Thursday 28 December 2017

पितरो का ऋणबंधन

पितरो का ऋणबंधन

प्रत्येक मनुष्य जातक पर उसके जन्म के साथ ही तीन प्रकार के ऋण अर्थात देव ऋण, ऋषि ऋण और मातृपितृ ऋण अनिवार्य रूप से चुकाने बाध्यकारी हो जाते है। जन्म के बाद इन बाध्यकारी होने जाने वाले ऋणों से यदि प्रयास पूर्वक मुक्ति प्राप्त न की जाए तो जीवन की प्राप्तियों का अर्थ अधूरा रह जाता है। ज्योतिष के अनुसार इन दोषों से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त माना मामा-मामी मौसा-मौसी नाना-नानी तथा पितृ पक्ष अर्थात दादा-दादी चाचा-चाची ताऊ ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है।

जन्मकुण्डली में यदि चंद्र पर राहु केतु या शनि का प्रभाव होता है तो जातक मातृ ऋण से पीड़ित होता है। चन्द्रमा मन का प्रतिनिधि ग्रह है अतः ऐसे जातक को निरन्तर मानसिक अशांति से भी पीड़ित होना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मातृ ऋण से मुक्ति के प्श्चात ही जीवन में शांति मिलनी संभव होती है।
पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट संतानाभाव संतान का स्वास्यि खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है। यदि संतान अपंग मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन उसी पर केन्द्रित हो जाता है। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है।
माता-पिता के अतिरिक्त हमें जीवन में अनेक व्यक्तियों का सहयोग व सहायता प्राप्त होती है गाय बकरी आदि पशुओं से दूध मिलता है। फल फूल व अन्य साधनों से हमारा जीवन सुखमय होता है इन्हें बनाने व इनका जीवन चलाने में यदि हमने अपनी ओर से किसी प्रकार का सहयोग नहीं दिया तो इनका भी ऋण हमारे ऊपर हो जाता है। जन कल्याण के कार्यो में रूचि लेकर हम इस ऋण से उस ऋण हो सकते हैं। देव ऋण अर्थात देवताओं के ऋण से भी हम पीड़ित होते हैं। हमारे लिए सर्वप्रथम देवता हैं हमारे माता-पिता, परन्तु हमारे इष्टदेव का स्थान भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है।
इसके अन्य भी कई ऋण है जैसे प्रकृति का ऋण हम जब मर जाते है तो जलाने की लकडी व गोबर के कंडे लगते है ! अगर आप आजीवन गाय को प्रतिदिन १ रोटी भी देते है तो गोबर के कण्डे का ऋण उतर जाता है परन्तु लकडी का !

आपके ज्यादातर कार्य असफल हो रहे हैं तो यह करें वैदिक मंत्र

आपके ज्यादातर कार्य असफल हो रहे हैं तो यह करें वैदिक मंत्र 
आप चाहते हैं की आपके द्वारा किये गए कार्य सफल हो लेकिन कार्य के प्रारम्भ होते ही उसमें विध्न आ जाते हैं और वह असफल हो जाते हैं इसके लिए आप यह करें: प्रातःकाल कच्चा सूत लेकर सूर्य के सामने मुंह करके खड़े हो जाएं। फिर सूर्य देव को नमस्कार करके
'ॐ हीं घ्रणि सूर्य आदित्य श्रीम'
मंत्र बोलते हुए सूर्य देव को जल चढ़ाएं। जल में रोली, चावल, चीनी तथा लाल पुष्प दाल लें। इसके पश्चात कच्चे सूत को सूर्य देव की तरफ करते हुए गणेशजी का स्मरण करते हुए सात गाँठ लगाएं। इसके पश्चात इस सूत को किसी खोल में रखकर अपनी कमीज की जेब में रख लें, आपके बिगड़े कार्य बनाने लगेंगे।

|| देवी महाकाली की कृपा-प्राप्ति मन्त्र ||

|| देवी महाकाली की कृपा-प्राप्ति मन्त्र ||
ॐ काली-काली महा-काली कण्टक-विनाशिनी रोम-रोम रक्षतु सर्वं मे रक्षन्तु हीं हीं छा चारक।।”
विधिः चेत्र या आश्विन-शुक्ल-प्रतिपदा से नवमी तक देवी का व्रत करे। उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करे।
जप के बाद इसी मन्त्र से १०८ आहुति से। घी, धूप, सरल काष्ठ, सावाँ, सरसों, सफेद-चन्दन का चूरा, तिल, सुपारी, कमल-गट्टा, जौ (यव), इलायची, बादाम, गरी, छुहारा, चिरौंजी, खाँड़ मिलाकर साकल्य बनाए। सम्पूर्ण हवन-सामग्री को नई हांड़ी में रखे। भूमि पर शयन करे। समस्त जप-पूजन-हवन रात्रि में ११ से २ बजे के बीच करे। देवी की कृपा-प्राप्ति होगी तथा रोजाना अपने दोनों की हथेली पर 8 बार मन्त्र बोलकर फूक मारे व हाथो को पूरे शरीर पर फेरे इससे उपरी बाधा – तांत्रिक अभिचार से रक्षा होती है!


Wednesday 27 December 2017

कारोबारी, पारिवारिक, कानूनी परेशानियों से छुटकारा दिलाने वाला अमोघ प्रयोग

कारोबारी, पारिवारिक, कानूनी परेशानियों से छुटकारा दिलाने वाला अमोघ प्रयोग
आप अपना काम कर रहे हो कठिन परिश्रम के बावजूद भी लोग आपका हक मार देते हैं। अनावश्यक कार्य अवरोध उत्पन्न करते हों। आपकी गलती न होने के बावजूद भी आपको हानि पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा हो तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत ही लाभदायक सिध्द होगा। रात्रि में 10 बजे से 12 बजे के बीज में यह उपाय करना बहुत ही शुभ रहेगा। एक चौकी के ऊपर लाल कपड़ा बिछा कर उसके ऊपर 11 जटा वाले नारियल। प्रत्येक नारियल के ऊपर लाल कपड़ा लपेट कर कलावा बांध दें। इन सभी नारियल को चौकी के ऊपर रख दें। घी का दीपक जला करके धूप-दीप नेवैद्य पुष्प और अक्षत अर्पित कर। नारियल के ऊपर कुमकुम से स्वस्तिक बनाए और उन प्रत्येक स्वस्तिक के ऊपर पांच-पांच लौंग रखें और एक सुपारी रखें। माँ भगवती का ध्यान करें। माँ को प्रार्थना करें कष्टों की मुक्ति के लिए। कम्बल का आसन बिछा कर मंत्र का जाप करे !

!! ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम: !!

11 माला करें, तत्पश्चात नारियल सहित समस्त सामग्री को सफेद कपड़े में बांध कर अपने ऊपर से 11 बार वार कर सोने वाले पलंग के नीचे रख दें। सुबह ब्रह्म मुह्रर्त्त में बिना किसी से बात किए यह सामग्री कुएं, तालाब या किसी बहते हुए पानी में प्रवाह कर दें। किसी भी तरह की समस्या होगी उससे छुटकारा मिल जाएगा।




पति के किसी अन्य महिला से सम्बन्ध

पति के किसी अन्य महिला से सम्बन्ध
आपको यदि शक हो की आपके पति के किसी अन्य महिला से सम्बन्ध हैं तो आप इसके लिए रात में थोडा कपूर अवश्य जलाया करें इससे यदि सम्बन्ध होंगे तो छूट जायेंगे|
रविवार की रात में सोते समय कुछ सिन्दूर बिस्तर पर पति के सोने वाले हिस्से की और बिखरा दें तथा प्रात: नहा कर माँ पार्वती का नाम लेकर उससे अपनी मांग भर लें|

जिस महिला से आपके पति का संपर्क है उसके नाम के अक्षर के बराबर मखाने लेकर प्रत्येक मखाने पर उसके नाम का अक्षर लिख दें|उस औरत से पति का छुटकारा पाने की ईशवर से प्रार्थना करते हुए उन सारे मखानो को जला दें तथा किसी भी प्रकार से उसकी काली भभूत को पति के पैर के नीचे आने की व्यवस्था करें
किसी अन्य महिला के पीछे आपके पति यदि आपका अपमान करते हैं तो किसी भी गुरूवार को तीन सो ग्राम बेसन के लड्डू ,आटेके दो पेड़े,तीन केले व इतनी ही चने की गीली दाल लेकर किसी गाय को खिलाये जो अपने बछड़े को दूध पिला रही हो|उसे खिला कर यह निवेदन करें की हे माँ,मैंने आपके बच्चे को फल दिया आप मेरे बच्चे को फल देना|कुछ ही दिन में आपके पति रस्ते में आ जायेंगे|

