" साधु के वेश में जो अपकृत्य करते हैं, देवी देवताओं के नाम पर धोखा देते हैं, जो अपनी जिव्हा पर नियँत्रण नहीं रखते हैं, अपकृत्य करके हाथ गँदे करते हैं, वे जिस बाजार में जाते हैं तौल दिये जाते हैं जैसे २, ४ रूपये पर रास्ते के दरिद्र सिपाही तौल दिये जाते हैं।
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साधु की पहचान उसका वेश है । साधु नाना प्रकार की वेशभूषा धारण करते हैं । सामान्यतः गेरूआ रँग के वस्त्र धारण करने वाले साधु बहुतायत में मिलते हैं । इसके अलावा काली कफनी ताँत्रिकों, फकीरों का, स्वेत वस्त्र कीनारामी, वैष्णव एवँ जैन साधुओं का, लँगोटी तथा भभूत रमाये शैव तथा अघोरियों का, बिना वेशभूषा के नग्न रहना नागा तथा दिगम्बर जैन साधुओं का आदि आदि साधुओं की वेशभूषा होती है ।
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लोग घरबार त्यागकर भगवत भजन में जीवन लगाने के उद्देश्य से साधु बनते हैं । कई बार ऐसा होता है कि घरबार को त्यागना, काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर रहना और भक्ति में साधु का मन नहीं रमता । उसका मन वासनाओं के वशीभूत होकर अपकृत्य यानि ऐन्द्रिक सन्तुष्टि के लिये गलत रास्ते पर चल पड़ता है । ठगी करता है । भक्तों को देवी, देवताओं के नाम पर डराता है । धोखा देता है । कुकृत्य करता है । छुपकर वह सब कार्य करता है जो सांसारिक मनुष्य भी करने के लिये हिचकते हैं ।
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पिछले दिनों अनेक साधुओं की पोल खुली है । कुछ तो जेल में हैं । कुछ न्यायिक प्रक्रिया झेल रहे हैं । कुछ दुबककर अपने फैले हुये कारबार को गुपचुप ढ़ँग से चलाये हुये हैं । आज स्थिति यह हो गई है कि लोग साधु के नाम से ही बिदकने लगे हैं । श्रद्धा तो दूर की बात है लोगों का मन विश्वास करने के लिये भी राजी नहीं है । जब भी कभी आमना सामना हो जाता है कुछ दान दक्षिणा देकर पिण्ड छुड़ा लेते हैं । इसी को कहते हैं तौल दिया जाना यानि साधु का मोल चन्द रूपयों से लगा दिया जाता है ।
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