तांत्रिक साधनाओ या तांत्रिक पद्धति से साधना का महत्व।
तंत्र!
अलौकिक शक्तियों से युक्त तथा सार्वभौमिक ज्ञान से सम्बद्ध, एक प्रकार विद्या प्राप्ति की पद्धति हैं, जो महान ज्ञान का भंडार हैं। आदि काल से ही समस्त हिन्दू शास्त्र! महान ज्ञान तथा दर्शन का भंडार रहा हैं तथा पांडुलिपि के रूप में लिपि-बद्ध हैं एवं स्वतंत्र ज्ञान के श्रोत हैं। बहुत से ग्रंथों की पाण्डुलिपि प्रायः लुप्त हो चुकी हैं या जीर्ण अवस्था में हैं। बहुत से ग्रंथों में कुछ ऐसे ग्रंथों का नाम प्राप्त होता हैं, जो आज लुप्त हो चुके हैं।
तंत्र का शाब्दिक अर्थ।
तंत्र का शाब्दिक अर्थ।
तंत्र का सर्वप्रथम अर्थ ऋग्-वेद से प्राप्त होता हैं, जिसके अनुसार यह एक ऐसा करघा हैं जो ज्ञान को बढ़ता हैं। जिसके अंतर्गत, भिन्न-भिन्न प्रकार से ज्ञान प्राप्त कर, बुद्धि तथा शक्ति दोनों को बढ़ाया जाता हैं। तंत्र के सिद्धांत आध्यात्मिक साधनाओं, रीति-रिवाजों के पालन, भैषज्य विज्ञान, अलौकिक तथा पारलौकिक शक्तिओं की प्राप्ति हेतु, काल जादू-इंद्र जाल, अपने विभिन्न कामनाओं के पूर्ति हेतु, योग द्वारा निरोग रहने, ब्रह्मत्व या मोक्ष प्राप्ति हेतु, वनस्पति विज्ञान, सौर्य-मण्डल, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष विज्ञान, शारीरिक संरचना विज्ञान इत्यादि से सम्बद्ध हैं या कहे तो ये सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्ति का भंडार हैं। हिन्दू धर्मों के अनुसार हजारों तंत्र ग्रन्थ हैं, परन्तु काल के दुष्प्रभाव के परिणामस्वरूप कुछ ग्रन्थ लुप्त हो गए हैं। तंत्र का एक अंधकार युक्त भाग भी हैं, जिसके अनुसार हानि से संबंधित क्रियाओं का प्रतिपादन होता हैं। परन्तु यह संपूर्ण रूप से साधक के ऊपर ही निर्भर हैं की वह तंत्र पद्धति से प्राप्त ज्ञान का किस प्रकार से उपयोग करता हैं।
कामिका तंत्र के अनुसार, तंत्र शब्द दो शब्दों के मेल से बना हैं पहला 'तन' तथा दूसरा 'त्र'। 'तन' शब्द बड़े पैमाने पर प्रचुर मात्रा में गहरे ज्ञान से हैं तथा 'त्र' शब्द का अर्थ सत्य से हैं। अर्थात प्रचुर मात्र में वह ज्ञान जिसका सम्बन्ध सत्य से है! वही तंत्र हैं। तंत्र संप्रदाय अनुसार वर्गीकृत हैं, भगवान विष्णु के अनुयायी! जो वैष्णव कहलाते हैं, इनका सम्बन्ध 'संहिताओं' से हैं तथा शैव तथा शक्ति के अनुयायी! जिन्हें शैव या शक्ति संप्रदाय के नाम से जाना जाता हैं, इनका सम्बन्ध क्रमशः आगम तथा तंत्र से हैं। आगम तथा तंत्र शास्त्र, भगवान शिव तथा पार्वती के परस्पर वार्तालाप से अस्तित्व में आये हैं तथा इनके गणो द्वारा लिपि-बद्ध किये गए हैं। ब्रह्मा जी से सम्बंधित तंत्रों को 'वैखानख' कहा जाता हैं।
तंत्र के प्रमुख विचार तथा विभाजन।
तंत्रो के अंतर्गत चार प्रकार के विचारों या उपयोगों को सम्मिलित किया गया हैं।
१. ज्ञान, तंत्र ज्ञान के अपार भंडार हैं।
२. योग, अपने स्थूल शारीरिक संरचना को स्वस्थ रखने हेतु।
३. क्रिया, भिन्न-भिन्न स्वरूप तथा गुणों वाले देवी-देवताओं से सम्बंधित पूजा विधान।
४. चर्या, व्रत तथा उत्सवों में किये जाने वाले कृत्यों का वर्णन।
१. ज्ञान, तंत्र ज्ञान के अपार भंडार हैं।
२. योग, अपने स्थूल शारीरिक संरचना को स्वस्थ रखने हेतु।
३. क्रिया, भिन्न-भिन्न स्वरूप तथा गुणों वाले देवी-देवताओं से सम्बंधित पूजा विधान।
४. चर्या, व्रत तथा उत्सवों में किये जाने वाले कृत्यों का वर्णन।
इनके अतिरिक्त दार्शनिक दृष्टि से तंत्र तीन भागों में विभाजित हैं १. द्वैत २. अद्वैत तथा ३. द्वैता-द्वैत।
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