यदि शरीर स्वस्थ है तो जीवन का हर सुख अच्छा लगता है

यदि शरीर स्वस्थ है तो जीवन का हर सुख अच्छा लगता है और यदि शरीर ही स्वस्थ नहीं हैं तो किसी भी सुख में मजा नहीं आता। यदि आप भी किसी असाध्य रोग से पीडि़त हैं तो नीचे लिखे हनुमान मंत्र का जप मंगलवार को करें इससे आपका रोग दूर हो सकता है। यह हनुमान मंत्र इस प्रकार है-
मंत्र
हनुमन्नंजनी सुनो वायुपुत्र महाबल:।
अकस्मादागतोत्पांत नाशयाशु नमोस्तुते।।
जप विधि
- प्रति मंगलवार सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें।
- इसके बाद हनुमानजी की पूजा करें और उन्हें सिंदूर तथा गुड़-चना चढ़ाएं।
- इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश का आसन ग्रहण करें।
- तत्पश्चात लाल चंदन की माला से ऊपर लिखे मंत्र का जप करें।
- इस मंत्र का प्रभाव आपको कुछ ही समय में दिखने लगेगा।
शुभकल्याणमस्तु


पंचश्लोकी गणेशपुराण

पंचश्लोकी गणेशपुराण
भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा के सामने अथवा किसी मंदिर में गणेशजी के सामने बैठकर भक्तिभाव से पंचश्लोकी गणेशपुराण का प्रात: एवं सायंकाल पाठ करे ! अभी १२ दिनो तक करे ! मनोकामना पहले बोल दे ! दुर्वा चढाये !
श्रीविघ्नेशपुराणसारमुदितं व्यासाय धात्रा पुरा

तत्खण्डं प्रथमं महागणपतेश्चोपासनाख्यं यथा।
संहर्तुं त्रिपुरं शिवेन गणपस्यादौ कृतं पूजनं
कर्तुं सृष्टिमिमां स्तुतः स विधिना व्यासेन बुद्धयाप्तये॥
संकष्टयाश्च विनायकस्य च मनोः स्थानस्य तीर्थस्य वै
दूर्वाणां महिमेति भक्तिचरितं तत्पार्थिवस्यार्चनम्‌।
तेभ्यो यैर्यदभीप्सितं गणपतिस्तत्तत्प्रतुष्टो ददौ
ताः सर्वा न समर्थ एव कथितुं ब्रह्मा कुतो मानवः॥
क्रीडाकाण्डमथो वदे कृतयुगे श्वेतच्छविः काश्यपः।
सिंहांकः स विनायको दशभुजो भूत्वाथ काशीं ययौ।
हत्वा तत्र नरान्तकं तदनुजं देवान्तकं दानवं
त्रेतायां शिवनन्दनो रसभुजो जातो मयूरध्वजः॥
हत्वा तं कमलासुरं च सगणं सिन्धु महादैत्यपं
पश्चात्‌ सिद्धिमती सुते कमलजस्तस्मै च ज्ञानं ददौ।
द्वापारे तु गजाननो युगभुजो गौरीसुतः सिन्दुरं
सम्मर्द्य स्वकरेण तं निजमुखे चाखुध्वजो लिप्तवान्‌॥
गीताया उपदेश एव हि कृतो राज्ञे वरेण्याय वै
तुष्टायाथ च धूम्रकेतुरभिधो विप्रः सधर्मधिकः।
अश्वांको द्विभुजो सितो गणपतिर्म्लेच्छान्तकः स्वर्णदः
क्रीडाकाण्डमिदं गणस्य हरिणा प्रोक्तं विधात्रे पुरा॥
एतच्छ्लोकसुपंचकं प्रतिदिनं भक्त्या पठेद्यः पुमान्‌
निर्वाणं परमं व्रजेत्‌ स सकलान्‌ भुक्त्वा सुभोगानपि।
॥ इति श्रीपंचश्लोकिगणेशपुराणम्‌ ॥

शिव पूजा के अंत में करें यह मंत्र उपाय, बुरा वक्त भी थमने लगेगा

शिव पूजा के अंत में करें यह मंत्र उपाय, बुरा वक्त भी थमने लगेगा
शिव की शक्तियां जितनी अनंत, अपार व विराट हैं, उतना ही सरल है उनका स्वरूप व स्वभाव। इसी वजह से शिव भक्तों के मन में समाया शिव उपासना के आसान उपायों से भी मिलने वाली शिव कृपा का विश्वास ही हर भक्त के लिए सुखों का भंडार खोल देता है। शास्त्रों के मुताबिक सांसारिक जीवन से जुड़ी ऐसी कोई मुराद नहीं जो शिव उपासना से पूरी न हो।
शास्त्रों में बताई शिव पूजा से जुड़ी बातें उजागर करती हैं कि शिव भक्ति में मात्र शिव नाम स्मरण ही सारे सांसारिक सुखों को देने वाला है। विशेष रूप से शास्त्रों में बताए शिव उपासना के विशेष दिनों, तिथि और काल को तो नहीं चूकना चाहिए। इसी कड़ी में यहां बताई जा रही शिव मंत्र स्तुति, शिव पूजा व आरती के बाद बोलने से माना जाता है कि इसके प्रभाव से बुरे वक्त, ग्रहदोष या बुरे सपने जैसी कई परेशानियां दूर होती हैं-

दु:स्वप्नदु:शकुन दुर्गतिदौर्मनस्य,
दुर्भिक्षदु‌र्व्यसन दुस्सहदुर्यशांसि।
उत्पाततापविषभीतिमसद्ग्रहार्ति,
व्याधीश्चनाशयतुमे जगतातमीश:॥
इस शिव स्तुति का सरल शब्दो में मतलब है कि-
संपूर्ण जगत के स्वामी भगवान शिव मेरे सभी बुरे सपनों, अपशकुन, दुर्गति, मन की बुरी भावनाएं, भूखमरी, बुरी लत, भय, चिंता और संताप, अशांति और उत्पात, ग्रह दोष और सारी बीमारियों से रक्षा करे।
धार्मिक मान्यता है कि शिव, अपने भक्त के इन सभी सांसारिक दु:खों का नाश और सुख की कामनाओं को पूरा करते हैं।

बीज मंत्रो से रोगों का निदान

बीज मंत्रो से रोगों का निदान
बीज मंत्रो से अनेकों रोगों का निदान सफल है। आवश्यकता केवल अपने अनुकूल प्रभावशाली मंत्र चुनने और उसका शुद्ध उच्चारण से मनन-गुनन करने की है। बीज के अर्थ से अधिक आवश्यक उसका शुद्ध उच्चारण ही है। जब एक निश्चित लय और ताल से मंत्र का सतत् जप चलता है तो उससे नाडियों में स्पंदन होता है। उस स्पदन के घर्षण से विस्फोट होता है और एनर्जी उत्पन होती है, जो षट्चक्रों को चैतन्य करती है। इस समस्त प्रक्रिया के समुचित अभ्यास से शरीरमें प्राऔतिक रुप से उत्पन्न होते और शरीर की आवश्कता के अनुरुप शरीर का पोषण करने में सहायक हारमोन्स आदि का सामन्जस्य बना रहता है और तदनुसार शरीर को रोग से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है।
पौराणिक, वेद, शाबर आदि मंत्रों में बीज मंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। उठते-बैठते, सोते-जागते उस मंत्रका सतत् शुद्ध उच्चारण करते रहें। आपको चमत्कारिक रुप से अपने अन्दर अन्तर दिखाई देने लगेगा। यह बात सवैद ध्यान रखें कि बीज मंत्रों में उसकी शक्ति का सार उसके अर्थ में नहीं बल्कि उसके विशुद्ध उच्चारण को एक निश्चित लय और ताल से करने में है।
बीज मंत्र में सर्वाधिक महत्व उसके बिन्दु में है और यह ज्ञान केवल वैदिक व्याकरण के सघन ज्ञान द्वारा ही संम्भव है। आप स्वंय देखें कि एक बिन्दु के तीन अलग-2 उच्चारण हैं।
गंगा शब्द ‘ङ’ प्रधान है।
गन्दा शब्द ‘न’ प्रधान है।
गंभीर शब्द ‘म’ प्रधान है।
अर्थात इनमें क्रमशः ङ, न और म, का उच्चारण हो रहा है।
कौमुदी सिद्वान्त्र के अनुसार वैदिक व्याकरण को तीन सूत्रों द्वारा स्पष्ट किया गया है-
1 – मोनुस्वारः
2 – यरोनुनासिकेनुनासिको तथा
3- अनुस्वारस्य ययि पर सवर्णे।
बीज मंत्र के शुद्ध उच्चारण में सस्वर पाठ भेद के उदात्त तथा अनुदात्त अन्तर को स्पष्ट किए बिना शुद्ध जाप असम्भव है और इस अशुद्धि के कारण ही मंत्र का सुप्रभाव नहीं मिल पाता।
अपने अनुरूप चुना गया बीज मंत्र जप अपनी सुविधा और समयानुसार चलते-फिरते उठते-बैठते अर्थात किसी भी अवस्था में किया जा सकता है। इसका उदेश्य केवल शुद्ध उच्चारण एक निश्चित ताल और लय से नाड़़ियों में स्पदन करके स्फोट उत्पन्न करना है।
कां – पेट सम्बन्धी कोर्र्ई भी विकार और विशेष रूप से आतों की सूजन में लाभकारी।
गुं – मलाशय और मूत्र सम्बन्धी रोगों में उपयोगी !


