Wednesday, 27 December 2017

|| श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र ||

|| श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र ||
भगवान हनुमान महावीर है, और महकाल और महाकाली के सम्यक स्वरूप है । ईनकी विधिवत की गई उपासना से हर मनोवान्छित इच्छा को पुर्ण कीया जा सकता है । ईनकी उपासना से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है । हनुमान वड्वानल स्तोत्र हनुमद उपासना का एक विषेश आयाम है । ये स्तोत्र साधक कि हर विपदा से रक्षा करता है । ये स्तोत्र विभिषण जी द्वरा रचित है ।
यह स्तोत्र सभी रोगों के निवारण में, शत्रुनाश, दूसरों के द्वारा किये गये पीड़ा कारक कृत्या अभिचार के निवारण, राज-बंधन विमोचन आदि कई प्रयोगों में काम आता है ।
यदी इस स्तोत्र को अपने सन्कल्पानुसार विषिष्ठ मन्त्रो कि जोड दे दि जाये तो ये और अधिक शक्तिशालि बन जाता है ।
विधिः-रात्रि १० बजे के बाद या ब्रम्ह महुरत मे ( सुबह ३:०० बजे), स्नानादिक कर्मो से निव्रुत्त होकर दक्षिणाभिमुख बैठे, लाल वस्त्र परिधान करे, अपने सामने चौकि पे लाल वस्त्र बिछाकर हनुमान चित्र अथवा मुर्ति, सिता- राम का चित्र अथवा मुर्ति अौर शिवलिङ स्थापित करे।
सबसे पेह्ले गुरु ध्यान करे, गुरु अग्या ले, सन्कल्प करे कि आप क्यु हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ कर रहे है, कितना करेंगे, कितने दिनो तक करेंगे । फ़िर शिवलिङ का पन्चोपचार पुजन करे, उसे दुध से अभिषेक करवाये और साधन सफ़लत हेतु प्रर्थना करे । फ़िर सिता - राम जी का पन्चोपचार पुजन कर उन्से सफ़लता का और रक्षा का आशिर्वाद ले । फ़िर रां रामाय नमः मन्त्र कि एक माला जपे । अन्त मे हनुमान जी का पन्चोपचार पुजन करे और उन्से मनोवान्छित इच्छा पुर्ति का वर मांगे। सरसों के तेल का दीपक जलाकर १०८ पाठ नित्य ४१ दिन तक करने पर सभी बाधाओं का शमन होकर अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है ।
शत्रु नाश हेतु , राज बन्धन मुक्ति, रोग निवारण, किसी भी विपत्ति के निवारन हेतु, पाठ प्रारम्भ करने से पेहले निम्न मन्त्र कि १,५ य ११ मालाये जपे मूंगे की माला से ।
मन्त्र: ॥ ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट ॥
विनियोगः- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये ।
ध्यानः-
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।
अन्त मे अपनी समस्त गलतियो कि क्षमा मांगते हुएे हनुमान चालिसा का पाठ करे और अपने पाथ हनुमान जी को अर्पित कर दे ।

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