Friday, 15 December 2017

जिस प्रकार मनुष्य चेतना और पदार्थ सम्पदा का समन्वित पिण्ड है।

जिस प्रकार मनुष्य चेतना और पदार्थ सम्पदा का समन्वित पिण्ड है। ठीक उसी प्रकार यह ब्रह्माण्ड भी विराट् पुरुष का सुविस्तृत शरीर है। उसमें भी स्तर के अनुरूप असीम पदार्थ और अनन्त चेतन भरा पड़ा है। दोनों की मिली भगत से यह सृष्टि व्यवस्था चल रही है। उत्पादन, परिपोषण और परिवर्तन की त्रिविधि कार्य पद्धति अपनाये हुए सृष्टा का यह स्थूल शरीर पदार्थ समुच्चय अपने हिस्से का काम पूरा करने में निरत है। सृष्टा का सूक्ष्म शरीर वह है जिसमें स्थूल जगत की प्रत्यक्ष घटनाओं के लिए उत्तरदायी अदृश्य क्रिया प्रक्रिया बनती बिगड़ती रहती है। उसे परोक्ष वातावरण भी कह सकते हैं। इसी के अनुरूप संसार की अनेकानेक परिस्थितियाँ बनती और घटनाएँ घटित होती रहती हैं। सूक्ष्म जगत में भूत और भविष्य के सभी प्रवाह विद्यमान हैं जिन्हें समझ सकने पर इस अविज्ञात की जानकारी मिल सकती है कि भूतकाल में क्या घटित हुआ था और भविष्य में क्या होने जा रहा है?
वर्षा, आँधी, तूफान, हिमपात, मौसम आदि की पूर्व जानकारी लक्षणों को देखते हुए अनुमान की पकड़ में आ जाती है। इसी प्रकार अदृश्य जगत में चल रही सचेतन हलचलों को देखते हुए भविष्य की सम्भावनाओं का, भूतकाल की घटनाओं का और वर्तमान की परिस्थितियों का पूर्वाभास प्राप्त किया जा सकता है। सामान्यतः मनुष्य की समझ अपने क्रिया-कलाप का निर्धारण करने में ही काम आती है। उसे परिस्थितियों की पृष्ठभूमि तथा सम्भावना के सम्बन्ध में कोई बात अलग से जानकारी नहीं होती। सूक्ष्म जगत से संपर्क साध सकना यदि सम्भव हो सके तो अन्धेरी गलियों में भटकते रहने की अपेक्षा सुनिश्चित प्रकाश का अवलम्बन मिल सकता है। यह स्थिति जिन्हें भी प्राप्त होगी वे सम्भावनाओं को समझते हुए स्वयं उपयुक्त कदम उठावेंगे और दूसरों को अवसर के अनुरूप सतर्क रहने का मार्ग दर्शन करेंगे।
अदृश्य जगत अपने आपका एक परिपूर्ण संस्कार है। मनुष्यों की अपनी दुनिया, समाज व्यवस्था, रीति-नीति एवं जीवनचर्या है। इसी प्रकार जलचरों की, कृमि कीटकों की, वन्य पशुओं की, पक्षियों की, धूलि में पाये जाने वाले जीवाणुओं की, वायरस बैक्टीरियाओं की अपनी-अपनी दुनिया है। उनकी समस्याएँ, सुविधाएं, आवश्यकताएँ, कठिनाइयाँ, इच्छाएँ, मनुष्यों की दुनिया में सर्वथा भिन्न ही समझी जा सकती है। पड़ौस में रहते हुए भी यह अनोखे संसार एक दूसरे की परिस्थितियों से प्रायः अपरिचित ही रहते हैं। पालतू पशुओं, पक्षियों और मनुष्यों के बीच उदर पोषण जितना ही सम्बन्ध रहता है शेष का तो किसी से किसी प्रकार का आदान-प्रदान भी नहीं चलता और न कोई एक दूसरे के लिए विशेष सहयोगी ही सिद्ध होता है।
ठीक इसी प्रकार अदृश्य लोक में सूक्ष्म जीवधारियों की एक अनोखी दुनिया है। शरीर छोड़ने के उपरान्त नया जन्म मिलने की स्थिति आने तक मनुष्यों को इसी क्षेत्र में रहना पड़ता है। भूत प्रेतों की, देवी देवताओं की-लोक-लोकांतरों की-स्वर्ग नरक की चर्चा प्रायः होती ही रहती है। ऐसे प्रमाण उदाहरण आये दिन मिलते रहते हैं जिनसे दिवंगत आत्माओं से सूक्ष्म शरीर धारण किये हुए दिन गुजारने और यदा-कदा मनुष्यों के साथ सहयोग या विग्रह करने की जानकारियां मिलती हैं। मनुष्यों की तरह ही उनकी भी एक दुनिया है। चूँकि वे सभी मनुष्य शरीर को छोड़कर ही उस क्षेत्र में पहुँचे हैं इसलिए स्वभावतः इस संसार के साथ संपर्क साधने की इच्छा होती होगी। कठिनाई एक ही है कि जीवित या दिवंगत आत्माओं में से किसी को भी यह अनुभव नहीं है कि पारस्परिक संपर्क साधना और आदान-प्रदान का सिलसिला चलाना किस प्रकार सम्भव हो सकता है। प्रयत्न में सफलता न मिलने पर कई प्रेतात्माएँ अनगढ़ उपाय करती हैं मूलतः मनुष्य इस अनुभूति से भयभीत एवं आतंकित होते हैं। जब कि उनमें से कितने ही प्रियजनों के साथ स्नेह, सौजन्य एवं सहयोग का सिलसिला चल सकता है। एक देश दूसरे देश की- एक समाज दूसरे समाज की- एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के स्नेह सहयोग में बँध जाने पर उपयोगी परिणाम उपलब्ध करते हैं फिर कोई कारण नहीं कि कुछ समय पूर्व के अपने ही जैसे मनुष्यों की इसलिए उपेक्षा करे कि शरीर खो बैठे और सूक्ष्म शरीर में- अन्तरिक्ष में निवास कर रहे हैं। आत्मिकी में वह सामर्थ्य है कि वह इन दोनों लोगों के बीच भावनात्मक एवं क्रियात्मक सहयोग का द्वार खोल सके।




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