवन जीते हैं; कुछ अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना करना बेहतर समझते हैं जबकि अन्य कई इसे सांसारिक क्रिया-कलापों में डुबो देते हैं। परंतु एक दिन यह बाहर आ ही जाती है।
रुग्ण कारण शरीर के लिए कोई बाह्य औषधि नहीं हो सकती। अवसाद का उपचार जानने से पूर्व यह महत्वपूर्ण है कि अवसाद के प्रकार जान लिए जाएँ।
गंभीर अवसाद
यदि अवसाद के कारण आप का शरीर अस्वस्थ है व आप को उच्च रक्तचाप, भूख न लगना अथवा अनियमित रूप से भूख लगना आदि इसी प्रकार की अन्य समस्याएं उत्पन्न हो चुकी हैं तो आप का अवसाद आप के भौतिक शरीर तक पहुँच चुका है। हो सकता है आप कब्ज से भी पीड़ित हों। आप के अवसाद को ‘गंभीर’ तभी कहा जाएगा यदि उपरोक्त शारीरिक लक्षणों के साथ आप में ‘हल्का अवसाद’ व ‘अवास्तविक अवसाद’ के भी सभी चिन्ह उपस्थित हों। आप इस स्थिति में तनावपूर्ण जीवनशैली व भावनात्मक उठापटक के कारण हैं, व आप की आत्मा एक लंबी भुखमरी से गुज़री है; बस जैसे तैसे अपने को इस आध्यात्मिक अकाल में जीवित रखे हुए। इस का यह अर्थ कदापि नहीं है कि आप का अवसाद ठीक नहीं हो सकता। यह केवल इस बात का संकेत है कि आप को सभी तीनों स्तरों पर कार्य करना होगा। नीचे ‘उपचार’ खंड के अंतर्गत मैं इसे कुछ विस्तार से वर्णित करूँगा।
हल्का अवसाद
यदि आप का शरीर ठीक है किंतु आप जिन वस्तुओं का पहले आनंद लेते थे, अब अधिकतर पसंद नहीं आतीं, और आप अपने को अनिश्चित व उदासीन सा पाते हैं तो संभव है कि आप का अवसाद सूक्ष्म शरीर तक बढ़ गया है, परंतु अभी आप के शरीर को नहीं छू पाया। यह अभी अंतःकरण के स्तर पर ही है। इस को अनुशासन व प्रयास द्वारा ठीक किया जा सकता है।
काल्पनिक अवसाद
यदि आप के अवसाद के संकेत अत्याधिक ऊब जाना, आलस्य, उदासीनता, भावशून्यता , अनिद्रा, दुर्भीति व बेचैनी तक सीमित हैं, तो आप का अवसाद अभी प्रारंभिक स्तर पर है। आप अब भी स्वस्थ (हरे) निशान में हैं व एक अल्पावधि में ही अपना मौलिक मानसिक स्वस्थता फिर से पा सकते हैं।
अवसाद का उपचार
उपचार को असरदार बनाने के लिए आप का मेरे उपरोक्त शोध से तारतम्य रखना आवश्यक है। उपर लिखे भाग को पढ़ने के उपरांत यदि आप उससे सहमत हों तो आगे पढ़ें।
असली उपचार पर पहुँचने से पूर्व कृपया समझ लें कि आप का अवसाद केवल एक दिन के कृत्यों का परिणाम नहीं है, अतः रातों रात ठीक भी नहीं किया जा सकता। आप इस बात से उदास न हों कि आप शीघ्र अपने अवसाद से छुटकारा नहीं पा रहे। कृपया धैर्य रखें। आप निश्चित रूप से इस से उतनी ही आसानी से बाहर आ सकते हैं जिस आसानी से आप अवसाद की स्थिति में पहुँचे थे। किंतु इसे लेकर धैर्य बनाए रखें व शांत रहें। यह जान लें कि यह आप का मन ही है जो खेल खेल रहा है और यदि आप इसे रंगे हाथों पकड़ पायें तो यह रुक जाएगा।
अब उपचार की ओर चलते हैं –
यदि आप इस समय अवसाद से निकलने की दवा का सेवन नहीं कर रहे तो आधा कार्य तो हो ही गया। कृपया ऐसी गोलियाँ लेना आरंभ न करें। ये निद्राजनक पदार्थ हैं जिनकी रचना आप के मस्तिष्क को नकली शांति प्रदान करने के लिए हुई है जिससे आभास हो कि आप का मन शांत है। धीरे धीरे इनकी मात्रा बढ़ानी पड़ती है क्योंकि आप का मस्तिष्क इनका आदी हो जाता है।
न केवल अवसाद से पूर्ण रूप से छुटकारा पाने हेतु वरन पहले से अधिक स्वस्थ महसूस करने के लिए आप को तीनों स्तरों पर कार्य करना होगा – शरीर, अंतःकरण एवं आत्मा।
स्थूल शरीर (भौतिक)
अपने शरीर का स्वास्थ्य पुनः पाने के लिए निम्नलिखित, अथवा इसमें से कुछ सूत्र अपनायें -
१. अपने शरीर को थोड़ा थकाएं। जाएँ व जिम में व्यायाम करें या कोई खेल खेलें।
२. वह शाकाहारी पदार्थ खायें जो क्षारीय प्रवृत्ति के होते हैं। अम्लीय प्रवृत्ति के भोजन से परहेज करें। संपूर्ण आहार की मात्रा बढ़ायें। मिर्च मसालेदार व शुष्क पदार्थ न लें।
३. प्रतिदिन केवल एक नियत समय पर ही खायें। दो भोजन काल के मध्य अधिक दूरी न रखें। इस से शरीर अपने अंदर एकत्रित ऊर्जा का उपयोग करने के लिए उत्तेजित होता है जिससे इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाती है।
४. प्रतिदिन एक नियत समय पर ही सोने जायें। नींद न आ पाने को तनाव का कारण न बनायें। अनुशासन समझ कर ही इस का पालन करें।
५. प्रत्येक दिन सुबह नियत समय पर ही उठें।
६. टी. वी. से दूर रहें। यह शरीर व मन को सुस्त करता है।


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