Wednesday 13 December 2017

संसार की नियामक शक्ति एक है

संसार की नियामक शक्ति एक है। उसका कोई साझीदार और सहायक नहीं है। उसकी विशेषताओं और शक्तियों को सरल ढंग समझाने के लिए ही कई देवी देवताओं की सचित्र कल्पना की गई थी। किन्तु आज देवी देवताओं का स्वतंत्र अस्तित्व मानकर उनके पीछे कितने ही भ्रम जंजाल खड़े कर दिए गये है। कुल देवता; कुल देवी; ग्राम देवी; आदि असंख्य देवताओं की कल्पना कर ली गई है। ये वर्षा ऋतु मे उगने वाले पौधों की तरह उपजते गए। इन प्रचलित देवी देवताओं मे से अनेक का किसी पुराण-ग्रंथ आदि से कोई संबंध नहीं। लोगों की मान्यता के अनुसार वे अपनी पूजा करने वाले का हित तो नहीं कर सकते; केवल डराते और त्रास देते हैं। उनके मंदिर या मठ पर बच्चे का मुंडन न कराया जाय तो वे नाराज।
कैसी मूढ़ मान्यता है?
देवता शब्द की कैसी दुर्गति है?
देवता का अर्थ होता है देने वाला।
यहाँ तो परिभाषा ही बदल गई है। जो देने मे असमर्थ हैं; मांस मिठ़ाई मदिरा आदि के लालची हैं और उनके न मिलने पर शत्रुता ठानकर आक्रमण करें; क्या वे देवता कहला सकते हैं।
शकुन अपशकुन के नाम पर तर्कहीन व तथ्यहीन---मूढ़ता व अंधविश्वास फैले हुए हैं। जिसके परिणामस्वरूप आत्मघातक दुष्परिणाम सामने आते रहते हैं। इसी तरह यात्रा मे शुभ-अशुभ; ग्रह-मुहूर्त आदि के नाम पर भी अनेक अंधविश्वास फैले हैं। यदि कोई व्यक्ति बाहर जा रहा हो और बिल्ली रास्ता काट गई तो यात्रा रद्द कर देंगे। किसी विशेष दिन को दाढ़ी बाल न बनवाने की बाध्यता। शनिवार और लोहा पर तो तमाम डर दिखाया जाता है।छींक आ गई तो वापस। खाली घड़ा दिखाई दे तो अशुभ की आशंका इत्यादि। इस प्रकार इन मान्यताओं के पीछे न जाने कितना श्रम; धन व समय बरबाद होता है।
अत: प्रबुद्ध लोंगों का यह धर्म कर्तव्य है कि देश व समाज की आर्थिक; सामाजिक; धार्मिक; नैतिक व चारित्रिक उन्नति के लिए अंधविश्वास की अंधेरी गलियों मे भटकते हुए मानव समुदाय को विवेक के आलोक से आलोकित करके तार्किक और वैज्ञानिक सोच के आधार पर जीवन जीने हेतु प्रेरणा दें जिससे देश व समाज से अंधविश्वास और पाखंड निर्मूल हो।

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