Monday, 25 December 2017

कबीर जी और गुरु गोरखनाथ

कबीर जी और गुरु गोरखनाथ
श्री मंछदरनाथ जी के शिष्य गुरु गोरखनाथ जी को प्रायः सनातन धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोग जानते हैं। गुरु गोरखनाथ जी कबीर साहेब के समय में ही हुये और इनका सिद्धी ज्ञान विलक्षण था। उन दिनों काशी में प्रत्येक हफ्ते विद्धानों की सभा होती थी और सभा के नियमानुसार चोटी के विद्धान आपस में शास्त्रार्थ करते थे और बाद में जीतने वाला ज्ञानी हारने वाले का तिलक चाट लेता था और जीतने वाला विजयी घोषित कर दिया जाता था। उन दिनों कबीर जी के नाममात्र के गुरु (ये रहस्य है कि रामानन्द कबीर जी के गुरु कहलाते थे पर वास्तव में ये सत्य नहीं था ) रामानन्द जी का विद्धता में बेहद बोलबाला था और गुरु गोरखनाथ ने उनसे शास्त्रार्थ किया। शास्त्रज्ञान और वैष्णव पद्धति का आचरण करने वाले रामानन्द जी गुरु गोरखनाथ जी की सिद्धियों के आगे नहीं टिक सके और गुरु गोरखनाथ जी ने उनका तिलक चाट लिया इससे रामानन्द जी बेहद आहत हुये क्योंकि उनकी गिनती चोटी के विद्धानों में होती थी। इस घटना से उनका बेहद अपमान हुआ था। कबीर जी उन दिनों रामानन्द के नये-नये शिष्य बने थे और उनकी अपारशक्ति का किसी को बोध नहीं था। कबीर साहेब ने रामानन्द जी से आग्रह किया कि वे अपने अखाड़े की तरफ से गुरु गोरखनाथ से ज्ञानयुद्ध करना चाहते हैं।
इस पर रामानन्द जी ने उनका बेहद उपहास किया। उनकी नजर में कबीर जी एक कपङे बुनने वाले जुलाहा मात्र थे वो ज्ञान की बातें क्या जानें। सभी ने उनकी बेहद खिल्ली उङाई लेकिन फिर भी कबीर जी ने रामानन्द जी से बार-बार आग्रह किया कि वे एक बार उन्हे गुरु गोरखनाथ से ज्ञानयुद्ध कर लेने दें। हारकर रामानन्द जी ने उन्हें इजाजत दे दी। कबीर जी ने अपने मस्तक से लेकर नाभि तक एक लम्बा तिलक लगाया और गुरु गोरखनाथ से युद्ध करने पहुँचे। गुरु गोरखनाथ उनका तिलक देखकर चिढ़ गये। कबीर जी और गुरु गोरखनाथ का युद्ध शुरु हुआ और गुरु गोरखनाथ ने कबीर जी की खिल्ली उड़ाते हुये अपना त्रिशूल निकाला और अपनी सिद्धी के बल पर त्रिशूल की बीच की नोंक पर जा बैठा और बोले कि में तो यहाँ बैठकर युद्ध करूँगा। क्या तुम मुझसे लङोगे? कबीर साहेब मुस्कराये और अपनी जेब से कपङे बुनने वाली कच्चे सूत की गुल्ली निकालकर उसका छोक पकङकर गुल्ली आसमान की तरफ उछाल दी। गुल्ली आसमान में चली गयी कबीर साहेब कच्चे सूत पर चङकर आसमान में पहुँच गये और बोले गोरख मैं तो यहाँ से युद्ध करूँगा। गुरु गोरखनाथ बेहद तिलमिला गए फिर भी गुरु गोरखनाथ ने अपने अहम में कई टेढे़-मेढ़े सवाल किये और कबीर जी का जवाब सुनकर उनके छक्के छूट गये और गुरु गोरखनाथ को विद्धानों की उस सभा में अपनी हार मान ली।
कबीरपंथियो का सफ़ेद झूठ
संत रामानंद वैष्णव मत को मानने वाले एक पहुँचे हुए संत थे ! उनका जन्म सन 1400 में हुआ था ! वह जाति-पाति में बहुत विश्वास रखते थे और वैष्णव मत को सर्वोच्च मानते थे , उनका मानना था शैव एवं शाक्त दोनों ही वैष्णव मत से निम्न है ! एक बार उनके शिष्य रविदास जी ने एक शुद्र के घर से भिक्षा मांगी और उस अन्न से बना भोजन रामानंद जी को खिला दिया ! इस पर रामानंद जी ने क्रोध में आकर उन्हे श्राप दे दिया कि तू शुद्र के घर ही जन्म लेगा ! अब आप लोग ही निर्णय करे कि जाति-पाति में विश्वास करने वाला ब्रह्मज्ञानी हो सकता है ? मैं ऐसे व्यक्ति को ब्रह्मज्ञानी नहीं मानता ! ईश्वर ने केवल ढाई जातियाँ ही बनाई है – पुरुष, स्त्री और हिजड़ा !