हत्था जोड़ी क्या है

हत्था जोड़ी क्या है 

तंत्र शास्त्र में हत्था जोड़ी एक विशिष्ट स्थान रखती है। ये साक्षात् माँ महाकाली और कामाख्या देवी का स्वरुप मानी जाती है। देखने में ये भले ही किसी पक्षी के पंजे या मनुष्य के हाथो के समान दिखे लेकिन असल में ये एक पौधे की जड़ है।

हत्था जोड़ी तांत्रिक प्रयोगों में काम आने वाली एक दुर्लभ एवं चमत्कारिक वस्तु है | ये एक प्रकार की वनस्पति बिरवा की जड़ है, लेकिन इसे दुर्लभ माना जाता है, क्योकि ये सहज उपलब्ध नहीं होती है |

इस जड़ की आकृति दो जुड़े हुए हाथों के रूप में होती है, इसलिए इसे हत्था जोड़ी कहा गया है | हत्था जोड़ी का प्रयोग दांपत्य जीवन में आ रही समस्यओं को दूर करने में, व्यापार वृद्धि में, धन प्राप्ति इत्यादि में की जाती है |
हत्था जोड़ी बहुत ही शक्तिशाली व प्रभावकारी वस्तु है यह :-मुकदमा, शत्रु संघर्ष, दरिद्रता आदि के निवारण में बहुत प्रभावी है इसके जैसी चमत्कारी वस्तु आज तक देखने में नही आयी इसमें वशीकरण को भी अदुभूत शक्ति है -
भूत - प्रेत आदि का भय नही रहता यदि इसे तांत्रिक विधि से सिध्द कर दिया जाए तो साधक निष्चित रूप से चामुण्डा देवी का कृपा पात्र हो जाता है यह जिसके पास होती है उसे हर कार्य में सफलता मिलती है धन संपत्ति देने वाली यह बहुत चमत्कारी साबित हुई है तांत्रिक वस्तुओं में यह महत्वपूर्ण है -!
हत्था जोड़ी में अद्भुत प्रभाव निहित रहता है, यह साक्षात चामुंडा देवी का प्रतिरूप है-!यह जिसके पास भी होगी वह अद्भुत रुप से प्रभावशाली होगा !सम्मोहन, वशीकरण, अनुकूलन, सुरक्षा में अत्यंत गुणकारी होता है, हत्था जोड़ी.हमारे तंत्र शास्त्र तथा तन्त्र का प्रयोग करने वालो के लिये एक महत्वपूर्ण वनौषधि के नाम से जानी जाती है। इसके पत्ते हरे रंग के होते है साथ ही यह भी देखा जाता है इन पत्तो के नीचे के हिस्से मे सफ़ेद रंग की परत होती है और इस सफ़ेद हिस्से पर बाल जैसे मुलायम रोंये होते है। इसके ऊपर गुलाब की तरह का फ़ूल आता है कही कही पर फ़ूल मे नीला रंग भी दिखाई देता है। यह प्राय: पंसारियो के पास या राशि रत्न बेचने वालो के पास से प्राप्त कि जा सकती है इसे तांत्रिक सामान बेचने वाले भी अपने पास रखते है।
हत्थाजोडी को कर जोडी हस्ताजूडी के नाम से भी जाना जाता है ! इसकी उपज किसी भी पेड की छाया मे तथा नम जमीन मे होती है इसकी जड गोल होती है और रंग काला होता है इसी जड मे हत्था जोडी बनती है।यदि आप खूब मेहनत और लगन से काम करके धनोपार्जन करते हैं फिर भी आपको आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो आपको अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए इससे सम्बंधित उपाय करने चाहिए।इसके लिए किसी भी शनिवार अथवा मंगलवार के दिन हत्था जोड़ी घर लाएं। इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर घर में किसी सुरक्षित स्थान में अथवा तिजोरी में रख दें। इससे आय में वृद्घि होगी एवं धन का व्यय कम होगा।तिजोरी में सिन्दूर युक्त हत्था जोड़ी रखने से आर्थिक लाभ में वृद्धि होने लगती है.
हत्था जोड़ी के कुछ प्रयोग :-
१. प्रसव की सुगमता के लिये ग्रामीण इलाको मे इसे चन्दन के साथ घिस कर प्रसूता की नाभि पर चुपड देते है इससे बच्चा आराम से हो जाता है।
२. गर्भपात करवाने के लिये भी इसे प्रयोग मे लाया जाता है लेकिन इसके आगे के लक्षण बहुत खराब होते है जैसे हिस्टीरिया का मरीज हो जाना
३. जब कभी पेशाब रुक जाती है तो इसे पानी के साथ घिसकर पेडू पर लगाने से पेशाब खुल जाता है.
४. पेट मे कब्ज रहने पर इसको पानी के साथ घिस कर पेट पर चुपडने से कब्जी दूर होने लगती है.
५. मासिक धर्म के लिये इसके चूर्ण की पोटली बनाकर योनि मे रखने से शुद्ध और साफ़ मासिक धर्म होने लगता है लेकिन इस कार्य के लिये किसी योग्य डाक्टर या वैद्य की सहायता लेनी जरूरी होती है.
६. हत्थाजोडी का चूर्ण पीलिया के बहुत उपयोगी है पीलिया के मरीज को हत्थाजोडी के चूर्ण को शहद के साथ चटाने से लाभ मिलता है - लेकिन इसका चूर्ण शहद के साथ खिलाने के बाद रोगी को कपडा ओढ़ा देना जरूरी होता है जिससे पीलिया का पानी पसीने के रूप में निकलने लगेगा - कुछ समय बाद पसीने को तौलिया से साफ़ कर लेना चाहिये इससे यह समूल रोग नष्ट करने मे सहायक होती है.
७. पारा शोधन कि प्रक्रिया में भी हत्थाजोडी को प्रयोग मे लाते है - हत्थाजोडी के चूर्ण को पारे के साथ खरल करते है धीरे धीरे पारा बंधने लगता है - मनचाही शक्ल मे पारे को बनाकर गलगल नीबू के रस मे रख दिया जाता है कुछ समय मे पारा कठोर हो जाता है लेकिन पारा और हत्था जोडी असली हो तभी यह सम्भव है अन्यथा कुछ हासिल नहीं होता -!
८. हत्थाजोडी को सिन्दूर मे लगाकर दाहिनी भुजा मे बांधने से कहा जाता है कि वशीकरण होता है
९. बिल्ली की आंवर / जेर हत्थाजोडी और सियारसिंगी को सिन्दूर मे मिलाकर एक साथ रखने से कहा जाता है कि भाग्य मे उन्नति होती है
१०. यदि बच्चा रोता अधिक है और जल्दी-जल्दी बीमार हो जाता है तो शाम के समय, हत्थाजोडी के साथ रखे लौंग-इलायची को लेकर धूप देना चाहिए।
यह क्रिया शनिवार के दिन किन कर्यो के अधिक लाभकारी होती है।
११. किसी भी व्यक्ति से वार्ता करने में साथ रखे तो वो बात मानेगा.
१२. जिसको भी वश में करना हो, उसका नाम लेकर जाप करें तो इसके प्रभाव से वह व्यक्ति वशीभूत होगा.
१३. त्रि - धातु के तावीज में गले में धारण करने से बलशाली से बलशाली व्यक्ति भी डरता है. सभी कार्यों में निरंतर निर्भय होता है.
१४. प्रयोग के बाद चांदी की डिबिया में सिन्दूर के साथ ही तिजोरी में रख दें.
हत्था जोड़ी पूजा विधि :

