दुर्गा - सप्तशति - चंडीपाठ" हेतु प्रयोग क्रम
दुर्गा सप्तसती के पाठ करने के क्रम जिससे सफलता मिलती हैं ।
दुर्गा सप्तसती के पाठ करने के क्रम जिससे सफलता मिलती हैं ।
१).महाविद्या क्रम :- सर्वकामना हेतु.
【प्रथम, मध्यम और उत्तर चरित्र.】
२).महातंत्री क्रम:- शत्रुनाश,लक्ष्मी प्राप्ति.
【उत्तर, प्रथम, मध्यम चरित्र.】
३).चंडी तंत्र क्रम :- शत्रुनाश हेतु.
【उत्तर, मध्यम, प्रथम चरित्र.】
४).महाचंडी क्रम :- शत्रुनाश,लक्ष्मी प्राप्ति.
【उत्तर, प्रथम, मध्यम चरित्र.】
५).सप्तशती क्रम :- ज्ञान और लक्ष्मी प्राप्ति.
【मध्यम, प्रथम , उत्तर चरित्र.】
६).मृतसंजीवनी क्रम :- आरोग्य लाभ हेतु.
【मध्यम, उत्तर, प्रथम चरित्र.】
७).रूपदीपिका क्रम :- विजय व आरोग्य लाभ हेतु (रूपम देही जयं देही से संपुटित).
【प्रथम, उत्तर, मध्यम चरित्र.】
८).निकुम्भला :- रक्षा व विजय हेतु.(शूलेन पाही नो से संपुटित).
【मध्यम, प्रथम, उत्तर चरित्र.】
९).योगिनी क्रम :- बालोपद्रव शांन्ती हेतु.
(प्रत्येक चरित्र से पहले योगिनियों का पाठ एवम् प्रत्येक मंत्र " शं.षं." से पुटित.)
【योगिनी क्रम के लिए कोई विशेष चरित्र क्रम का उल्लेख मुझे नहीं मिला पर मेरे मत अनुसार मृतसंजीवनी क्रम लेना लाभप्रद होगा यानी मध्यम, उत्तर, प्रथम चरित्र क्रम.】
१०).अक्षरसः विलोम क्रम :- सर्व कामना सिद्धी हेतु.
【त्रयोदश अध्याय से प्रथम अध्याय तक विलोम पाठ.】
🔯 विशेष बातें :-
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【प्रथम, मध्यम और उत्तर चरित्र.】
२).महातंत्री क्रम:- शत्रुनाश,लक्ष्मी प्राप्ति.
【उत्तर, प्रथम, मध्यम चरित्र.】
३).चंडी तंत्र क्रम :- शत्रुनाश हेतु.
【उत्तर, मध्यम, प्रथम चरित्र.】
४).महाचंडी क्रम :- शत्रुनाश,लक्ष्मी प्राप्ति.
【उत्तर, प्रथम, मध्यम चरित्र.】
५).सप्तशती क्रम :- ज्ञान और लक्ष्मी प्राप्ति.
【मध्यम, प्रथम , उत्तर चरित्र.】
६).मृतसंजीवनी क्रम :- आरोग्य लाभ हेतु.
【मध्यम, उत्तर, प्रथम चरित्र.】
७).रूपदीपिका क्रम :- विजय व आरोग्य लाभ हेतु (रूपम देही जयं देही से संपुटित).
【प्रथम, उत्तर, मध्यम चरित्र.】
८).निकुम्भला :- रक्षा व विजय हेतु.(शूलेन पाही नो से संपुटित).
【मध्यम, प्रथम, उत्तर चरित्र.】
९).योगिनी क्रम :- बालोपद्रव शांन्ती हेतु.
(प्रत्येक चरित्र से पहले योगिनियों का पाठ एवम् प्रत्येक मंत्र " शं.षं." से पुटित.)
【योगिनी क्रम के लिए कोई विशेष चरित्र क्रम का उल्लेख मुझे नहीं मिला पर मेरे मत अनुसार मृतसंजीवनी क्रम लेना लाभप्रद होगा यानी मध्यम, उत्तर, प्रथम चरित्र क्रम.】
१०).अक्षरसः विलोम क्रम :- सर्व कामना सिद्धी हेतु.
【त्रयोदश अध्याय से प्रथम अध्याय तक विलोम पाठ.】







नमस्तस्ये का पूरा एक ही मन्त्र है ।
कहीं महिष उवाच, मंत्री उवाच,शुम्भ उवाच, निशुम्भ उवाच भी है.



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