संत कबीर के मन में प्रबल इच्छा थी कि उनके गुरु संत रामानंद हो पर संत रामानंद किसी नीची जाति वाले को अपना शिष्य नहीं बनाते थे इसलिए कबीर जी उस नदी के किनारे जाकर लेट गए यहाँ संत रामानंद नहाने आते थे ! जब संत रामानंद सुबह सवेरे नहाने आये तो उनका पैर रास्ते पर लेटे हुए कबीर जी से टकरा गया तो रामानंद जी ने कहा ” उठो राम के राम कहो ” ! कबीर जी की दीक्षा नहीं हई थी इसलिए उन्होंने राम को ही अपना गुरु मंत्र मान लिया और राम राम जपने लगे !
संत रामानंद ने अहंकारवश यह घोषणा कर दी कि यदि कोई मुझे शास्त्रार्थ में हरा देगा तो मैं उसका शिष्य बन जाऊँगा और यदि सामने वाला मुझसे हार गया तो उसे मेरा शिष्य बनना पड़ेगा ! यह बात जब गुरु गोरखनाथ जी को पता चली तो उन्होंने रामानंद को आकर शास्त्रार्थ के लिए ललकारा ! गुरु गोरखनाथ जी को देखकर संत रामानंद के मन में भय उत्पन्न हुआ कि यह तो देवों के देव महादेव के अवतार हैं, इनसे शास्त्रार्थ में कौन जीत सकता है पर उनके शिष्य कबीर ने कहा कि आप मुझे अनुमति दे मैं गुरु गोरखनाथ जी से शास्त्रार्थ करूँगा ! कबीर जी के बहुत याचना करने पर संत रामानंद ने कबीर को आज्ञा दे दी ! कबीर जी ने गुरु गोरखनाथ जी से कहा हे योगीराज, मेरे गुरुदेव से शास्त्रार्थ बाद में करना पहले इस दास से शास्त्रार्थ कीजिए
गुरु गोरखनाथ जी के कुछ बोलने से पहले उनके परम शिष्य चर्पटनाथ जी ने कबीर जी से कहा – महाराज आप मेरे गुरुदेव से बाद में शास्त्रार्थ करना पहले मुझसे शास्त्रार्थ करे ! सिद्ध चर्पटनाथ जी और संत कबीर में यह शर्त रखी गयी कि दोनों जाकर पानी में छुपेंगे , जो दुसरे को ना ढूंढ पाएगा वह हारा हुआ माना जाएगा और हारे हुए को जीते हुए का शिष्य बनना पड़ेगा ! पहले चर्पटनाथ जी जाकर पानी में छुप गए और मछली का रूप बना लिया और कबीर जी उन्हें खोजने लगे, थोड़ी देर में ही कबीर जी ने चर्पटनाथ जी को खोज लिया ! अब कबीर जी जाकर पानी में छुप गए और जल में जल का रूप बना लिया बड़ी मेहनत करने पर भी उन्हें कबीर जी नहीं मिले और वह अपने आप को हारा हुआ समझकर गुरु गोरखनाथ जी के चरणों में गए और कहा गुरूजी आपके होते हुए मैं हार गया , अब मुझे कबीर जी का शिष्य बनना पड़ेगा ! गुरु गोरखनाथ जी ने हँसते हुए चर्पटनाथ जी से कहा पुत्र मेरे होते हुए तुम कैसे हार सकते हो और अपनी झोली में से भस्म निकालकर उसे अग्नि मन्त्र से अभिमंत्रित कर चर्पटनाथ को दे दिया और कहा जाकर जल में डाल दो ! चर्पटनाथ जी ने ऐसा ही किया , उन्होंने जल में भस्म डाल दी और ऐसा करते ही पूरे तालाब का जल सूखने लगा जब बहुत थोडा जल बचा और कबीर जी के प्राणों पर संकट आ गया तो कबीर जी जल में से प्रकट हो गए और हाथ जोड़कर गुरु गोरखनाथ जी के सामने खड़े हो गए और कहा हे गुरु गोरखनाथ जी यह मेरे राम नाम के जप का प्रताप है जो मुझे आप जैसे महान योगी के दर्शन हुए और कहा