जब आपको हत्था जोड़ी मिले तो उसे निकाल कर एक साफ़ कटोरी में रख कर उसमे इतना तिल का तेल डालें की हत्था जोड़ी पूरी भीग जाये, और अगर तेल काम हो जाये तो फिर से तेल डालें, ऐसा करने से हत्था जोड़ी तेल सोखती है और इसे तब तक उसी कटोरी में रखे जब तक की प्रयोग न करना हो |

और जिस दिन इसका प्रयोग करना हो ( प्रायः शुक्रवार से प्रारम्भ करना चाहिए ) इसको तेल से निकाल कर इसके ऊपर सिन्दूर लगाए और बचा तेल पीपल के वृक्ष पर अर्पित कर दे , अगर तिल का तेल न हो तो आप सरसो का तेल भी प्रयोग कर सकते है |

इसके बाद एक चांदी की डिबिया लेकर उसमे सिन्दूर भरकर हत्था जोड़ी को उसमे रख दे और डिबिया को बंद करके जहा रखना चाहते है रख सकते है |

प्रातः काल स्नान ध्यान से निवृत्त होकर अपने घर के मंदिर के समीप गंगा जल या गौ मूत्र से स्थान शुद्धि कर ले और उत्तर या पूर्व की दिशा की तरफ मुख करके सफ़ेद ऊनी या सूती आसन पर बैठे एक लकड़ी के ऊपर लाल वस्त्र रख कर हत्था जोड़ी की डिब्बी खोलकर इसपर रखे |

तथा यदि धन के लिए पूजा करना चाहते है तो माता लक्ष्मी, अगर दांपत्य जीवन के लिए चाहते है तो माँ कामाख्या और अगर शिक्षा के लिए चाहते है तो माता सरस्वती को ध्यान में रख कर दिए गए मंत्रो में से उस मंत्र का उच्चारण 108 बार करे | हत्था जोड़ी मंत्र अगर आप दांपत्य जीवन के लिए इसका प्रयोग कर रहे हो :

ॐ हाँ ग़ जू सः अमुक में वश्य वश्य स्वाहा |

हत्था जोड़ी मंत्र अगर आप धन और व्यापार के लिए इसका प्रयोग कर रहे हो :

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री महालक्ष्मयै नमः |

हत्था जोड़ी मंत्र अगर आप शिक्षा और नौकरी के लिए इसका प्रयोग कर रहे हो :

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सरस्वतये नमः |
मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिश्थित दुर्लभ हत्था जोड़ी पर अनेको बडि बडि साधनाये और प्रयोग सम्पन्न किये जाते है जो कि शिघ्र फलदायि होते है और भौतिक और साधनात्मक जीवन को उच्चता प्रदान कर्ते है । ऐसे प्रयोग इस हत्था जोदि के साथ प्रदान किये जायेंगे ।

|| श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र ||

|| श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र ||
भगवान हनुमान महावीर है, और महकाल और महाकाली के सम्यक स्वरूप है । ईनकी विधिवत की गई उपासना से हर मनोवान्छित इच्छा को पुर्ण कीया जा सकता है । ईनकी उपासना से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है । हनुमान वड्वानल स्तोत्र हनुमद उपासना का एक विषेश आयाम है । ये स्तोत्र साधक कि हर विपदा से रक्षा करता है । ये स्तोत्र विभिषण जी द्वरा रचित है ।
यह स्तोत्र सभी रोगों के निवारण में, शत्रुनाश, दूसरों के द्वारा किये गये पीड़ा कारक कृत्या अभिचार के निवारण, राज-बंधन विमोचन आदि कई प्रयोगों में काम आता है ।
यदी इस स्तोत्र को अपने सन्कल्पानुसार विषिष्ठ मन्त्रो कि जोड दे दि जाये तो ये और अधिक शक्तिशालि बन जाता है ।
विधिः-रात्रि १० बजे के बाद या ब्रम्ह महुरत मे ( सुबह ३:०० बजे), स्नानादिक कर्मो से निव्रुत्त होकर दक्षिणाभिमुख बैठे, लाल वस्त्र परिधान करे, अपने सामने चौकि पे लाल वस्त्र बिछाकर हनुमान चित्र अथवा मुर्ति, सिता- राम का चित्र अथवा मुर्ति अौर शिवलिङ स्थापित करे।
सबसे पेह्ले गुरु ध्यान करे, गुरु अग्या ले, सन्कल्प करे कि आप क्यु हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ कर रहे है, कितना करेंगे, कितने दिनो तक करेंगे । फ़िर शिवलिङ का पन्चोपचार पुजन करे, उसे दुध से अभिषेक करवाये और साधन सफ़लत हेतु प्रर्थना करे । फ़िर सिता - राम जी का पन्चोपचार पुजन कर उन्से सफ़लता का और रक्षा का आशिर्वाद ले । फ़िर रां रामाय नमः मन्त्र कि एक माला जपे । अन्त मे हनुमान जी का पन्चोपचार पुजन करे और उन्से मनोवान्छित इच्छा पुर्ति का वर मांगे। सरसों के तेल का दीपक जलाकर १०८ पाठ नित्य ४१ दिन तक करने पर सभी बाधाओं का शमन होकर अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है ।
शत्रु नाश हेतु , राज बन्धन मुक्ति, रोग निवारण, किसी भी विपत्ति के निवारन हेतु, पाठ प्रारम्भ करने से पेहले निम्न मन्त्र कि १,५ य ११ मालाये जपे मूंगे की माला से ।
मन्त्र: ॥ ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट ॥
विनियोगः- ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये ।
ध्यानः-
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।
अन्त मे अपनी समस्त गलतियो कि क्षमा मांगते हुएे हनुमान चालिसा का पाठ करे और अपने पाथ हनुमान जी को अर्पित कर दे ।

Tuesday 26 December 2017

तिल का तेल अगर आपको अपनी कोई मनोकामना पूर्ण करवानी है

तिल का तेल
अगर आपको अपनी कोई मनोकामना पूर्ण करवानी है तो शनिवार या मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर जाकर तिल का तेल चढ़ाएं। ध्यान रहे, हनुमान जी के समक्ष चमेली के तेल का दीपक नहीं जलाया जाता वरन् उनके शरीर पर चमेली का तेल लगाया जाता है।
सरसों का तेल

