मनुष्य देह मे जितनी शक्तियां हैं उनमे ओज सबसे उत्कृष्ट शक्ति है। यह ओज मस्तिष्क मे संचित रहता है। यह सबके मस्तिष्क मे थोड़ी बहुत मात्रा मे पाया जाता है। जिसके मस्तिष्क मे यह ओज जितना अधिक मात्रा मे होता है वह उतना ही अधिक बुद्धिमान व अध्यात्मिक रूप से बली होता है। वह जो कुछ कार्य करता है उसी मे महाशक्ति का विकास देखा जा सकता है।
शरीर मे जितनी शक्तियां हैं उनका उच्चतम विकास ही ओज है। यह विकास रूपान्तरण पर आधारित है। एक शक्ति ही दूसरे मे परिणत हो जाती है।
जो शक्ति काम चिन्तन व कामक्रिया आदि के रूप मे प्रकाशित है उसका प्रबंधन करके ऊर्ध्वगति मे संचालित करने से वह रूपांतरित होकर सहज ही ओज मे परिणत हो जाती है। इसकी भिन्न भिन्न विधियां हैं और उन्ही विधियों को बोधिसत्व अवस्था या मोक्षावस्था या परमात्म प्राप्ति का मार्ग कहा गया है।
मानव शरीर का नीचे वाला केन्द्र(सेक्स सेन्टर) ही इस शक्ति का नियामक है। कामजयी स्त्री पुरुष ही इस शक्ति का संचय कर सकते हैं। मनुष्य यदि कामुक हो तो सारा धर्म भाव चला जाता है। इसीलिये विवाहत्यागी सन्यासियों की उत्पत्ति हुई और ब्रह्मचर्य की व्याख्या हुई। यदि कोई अपवित्र जीवन यापन करे तो वह भला किस प्रकार योगी होने की आशा कर सकता है ?
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