गोरख सोई ग्यान गमि गहै |
महादेव सोई मन की लहै ||
सिद्ध सोई जो साधै ईती |
नाथ सोई जो त्रिभुवन जती ||
श्रीगोरखनाथ, महादेव, सिद्ध और नाथ, चारों के चारों अभिन्न-स्वरुप एकतत्व हैं |
महायोगी गोरखनाथजी शिव हैं, वे ही शिवगोरक्ष हैं |
उन्होंने महासिद्ध नाथयोगी के रूप मे दिव्य योगशरीर में प्रकट होकर अपने ही
भीतर व्याप्त अलख-निरंजन परब्रह्म परमेश्वर का साक्षात्कार कर समस्त जगत् को योगामृत प्रदान किया है |
गुरु गोरखनाथ जी की अनेक प्रकार से स्तुति कर उन्होंने ने गुरु गोरखनाथ जी से दीक्षा ली और शिष्यत्व स्वीकार किया पर कबीरपन्थियो ने इस कथा को तोड़-मरोड़कर पेश किया और झूठा प्रचार किया कि गुरु गोरखनाथ जी कबीर जी से हार गए थे और उनके शिष्य हो गए थे !
कबीरपंथीओं ने अनेक झूठी कथाओं का प्रचार किया पर इस मनघडत कथाओं की रचना करते समय उन्होंने तथ्यों पर विचार नहीं किया और झूठा प्रचार किया कि कबीर ईश्वर है और ब्रह्मा विष्णु शिव उनके बनाये हुए है ! आईये उनकी इन झूठी कहानियो का पर्दाफाश करते है !
१. कबीरपंथीओं का मानना है कि कबीर ही ईश्वर है , उनसे बड़ा कोई दूसरा नहीं है !
कबीर को हम ईश्वर कैसे मान सकते है ? जिस व्यक्ति को अपना गुरु खोजने के लिए नदी किनारे लेटना पडे वह ईश्वर कैसे हो सकता है क्योंकि गुरु नानक देव जी आये उन्होंने सिक्ख धर्म चलाया ! गुरुनानक देवजी साक्षात् ईश्वर थे , उन्हें तो किसी गुरु की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि वह साक्षात् ईश्वर थे और ईश्वर का कोई गुरु नहीं हो सकता !
महात्मा बुद्ध आये और उनके नाम पर आज दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म ( बौद्ध धर्म ) फैला हुआ है उन्हें तो किसी गुरु की आवश्यकता नहीं पड़ी अपना पंथ चलाने के लिए क्योंकि वह साक्षात् ईश्वर थे और ईश्वर का कोई गुरु नहीं होता !
पैगम्बर मुहम्मद जी को खुदा ने धरती पर भेजा इस्लाम का प्रचार करने के लिए ! आज इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है उन्हें तो किसी गुरु की आवश्यकता नहीं पड़ी अपना धर्म चलाने के लिए क्योंकि वह ईश्वर के भेजे हुए पैगम्बर थे !
ईसामसीह आये और उन्होंने इसाई धर्म का प्रचार किया ! आज ईसाई धर्म दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है उन्हें तो किसी गुरु की आवश्यकता नहीं पड़ी अपना धर्म चलाने के लिए क्योंकि वह ईश्वर के पुत्र थे !
अब आप लोगो में से कुछ विद्वान यह कहेंगे कि राम और कृष्ण ने तो गुरु धारण किया, क्या वह ईश्वर नहीं है ? इसका सीधा उत्तर है कि यह भगवान् विष्णु की नर लीला थी पर भगवान् विष्णु के कोई गुरु नहीं है ! भगवान् शिव के कोई गुरु नहीं है !