शनिवार के दिन आपको सरसों के तेल में अपना चेहरा देखकर उसे शनि मंदिर में रख आएं। इसके अलावा शनिदेव पर तेल भी चढ़ाएं, ऐसा करने से उनकी कृपा हमेशा आप के ऊपर बनी रहेगी।
असाध्य रोगों से मुक्ति
असाध्य रोगों से मुक्ति पाने के लिए लगातार 41 दिनों तक पीपल के पेड़ के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाएं। इसके अलावा विभिन्न साधनाओं के लिए भी तिल के तेल का प्रयोग अच्छा माना गया है।
शारीरिक बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए
शनिवार के दिन सरसों के तेल में सवा किलो आलू और बैंगन की सब्जी बनाकर, सवा किलो आटे की पूड़ियों के साथ नेत्रहीनों, विक्लांगों और निर्धन लोगों को भोजन करवाएं। लगातार तीन शनिवार तक ऐसा करने से शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं।
दुर्भाग्य
अगर दुर्भाग्य आपका पीछा नहीं छोड़ रहा है तो गेहूं के आटे और गुड़ के पुए को सरसों के तेल में सेंककर सात मदार या आक के फूल, सिंदूर, आटे का दीपक, पत्तल या अरंडी के पत्तल पर रखकर शनिवार की रात किसी चौराहे पर रख आएं और पीछे मुड़कर ना देखें।
अनिष्ट से बचने के लिए
अनिष्ट या फिर अन्य किसी बाधा से बचने के लिए कच्ची घानी के तेल में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। इससे हर तरह की बाधा से मुक्ति मिलेगी और साथ ही धन की भी प्राप्ति होगी।
घर में सुख-शांति के लिए
सरसों के तेल और आटे का दान करना घर में हर तरह के क्लेश और झगड़े को खत्म करता है। आप इसे किसी भी मंदिर या आश्रम में दान कर सकते हैं।
नया घर पाने के लिए
तिल के तेल में थोड़ा सरसों का तेल मिलाकर लोहे के दीपक जलाएं और इसे शमी के पेड़ के सामने जलाएं। इसके बाद इस दीपक को जल में प्रवाहित कर दें। लगातार आठ शनिवार तक ऐसा करने से घर खरीदने की आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी।
शराब छुड़वाने के लिए
शनिवार के दिन नशे के आदि हो चुके व्यक्ति के सो जाने के बाद उसके सिर के ऊपर से 21 बार शराब की बोतल वारें। फिर उस बोतल में करीब 800 ग्राम सरसों का तेल मिलाकर पानी के किनारे कुछ इस तरह गाड़ दें कि बोतल के ऊपर से जल लगातार बहता रहे। यह लाल किताब का उपाय है लेकिन इसे करने से पहले किसी विशेषज्ञ की राय अवश्य लें।
व्यवसाय की बढ़ोत्तरी के लिए
अगर आपका व्यवसाय शिथिल पड़ गया है, आपको अत्याधिक आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो किसी साफ शीशी में सरसों का तेल भरकर उसे किसी तालाब या नदी में डाल दें। ऐसा करने से मंदी का दौर आपको परेशान करना बंद कर देगा।
रोगी की जान बचाने के लिए
अगर आपको लगता है कि रोग के कारण किसी की मृत्यु हो सकती है तो गुड़ को सरसों के तेल में मिलाकर उस व्यक्ति के सिर से 7 बार वारकर मंगलवार या शनिवार भैंस को खिला दें। यह काम लगातार 5 शनिवार तक करना चाहिए लेकिन किसी विशेषज्ञ से पूछकर।
जल्द ही मनोकामना पूर्ण करने के लिए
पीपल के पेड़ के समक्ष 41 दिनों तक लगातार सरसों के तेल का दीपक जलाने से जल्द ही मनोकामना पूर्ण हो जाती है !

आइये जाने मनोकामना पूर्ति के अचूक गुप्त उपाय(टोने-टोटके)

आइये जाने मनोकामना पूर्ति के अचूक गुप्त उपाय(टोने-टोटके)—-आइये जाने मनोकामना पूर्ति के अचूक गुप्त उपाय(टोने-टोटके)—-हर मनुष्य की कुछ मनोकामनाएं होती है। कुछ लोग इन मनोकामनाओं को बता देते हैं तो कुछ नहीं बताते। चाहते सभी हैं कि किसी भी तरह उनकी मनोकामना पूरी हो जाए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। यदि आप चाहते हैं कि आपकी सोची हर मुराद पूरी हो जाए तो नीचे लिखे प्रयोग करें। इन टोटकों को करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगी।उपाय—-– तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल चढ़ाएं तथा गाय के घी का दीपक लगाएं।– रविवार को पुष्य नक्षत्र में श्वेत आक की जड़ लाकर उससे श्रीगणेश की प्रतिमा बनाएं फिर उन्हें खीर का भोग लगाएं। लाल कनेर के फूलतथा चंदन आदि के उनकी पूजा करें। तत्पश्चात गणेशजी के बीज मंत्र (ऊँ गं) के अंत में नम: शब्द जोड़कर 108 बार जप करें।– सुबह गौरी-शंकर रुद्राक्ष शिवजी के मंदिर में चढ़ाएं।– सुबह बेल पत्र (बिल्ब) पर सफेद चंदन की बिंदी लगाकर मनोरथ बोलकर शिवलिंग पर अर्पित करें।– बड़ के पत्ते पर मनोकामना लिखकर बहते जल में प्रवाहित करने से भी मनोरथ पूर्ति होती है। मनोकामना किसी भी भाषा में लिख सकते हैं।– नए सूती लाल कपड़े में जटावाला नारियल बांधकर बहते जल में प्रवाहित करने से भी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।इन प्रयोगों को करने से आपकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी हो जाएंगी।इन उपायों से आएगी जीवन में खुशहाली —सभी चाहते हैं कि उसके जीवन में खुशहाली रहे और सुख-शांति बनी रहे पर हर व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं होता। जीवन में सुख और शांति का बना रहना काफी मुश्किल होता है। ऐसे समय में उसे अपना जीवन नरक लगने लगता है। यदि आपके साथ भी यही समस्या है तो आप नीचे लिखे साधारण उपायों को अपनाकर अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। यह उपाय इस प्रकार हैं-– सुबह घर से काम के लिए निकलने से पहले नियमित रूप से गाय को रोटी दें।– एक पात्र में जल लेकर उसमें कुंकुम डालकर बरगद के वृक्ष पर नियमित रूप से चढ़ाएं।– सुबह घर से निकलने से पहले घर के सभी सदस्य अपने माथे पर चन्दन तिलक लगाएं।– मछलियों की आटे की गोली बनाकर खिलाएं।– चींटियों को खोपरे व शकर का बूरा मिलाकर खिलाएं।– शुद्ध कस्तूरी को चमकीले पीले कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रखें।इन उपायों को पूर्ण श्रद्धा के साथ करने से जीवन में समृद्धी व खुशहाली आने लगती है।अपने पति को खिलाएं खीर, बढ़ेगा प्रेम—अगर आपके दाम्पत्य जीवन में पहले जैसी मधुरता नहीं रही या फिर रोज किसी न किसी बात पर पति-पत्नी के बीच झगड़े होते हों तो समझ लीजिएकि आपके दाम्पत्य जीवन में प्रेम का अभाव हो गया है। इस प्रेम को बढ़ाने के लिए एक छोटा मगर असरदार उपाय इस प्रकार है-उपाय—शुक्ल पक्ष में पडऩे वाले किसी शुक्रवार के दिन पत्नी अपने हाथों से प्रेम पूर्वक साबूदाने की खीर बनाएं लेकिन उसमें शक्कर के स्थान पर मिश्री डालें। इस खीर को सबसे पहले भगवान को अर्पित करें और इसके बाद पति-पत्नी थोड़ी-थोड़ी एक-दूसरे को खिलाएं। भगवान से सुखमय दाम्पत्य की कामना करें। इस दिन किसी लक्ष्मी मंदिर में जाकर इत्र का दान करें। अपने शयनकक्ष में इत्र कदापि न रखें। कुछ दिनोंतक यह प्रयोग करते रहें । कुछ ही दिनों में दाम्पत्य जीवन सुखी हो जाएगा।इस उपाय से आप अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते हें —हर इंसान अपने दुर्भाग्य से पीछा छुड़ाना चाहता है। लेकिन दुर्भाग्य से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं होता क्योंकि जब समय बुरा होता है तो साया भी साथ छोड़ देता है। अगर आप चाहते हैं कि आपका दुर्भाग्य, सौभाग्य में बदल जाए तो नीचे लिखे उपाय करें। यह उपाय आपके दुर्भाग्य कौ सौभाग्य में बदल देंगे।उपाय—-1- बरगद(बड़) के पत्ते को गुरु पुष्य या रवि पुष्य योग में लाकर उस पर हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें।2- घर के मुख्य द्वार के ऊपर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा अथवा चित्र इस प्रकार लगाएं कि उनका मुख घर के अंदर की ओर रहे। उस पर सुबह दूर्वा अवश्य अर्पित करें।3- धन संबंधी कार्य सोमवार एवं बुधवार को करें।4- नए कार्य, व्यवसाय, नौकरी, रोजगार आदि शुभ कार्यों के लिए जाते समय घर की कोई महिला एक मुठ्ठी काले उड़द उस व्यक्ति के ऊपर से उतार कर भूमि पर छोड़ दे तो हर कार्य में सफलता मिलेगी।5- गरीब, असहाय, रोगी व किन्नरों की सहायता दान स्वरूप अवश्य करें। यदि संभव हो तो किन्नरों को दिए पैसे में से एक सिक्का वापस लेकर अपने कैश बॉक्स या लॉकर में रखें। इससे बहुत लाभ होगा।6- काली हल्दी की एक गांठ शुभ मुहूर्त में प्राप्त कर अपने घर में, व्यवसायी अपने कैश बॉक्स में तथा व्यापारी अपने गल्ले में रखें।7- रवि पुष्य नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में बहेड़े की जड़ या एक पत्ता तथा शंखपुष्पी की जड़ लाकर घर में रखें। चांदी की डिब्बी में रखें तो और भी शुभ रहेगा।जानिए क्या अंतर है ‘टोने’ व ‘टोटके’ में?टोने-टोटके, यह शब्द हम कई बार सुनते हैं। सुनने में यह शब्द थोड़े अजीब जरुर लगते हैं लेकिन यह तंत्र शास्त्र के एक सिक्के के दो पहलू हैं बस इनकी क्रियाओं में थोड़ा अंतर है। साधारण भाषा में कहें तो दैनिक जीवन में किए जाने वाले छोटे-छोटे उपाय टोटका कहलाते हंै जबकि टोने विशेषत: समय पडऩे पर ही प्रयोग में लाए जाते हैं। वह किसी विशेष कार्य सिद्धि के लिए किए जाते हैं। जानते हैं इनके बीचक्या अंतर है-टोटका—–जब हम किसी यात्रा पर जा रहे हो और अचानक कोई छींक दे तो हम थोड़ी देर रुक जाते हैं। ऐसे ही जब बिल्ली रास्ता काट जाती है तो हम थोड़ी देर रुक कर चलते हैं या रास्ता बदल लेते हैं। यात्रा पर किसी विशेष कार्य पर जाने से पहले पानी पीना या दही का सेवन करना, यह सबटोटका कहलाता है। टोटके साधारण प्रभावशाली होते हैं व इनके निराकरण भी साधारण ही होते हैं।टोना—–विशेष कार्य सिद्धि के लिए हनुमान चालीसा, गायत्री मंत्र या किसी अन्य मंत्र का जप विधि-विधान से जप करना टोना कहलाता है। किसी यंत्रअथवा वस्तु को अभिमंत्रित करके अपने पास रखना भी टोना का ही एक रूप है। टोना टोटके का ही जटिल रूप है जो किसी विशेष कार्य की सफलता के लिए पूरे विधि-विधान से किया जाता है। टोना के लिए समय, मुहूर्त, स्थान आदि सब कुछ नियत होता है।जब टोटके करें तो इन बातों का भी ध्यान रखें—तंत्र शास्त्र में कई प्रकार के टोटके किए जाते हैं। सभी का उद्देश्य अलग-अलग होता है। उद्देश्य के अनुसार ही उन टोटकों को करने के लिए शुभ तिथि व महीना निश्चित है। यदि इस दौरान वह टोटके किए जाए तो कई गुना अधिक फल देते हैं। नीचे टोटकों से संबंधित कुछ साधारण दिशा-निर्देश दिए गए हैं। टोटके करते समय इनका ध्यान रखें-दिशा-निर्देश—-– सम्मोहन सिद्धि, देव कृपा प्राप्ति अथवा अन्य शुभ एवं सात्विक कार्यों की सिद्धि के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके टोटके किए जातेहैं।– मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किए जाने वाले टोटकों के लिए पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ होता है।– उत्तर दिशा की ओर मुख करके उन टोटकों को किया जाता है जिनका उद्देश्य रोगों की चिकित्सा, मानसिक शांति एवं आरोग्य प्राप्ति होता है।– रोग मुक्ति के लिए किए जाने वाले टोटकों के लिए मंगलवार एवं श्रावण मास उत्तम समय है।– मां सरस्वती की प्रसन्नता व शिक्षा में सफलता के लिए बुधवार एवं गुरुवार तथा माघ, फाल्गुन और चैत्र मास में टोटका करना चाहिए।– संतान और वैभव पाने के लिए गुरुवार तथा आश्विन, कार्तिक एवं मार्गशीर्ष मास में टोटकों का प्रयोग करना चाहिए।


