Wednesday, 13 December 2017

मनुष्य स्वयं अपना शिक्षक है।

मनुष्य स्वयं अपना शिक्षक है। वृक्ष स्वयं बढ़ता है। तुम केवल घेरा बनाकर चौपायों से उसकी सुरक्षा कर सकते हो। मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति का रूप भी ऐसा ही है। तुम्हारी उन्नति भी तुम्हारे भीतर से होगी।
संसार में सहस्रों प्रकार के मन व सँस्कार के लोग वर्तमान हैं -- उन सबका सम्पूर्ण वर्गीकरण असम्भव है; परन्तु चार श्रेणियां बनाई जा सकती हैं:---
प्रथम कर्मठ व्यक्ति…जो कर्मेच्छु हैं। उनके स्नायुओं व मांसपेशियों में विपुुल शक्ति है। उनका उद्देश्य है काम करना; अस्पताल तैयार करना; सत्कार्य करना; रास्ता बनाना; कार्यप्रणाली स्थिर करके संघबद्ध होना।

द्वितीय हैं भावुक
जो उद्दात्त और सुन्दर को अंत:करण से प्रेम करता है। वह प्रकृति के मनोरम दृश्यों का उपभोग करने के लिए सौन्दर्य का चिन्तन करते हुए भगवान की प्रेममय उपासना करते हुए भक्तिमार्ग अपनाता है। ईसामसीह या बुद्ध यथार्थ में थे या नही? या ईसा ने प्रथम शालोपदेश कब दिया थी ? अथवा कृष्ण ने कौन सी तारीख मे जन्म लिया ? इसकी उसे चिन्ता नही। उनका व्यकक्तित्व व मनोहर मूर्तियां ही उसका आदर्श है। एक प्रेमी भावप्रवण का यही स्वभाव है।
तृतीय योगमार्गी व्यक्ति
जो अपना आत्मविश्लेषण करना और मनुष्य के मन की क्रियाओं को जानना चाहता है। मन मे कौन कौन सी शक्तियां कार्य कर रही हैं और उन शक्तियों को पहचानने का या उनको परिचालित करने का अथवा उनको वशीभूत करने का क्या उपाय है? यही सब जानने को उत्सुक रहता है।
चतुर्थ दार्शनिक
जो प्रत्येक विषय का भावग्रहण व परीक्षा करना चाहता है----और अपनी बुद्धि द्वारा मानवीय दर्शन द्वारा जहां तक जाना संभव है उसके भी परे जाने की इच्छा रखता है।
ये श्रेणी ज्ञानियों की है।

No comments:

Post a Comment