अब आप में से कुछ लोग तर्क करेंगे कि कबीर जी ने भी नर लीला की थी पर यदि वह ईश्वर होते तो क्या जाति और वर्ण के नाम पर भेद-भाव करने वाले रामानंद को अपना गुरु स्वीकार करते? जबकि राम जी के गुरु वशिष्ट और विश्वामित्र जी ब्रह्मज्ञानी थे और विश्वामित्र जी ने तो निम्न जाति की स्त्री से विवाह भी किया था और भगवान् श्री कृष्ण जी के गुरु संदीपन जी के आश्रम में राजा और सामान्य व्यक्ति एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे वह भी बिना किसी भेद-भाव के !
२. कबीरपंथीओं का मानना है कि कबीर का जिक्र कुरान में भी आया है और उन्हें अल-कबीर कहा गया है जोकि अल्लाह का एक नाम है इसलिए कबीर ही ईश्वर है !
इस हिसाब से देखा जाए तो हमारे शास्त्रों में ” ॐ रवये नमः ” इस मन्त्र का जिक्र आता है तो क्या रवि नाम के सभी लोग देवता हो गए? क्योंकि रवि सूर्यदेव को कहा जाता है पर ऐसा नहीं है केवल नाम होने से ईश्वर के गुण नहीं आ जाते और अल्लाह के कुरान में १०० नामो का जिक्र है जिनमे से ९९ नाम प्रत्यक्ष है और एक अप्रत्यक्ष है ! अली , रहमान , रहीम आदि यह सभी नाम कुरान में अल्लाह के कहे गए है तो क्या इस नाम के सभी व्यक्ति ईश्वर है? और क्या इस नाम के व्यक्तियों का जिक्र कुरान में किया गया है?
३. कबीरपंथीओं का मानना है कि १६ वर्ष की आयु में जगतगुरु शंकराचार्य जी ने वेदों और शास्त्रों का पार पा लिया पर उन्हें परब्रह्म का ज्ञान नहीं मिला इसलिए वह कबीर जी के पास ज्ञानप्राप्ति के लिए आये !
कबीरपन्थियो के इस झूठ से बड़ा झूठ मैंने आज तक नहीं सुना क्योंकि सन 788 में जगतगुरु शंकराचार्य जी का जन्म हुआ और सन 820 में केवल 32 वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया तो सन 1400 के आसपास जन्म लेने वाले कबीर जी से ज्ञान लेने वह कब आ गए? इस तथ्य से यह सिद्ध होता है कि कबीर जी और जगतगुरु शंकराचार्य कभी मिले ही नहीं थे ! यह कहानी कबीरपन्थियो ने केवल अपने पंथ के प्रचार के लिए गढ़ ली !
४. कबीरपंथीओं का मानना है कि संत नामदेव जी, संत दादूदयाल जी, संत कालिदास जी, संत रविदास जी, मीरा जी, संत रामानंद जी , और संत कबीर जी ने एक साथ बैठकर ज्ञान चर्चा की थी !
इस से बड़ा झूठ क्या हो सकता है? संत नामदेव जी का जन्म सन 1270 में हुआ था और उनकी मृत्यु सन 1350 में हुयी थी वह कबीर जी के समय में थे ही नहीं तो ज्ञान चर्चा कैसे हो गयी?
संत दादूदयाल जी का जन्म सन 1544 में हुआ था और उनकी मृत्यु सन 1603 में हुयी थी वह भी कबीर जी के समय में थे ही नहीं तो ज्ञान चर्चा कैसे हो गयी?
संत कालिदास जी का जन्म चौथी शताब्दी का माना जाता है वह भी कबीर जी के समय में थे ही नहीं तो ज्ञान चर्चा कैसे हो गयी?
मीरा जी का जन्म सन 1498 में हुआ जबकि सन 1470 में संत रामानंद जी कि मृत्यु हो गयी थी तो यह कैसे माना जाए कि मीरा जी ने रामानंद और कबीर जी के साथ ज्ञान चर्चा की थी !
उपरोक्त तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि कबीरपन्थियो की यह कहानी भी मनघडत है !