ऐसा शक्तिशाली मंत्र कि सुनने से ही किस्मत बदल जाए

ऐसा शक्तिशाली मंत्र कि सुनने से ही किस्मत बदल जाए
मंत्रों में अथाह शक्ति है। मंत्रों के जाप से संन्यासियों ने देवों से भी मनचाहे वर प्राप्त् किए हैं। ऐसे में आपको बता रहे हैं एक ऐसा शक्तिशाली मंत्र जिसको सुनने भर से किस्मत के ताले खुल जाते हैं और किस्मत बदल जाती है।
शास्त्रों में ब्रह्मा जी को सृष्ष्टि का सृजनकार, महादेव को संहारक और भगवान विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। हिंदू धर्म में विष्णु सहस्रनाम सबसे पवित्र स्त्रोतों में से एक माना गया है। मान्यता है कि इसके पढ़ने-सुनने से इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ये स्त्रोत संस्कृत में होने से आम लोगों को पढ़ने में कठिनाई आती है इसलिए इस सरल से मंत्र का उच्चारण करके वैसा ही फल प्राप्त कर सकते हैं जो विष्णु सहस्रनाम के जाप से मिलता है

नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये,
सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे,
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते,
सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:..

जीवन में आने वाली किसी भी तरह कि बाधाओं से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन सुबह इस मंत्र का जाप करें। कहते हैं कि महाभारत में जब भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर थे उस समय युधिष्ठिर ने उनसे पूछा कि, “कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है?” तब उन्होंने भगवान विष्णु के एक हजार नाम बताए थे।
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि हर युग में इन नामों को पढ़ने या सुनने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यदि प्रतिदिन इन एक हजार नामों का जाप किया जाए तो सभी मुश्किलें हल हो सकती हैं।

एक लौंग बदल सकती है आपकी किस्मत,

एक लौंग बदल सकती है आपकी किस्मत,
आज हम आपको शास्त्रों में लिखा गया लौंग से जुड़ा एक उपाय बताने जा रहे हैं. अगर लौंग का ये उपाय ठीक से किए जाए तो आपकी जिंदगी बदल सकती है. शास्त्रों में लौंग को बहुत महत्चपूर्ण स्थान दिया गया है. अगर आप परेशान हैं, नौकरी नहीं मिल रही, पैसा ठीक तरह से नहीं आ रहा, तो बस दिए गए उपाय को करते जाएं. आप अपने आप सारी परेशानियों से बाहर निकल जाएंगे.

तो ये उपाय ध्यान से सुनिए.
इस उपाय को करने के लिए आपको एक लौंग लेनी है. लौंग लेते समय इस बात का ध्यान रहे कि लौंग पूरी साबुत होनी चाहिए. उसके ऊपर का फूल भी बना होना चाहिए.
उसके बाद एक दिया अपने घर के पूजाघर में जलाइये. याद रहे यह उपाय आपको रात के 9 बजे के बाद ही करना है. दीपक को जलाने के बाद लौंग को हाथ में लेकर महालक्ष्मी का महामंत्र “ओम श्रीं श्रियै नम:” का 7 बार जाप किजिए.
उसके बाद आपकी जो भी इच्छा है वो मन में तीन बार बोलनी है. ये करने के बाद आप उस लौंग के ऊपर तीन बार फूंक मारें और फिर इस लौंग को अपने हाथ में रखकर चुपचाप अपनी छत पर आ जाएं. और अपनी पूरी छत के तीन उल्टे चक्कर मारें. अगर आपके घर में छत न हो तो आप अपने घर के तीन उल्टे चक्कर मारें. उसके बाद लौंग को वहीं छत पर दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें. और नीचे आ जाएं.
इस उपाय के बारे में आपको अपने घर में किसी को बताना नहीं है. अगर आप किसी को बताते हैं तो इस उपाय का फल नहीं मिलेगा. इस उपाय के बाद आप देंखेंगे की आपकी सारी परेशानियां एक एक कर खत्म हो रही हैं.


