प्रश्न- पहले गुरु बना लिया, पर अब उनमेँ श्रद्धा नहीँ रही तो उनका त्याग करने से पाप तो नहीँ लगेगा ?
उत्तर- जब आपके मन मेँ गुरु को छोड़ने की इच्छा हो गयी, उनसे श्रद्धा हट गयी तो गुरु का त्याग हो ही गया । इसलिए उस गुरु की निन्दा भी मत करो I
उत्तर- जब आपके मन मेँ गुरु को छोड़ने की इच्छा हो गयी, उनसे श्रद्धा हट गयी तो गुरु का त्याग हो ही गया । इसलिए उस गुरु की निन्दा भी मत करो I
प्रश्न- 'गुरु कीजै जान के, पानी पीजै छान के' तो गुरु को जानने का उपाय क्या है? गुरु की परीक्षा कैसे करेँ ?
उत्तर- गुरु की परीक्षा आप नहीँ कर सकते, अगर आप गुरुकी परीक्षा कर सकेँ तो आप गुरु के भी गुरु हो गये, जो गुरुकी परीक्षा कर सके, वह क्या गुरु से छोटा होगा ?
परीक्षा करनेवाला तो बड़ा होता है ।
वास्तव मेँ परीक्षा गुरु की नहीँ होती, प्रत्युत अपनी होती है।
तात्पर्य है कि हम गुरु की परीक्षा तो नहीँ कर सकते, पर अपनी परीक्षा कर सकते हैँ कि उनका संग करने से हमारे भावोँ पर क्या असर पड़ा ?
हमारे आचरणोँ पर क्या असर पड़ा ?
हमारे जीवन पर क्या असर पड़ा ?
हमारे राग-द्वेष, काम-क्रोध कितने कम हुए ?
उत्तर- गुरु की परीक्षा आप नहीँ कर सकते, अगर आप गुरुकी परीक्षा कर सकेँ तो आप गुरु के भी गुरु हो गये, जो गुरुकी परीक्षा कर सके, वह क्या गुरु से छोटा होगा ?
परीक्षा करनेवाला तो बड़ा होता है ।
वास्तव मेँ परीक्षा गुरु की नहीँ होती, प्रत्युत अपनी होती है।
तात्पर्य है कि हम गुरु की परीक्षा तो नहीँ कर सकते, पर अपनी परीक्षा कर सकते हैँ कि उनका संग करने से हमारे भावोँ पर क्या असर पड़ा ?
हमारे आचरणोँ पर क्या असर पड़ा ?
हमारे जीवन पर क्या असर पड़ा ?
हमारे राग-द्वेष, काम-क्रोध कितने कम हुए ?
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