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यदि कबीरपन्थियो की इन मनघडत कहानीयों पर चर्चा करने लगे तो एक ग्रन्थ अलग से रचना पड़ेगा यदि देखा जाये तो कबीर जी के जन्म पर भी विवाद है , कुछ लोगो का मानना है कि कबीर जी का जन्म सन 1398 में हुआ था, कुछ कबीरपन्थियो का मानना है कि कबीर जी का जन्म 1440 में हुआ था , कुछ कबीरपन्थियो का मानना है कि उनका जन्म 1444 में हुआ था, कुछ कबीरपन्थियो का मानना है कि उनका जन्म 1448 में हुआ था, कुछ कबीरपन्थियो का यह मानना है कि वह उम्र में संत रविदास जी से लगभग 20 साल बड़े थे और उनकी मृत्यु भी रविदास जी से लगभग 15 वर्ष पहले हुयी थी !
संत रविदास जी का जन्म 1377 में हुआ था और यदि उसमे से 20 साल कम कर दिया जाए तो इस हिसाब से कबीर जी का जन्म 1357 में हुआ था !
इस विषय पर यदि हजारी प्रसाद त्रिवेदी और विश्व-विख्यात लेखिका चारलोटे वौदिवेले ( Charlotte Vaudeville ) जी के शोध को देखा जाए तो उनके हिसाब से कबीर जी का जन्म 1398 में हुआ था और लगभग 50 वर्ष की आयु में सन 1448 में उनका देहांत हो गया था ! यदि इन तथ्यों को देखा जाए तो कबीरपन्थियो का यह कहना कि रविदास जी उम्र में कबीर जी से छोटे थे यह बिलकुल गलत है !
कबीरपन्थियो का यह कहना है कि जब गुरु नानक देव जी ने भूखे साधुओ को भोजन खिलाया तो उनमे कबीर जी भी थे यदि हजारी प्रसाद त्रिवेदी और विश्व-विख्यात लेखिका चारलोटे वौदिवेले ( Charlotte Vaudeville ) जी के शोध को देखा जाए तो कबीर जी कि मृत्यु सन 1448 में हो गयी थी ! जिस व्यक्ति ने सन 1448 में देह का त्याग कर दिया वह सन 1469 में अवतार लेने वाले गुरु नानक देव जी से कैसे भोजन ग्रहण कर सकता है? अतः कबीरपन्थियो की यह कहानी भी मनघडत है ! जो कबीरपंथी यह निर्णय नहीं कर सकते कि कबीर जी का जन्म कब हुआ उन्हें नाथ पंथ पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं ! हम यह तो मान सकते है कि कबीर बहुत बड़े ईश्वर भक्त थे पर यह हम कभी नहीं मान सकते कि कबीर साक्षात् ईश्वर थे !
कबीरपन्थियो का ऐसा मानना है कि कबीर जी ने आकर इस दुनिया को मुक्ति का मार्ग दिखाया मतलब कि उनसे पहले शुकदेव, वेद व्यास आदि ऋषि मुनि मुक्ति का मार्ग जानते ही नहीं थे और अब तक मुक्त ही नहीं हुए !
कबीर जी ने स्वयं कई दोहों में गुरु गोरखनाथ जी की प्रशंसा की है इतनी प्रशंसा तो उनके दोहों में रामानंद जी की भी नहीं की गयी यदि गौर से देखा जाये तो उन्होंने गुरु गोरखनाथ जी की वाणी थोड़े फेर-बदल के साथ लिख दी !
गोरखवानी में कही भी कबीर जी का नाम नहीं आया क्योंकि गुरु गोरखनाथ जी कभी कबीर जी से पराजित हुए ही नहीं पर कबीर जी ने उनकी भरपूर प्रशंसा की है !
मैं उन हिन्दुओ में से नहीं हूँ जो इन कबीरपन्थियो की मनघडत कहानीओ पर विश्वास कर अपने इष्ट देवी-देवताओ की निंदा होते देखते रहे, कोई और इनका विरोध करे ना करे मैं तो इनका डटकर विरोध करूँगा क्योंकि
मैं शेरो के साथ नहीं रहता
मैं खुद उनमे से एक हूँ !

2 comments:

  1. सराहनीय कार्य कर रहे हैं आप , आदेश😣💪

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  2. अबे क्यों बकवास कर रहा है, कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा है

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