Monday 25 December 2017

जाने क्या होता है तंत्र, मंत्र, यंत्र और योग साधना

जाने क्या होता है तंत्र, मंत्र, यंत्र और योग साधना
हिंदू धर्म में हजारों तरह की साधनाओं का वर्णन मिलता है। साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि या तो वह उससे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ।
मूलत: साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं- तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना। तीनों ही तरह की साधना के कई उप प्रकार हैं। आओ जानते हैं साधना के तरीके और उनसे प्राप्त होने वाला लाभ
1.) तंत्र साधना:-
तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।
शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥
अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।
इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:-
मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्‌।
आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥
मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।
रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्‌॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्‌।
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्‌।
जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।
2.) मंत्र साधना
मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है। मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है। मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। ‘मंत्र साधना’ भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है।
मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र।
मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।
वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।
मंत्र नियम :
मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है।
किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।
3.) यंत्र साधना
यंत्र साधना सबसे सरल है। बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखें लोग तो अपने आप कार्य सफल होते जाएंगे। यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं।
यं‍त्र को दो प्रकार से बनाया जाता है- अंक द्वारा और मंत्र द्वारा। यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं। श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं।
इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनाई जाती हैं। इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है। इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है।
यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाए जाते हैं।
दिशा- प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं। धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं। वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं। इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है
4.) योग साधना
सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गई है योग साधना। यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है। इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं। योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है- 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः'।
मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है। इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है। उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं।
योग साधना द्वार अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है। सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है।

मां सरस्वती

मां सरस्वती
सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। सरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुँह से हुआ था। वह वाणी की अधिष्ठात्री देवी है। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है।
सरस्वती देवी
धार्मिक मान्यताएँ
ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा अपनी पुत्री सरस्वती पर ही आसक्त हो गये। वे उसके पास गमन के लिए तत्पर हुए। सभी प्रजापतियों ने अपने पिता ब्रह्मा को न केवल समझाया, अपितु उनके विचार की हीनता की ओर भी संकेत किया। ब्रह्मा ने लज्जावश वह शरीर त्याग दिया, जो कुहरा अथवा अंधकार के रूप में दिशाओं में व्याप्त हो गया।
वेदज्ञ पुरूरवा ने ब्रह्मा के निकट हास करती हुई सरस्वती को देखा। उर्वशी के द्वारा उसने सरस्वती को अपने पास बुलाया। तदनंतर दोनों परस्पर मिलते रहे। सरस्वती ने ‘सरस्वान्’ नामक पुत्र को जन्म दिया। कालांतर में ब्रह्मा को पता चला तो उन्होंने सरस्वती को महानदी होने का शाप दिया। भयभीता सरस्वती गंगा माँ की शरण में जा पहुँची। गंगा के कहने पर ब्रह्मा ने सरस्वती को शाप-मुक्त कर दिया। शापवश ही वह मृत्युलोक में कहीं दृश्य और कहीं अदृश्य रूप में रहने लगी।
सोम तथा सरस्वती की कथा
सोम की प्राप्ति पहले गंधर्वों को हुई। देवताओं ने जाना तो सोम प्राप्त करने के उपाय सोचने लगे। सरस्वती ने कहा- “गंधर्व स्त्री-प्रेमी हैं, उनसे मेरे विनिमय में सोम ले लो। मैं फिर चतुराई से तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’’ देवगिरि पर यज्ञ करके देवताओं ने वैसा ही किया। गंधर्वों के पास न तो सोम ही रहा, न सरस्वती।
सरस्वती पूजन
श्री कृष्ण ने भारतवर्ष में सर्वप्रथम सरस्वती की पूजा का प्रसार किया। सरस्वती ने राधा के जिव्ह्याग्र भाग से आविर्भूत होकर कामवश श्री कृष्ण को पति बनाना चाहा। कृष्ण ने सरस्वती से कहा—“मेरे अंश से उत्पन्न चतुर्भुज नारायण मेरे ही समान हैं’’-- वे नारी के हृदय की विलक्षण वासना से परिचित हैं, अत: तुम उनके पास वैकुंठ में जाओ। मैं सर्वशक्ति सम्पन्न होते हुए भी राधा के बिना कुछ नहीं हूँ। राधा के साथ-साथ तुम्हें रखना मेरे लिए संभव नहीं। नारायण लक्ष्मी के साथ तुम्हें भी रख पायेंगे। लक्ष्मी और तुम समान सुंदर तथा ईर्ष्या के भाव से मुक्त हो। माघ मास की शुक्ल पंचमी पर तुम्हारा पूजन चिरंतन काल तक होता रहेगा तथा वह विद्यारम्भ का दिवस माना जायेगा। वाल्मीकि, बृहस्पति, भृगु इत्यादि को क्रमश: नारायण, मरीचि तथा ब्रह्मा आदि ने सरस्वती-पूजन का बीजमन्त्र दिया था।
हिन्दूधर्म में ज्ञान की देवी हैं- माँ सरस्वती
सरस्वती विद्या की देवी हैं। यह देवी मनुष्य समाज को महानतम सम्पत्ति-ज्ञानसम्पदा प्रदान करती है। वेदों में सरस्वती का वर्णन श्वेत वस्त्रा (जो श्वेत परिधान से आवरित है) के रूप में किया गया है। श्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं, तथा श्वेत कमल गुच्छ पर ये विराजमान हैं। इनके हाथ में वीणा (सितार से मिलता-जुलता तारयुक्त वाद्य) शोभित है। वेद इन्हें जलदेवी के रूप में महत्ता देते हैं, एक नदी का नाम भी सरस्वती है। सरस्वती का पौराणिक इतिहास इन्हें उन धार्मिक कृत्यों से जोड़ता है, जो इन्हीं के नाम वाग्देवी के रूप में की जाती है तथा इनका संबंध बोलने व लिखने, शब्द की उत्पत्ति, दिव्यश्लोक विन्यास तथा संगीत से भी है।
सरस्वती द्वारा दिया गया शाप
लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा नारायण के निकट निवास करती थीं। एक बार गंगा ने नारायण के प्रति अनेक कटाक्ष किये। नारायण तो बाहर चले गये किन्तु इससे सरस्वती रुष्ट हो गयी। सरस्वती को लगता था कि नारायण गंगा और लक्ष्मी से अधिक प्रेम करते हैं। लक्ष्मी ने दोनों का बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया। सरस्वती ने लक्ष्मी को निर्विकार जड़वत् मौन देखा तो जड़ वृक्ष अथवा सरिता होने का शाप दिया। सरस्वती को गंगा की निर्लज्जता तथा लक्ष्मी के मौन रहने पर क्रोध था। उसने गंगा को पापी जगत का पाप समेटने वाली नदी बनने का शाप दिया। गंगा ने भी सरस्वती को मृत्युलोक में नदी बनकर जनसमुदाय का पाप प्राक्षालन करने का शाप दिया। तभी नारायण भी वापस आ पहुँचे। उन्होंने सरस्वती का आर्लिगन कर उसे शांत किया तथा कहा—“एक पुरुष अनेक नारियों के साथ निर्वाह नहीं कर सकता। परस्पर शाप के कारण तीनों को अंश रूप में वृक्ष अथवा सरिता बनकर मृत्युलोक में प्रकट होना पड़ेगा। लक्ष्मी! तुम एक अंश से पृथ्वी पर धर्म-ध्वज राजा के घर अयोनिसंभवा कन्या का रूप धारण करोगी, भाग्य-दोष से तुम्हें वृक्षत्व की प्राप्ति होगी। मेरे अंश से जन्मे असुरेंद्र शंखचूड़ से तुम्हारा पाणिग्रहण होगा। भारत में तुम ‘तुलसी’ नामक पौधे तथा पदमावती नामक नदी के रूप में अवतरित होगी। किन्तु पुन: यहाँ आकर मेरी ही पत्नी रहोगी। गंगा, तुम सरस्वती के शाप से भारतवासियों का पाप नाश करने वाली नदी का रूप धारण करके अंश रूप से अवतरित होगी। तुम्हारे अवतरण के मूल में भागीरथ की तपस्या होगी, अत: तुम भागीरथी कहलाओगी। मेरे अंश से उत्पन्न राजा शांतनु तुम्हारे पति होंगे। अब तुम पूर्ण रूप से शिव के समीप जाओ। तुम उन्हीं की पत्नी होगी। सरस्वती, तुम भी पापनाशिनी सरिता के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होगी। तुम्हारा पूर्ण रूप ब्रह्मा की पत्नी के रूप में रहेगा। तुम उन्हीं के पास जाओ।’’ उन तीनों ने अपने कृत्य पर क्षोभ प्रकट करते हुए शाप की अवधि जाननी चाही। कृष्ण ने कहा—“कलि के दस हज़ार वर्ष बीतने के उपरान्त ही तुम सब शाप-मुक्त हो सकोगी।’’ सरस्वती ब्रह्मा की प्रिया होने के कारण ब्राह्मी नाम से विख्यात हुई।
मत्स्य पुराण के अनुसार
ब्रह्मा ने लोक-रचना करने क्र निमित्त सावित्री का ध्यान कर तपस्या आरंभ की। ब्रह्मा का शरीर दो भागों में विभक्त हो गया-
आधा पुरुष-रूप (मनु) तथा
आधा स्त्री-रूप (शतरूपा सरस्वती)।
सरस्वती देवी
कालांतर में ब्रह्मा अपनी देहजा सरस्वती पर आसक्त हो गये। देवताओं के मना करने पर भी उनकी आसक्ति समाप्त नहीं हुई। सरस्वती ‘पिता’ को प्रमाण करके उनकी प्रदक्षिणा कर रही थी। ब्रह्मा के मुख के दाहिनी ओर दूसरा लज्जा से पीतवर्ण वाला मुख प्रादुर्भूत हुआ, फिर पीछे की ओर तीसरा और बायीं ओर चौथा मुख आविर्भूत हुआ। सरस्वती स्वर्ग की ओर जाने के लिए उद्यत हुई तो ब्रह्मा के सिर पर पांचवां मुख भी उत्पन्न हुआ जो कि जटाओं से ढका रहता है। ब्रह्मा ने मनु को सृष्टि-रचना के लिए पृथ्वी पर भेजकर शतरूपा (सरस्वती) से पाणि-ग्रहण किया, फिर समुद्र में विहार करते रहे। ब्रह्मा को इस कुकृत्य का दोष नहीं लगा, क्योंकि सरस्वती उनका अपना अंग थी। वेदों में ब्रह्मा और सरस्वती का अमूर्त निवास रहता है। दोनों की सर्वत्र अमूर्त उपस्थिति की अनिवार्यता पर ध्यान देकर तथा यह देखकर कि वह ब्रह्मा का अनिवार्य अंग है, ब्रह्मा को दोषी नहीं ठहराया गया।
श्वेत पद्म पर आसीना, शुभ्र हंसवाहिनी, तुषार धवल कान्ति, शुभ्रवसना, स्फटिक माला धारिणी, वीणा मण्डित करा, श्रुति हस्ता वे भगवती भारती प्रसन्न हों, जिनकी कृपा मनुष्य में कला, विद्या, ज्ञान तथा प्रतिभा का प्रकाश करती है। वही समस्त विद्याओं की अधिष्ठात्री हैं। यश उन्हीं की धवल अंग ज्योत्स्ना है। वे सत्त्वरूपा, श्रुतिरूपा, आनन्दरूपा हैं। विश्व में सुख, सौन्दर्य का वही सृजन करती हैं।
वे अनादि शक्ति भगवान ब्रह्मा के कार्य की सहयोगिनी हैं। उन्हीं की कृपा से प्राणी कार्य के लिये ज्ञान प्राप्त करता है। उनका कलात्मक स्पर्श कुरुप को परम सुन्दर कर देता है। वे हंसवाहिनी हैं। सदसद्विवेक ही उनका वास्तविक प्रसाद है। भारत में उनकी उपासना सदा होती आयी है। महाकवि कालिदास ने उन्हें प्रसन्न किया था। प्रत्येक कवि उनके पावन पदों का स्मरण करके ही अपना काव्यकर्म प्रारम्भ करता था, यह यहाँ की सनातन परम्परा थी।
प्रतिभा की उन अधिष्ठात्री के चरित तो सर्वत्र प्रत्यक्ष हैं। समस्त वाड्मय, सम्पूर्ण कला और पूरा विज्ञान उन्हीं का वरदान है। मनुष्य उन जगन्माता की अहैतु की दया से प्राप्त शक्ति का दुरूपयोग करके अपना नाश कर लेता है और उनको भी दुखी करता है। ज्ञान-प्रतिमा भगवती सरस्वती के वरदान का सदुपयोग है अपने ज्ञान, प्रतिभा और विचार को भगवान में लगा देना। वह वरदान सफल हो जाता है। मनुष्य कृतार्थ हो जाता है। भगवती प्रसन्न होती हैं।
'भारतीय प्राचीन कला प्राय: मन्दिरों में व्यक्त हुई है।' पाश्चात्य विद्वानों के ये आक्षेप ठीक ही हैं। भारत ने नश्वर मनुष्य और उसके नश्वर अर्थहीन कृत्यों को व्यर्थ स्थायी करने का प्रयत्न नहीं किया। भारत पर भगवती भारती की सदा समुज्ज्वल कृपा रही। मानव-अमृतपुत्र मानव को उन्होंने नित्य अमरत्व का मार्ग दिखाया। मानव ने अपनी क्रिया का आधार उस नित्यतत्त्व को बनाया, जहाँ क्रिया नष्ट होकर भी शाश्वत हो जाती है। कला उस चिरन्तन ज्योतिर्मय से एक होकर धन्य हो गयी। वह स्थूल जगत में भले नित्य न हो, अपने उद्गम को नित्य जगत में पहुँचाने में सफल हुई।
भगवती सरस्वती के दिव्य रूप को न समझकर उनके मंजु प्रकाश के क्षुद्रांश में भ्रान्त मनुष्य उस प्रकाश का दुरूपयोग करने लगा है। अन्धकार के गर्त में गिरता तो कदाचित कहीं अटकता भी; पर वह तो प्रकाश में कूद रहा है नीचे घोर अतल अन्धकार में।
भगवती शारदा के मन्दिर हैं, उपासना-पद्धति है, उनकी उपासना से सिद्ध महाकवि एवं विद्वानों के इतिहास में चारू चरित हैं। यह सब होकर भी उनकी कृपा और उपासना का फल केवल यश नहीं। यश तो उनकी कृपा का उच्छिष्ट है। फल तो है परमतत्त्व को प्राप्त कर लेना। इसी फल के लिये श्रुतियाँ उन वाग्देवी की स्तुति करती हैं।
सरस्वती देवी के अत्यंत छोटे सरल मं‍त्र
सरस्वती देवी के मंत्र बहुत फलदायी कहे गए हैं। इनके द्वारा विधि-विधान से सरस्वती साधना करके अनेक महापुरुष परम प्रज्ञावान हो चुके हैं। सरस्वती साधक को शुद्ध आचरण करते हुए निम्न मंत्रों में से किसी एक मंत्र का 108 बार जाप नियमित करना चाहिए। इससे साधक को बुद्धि, विद्या और अच्छा स्वास्थ्य सभी कुछ प्राप्त होता है....
एकाक्षर सरस्वती मंत्र
ऐं
द्वयक्षर सरस्वती मंत्र
1 आं लृं
2 ऐं लृं
त्र्यक्षर सरस्वती मंत्र
ऐं रुं स्वों।
चतुर्क्षर सरस्वती मंत्र
ॐ ऐं नमः।
कैसे करें विद्या की देवी सरस्वती की पूजा...
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. माना जाता है कि इसी दिन शब्दों की शक्ति मनुष्य की झोली में आई थी. इस दिन बच्चों को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है. मां सरस्वती की सबसे प्रचलित स्तुति...
इस दिन पितृ तर्पण किया जाता है और कामदेव की पूजा भी की जाती है. इस दिन पहनावा भी परंपरागत होता है. मसलन पुरुष कुर्ता-पायजामा पहनते हैं, तो महिलाएं पीले रंग के कपड़े पहनती हैं. इस दिन गायन-वादन के साथ अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं.
सरस्वती को समस्त ज्ञान, साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है. शिक्षण संस्थाओं में वसंत पंचमी बड़े की धूमधाम से मनाई जाती है. यह श‍िक्षा ही तो मनुष्य को पशुओं से अलग बनाती है.
मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करने के बाद मनुष्य की रचना की. मनुष्य की रचना के बाद उन्होंने अनुभव किया कि केवल इससे ही सृष्टि की गति नहीं दी जा सकती है.
विष्णु से अनुमति लेकर उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना की, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी. शब्द के माधुर्य और रस से युक्त होने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा. सरस्वती ने जब अपनी वीणा को झंकृत किया, तो समस्त सृष्टि में नाद की पहली अनुगूंज हुई. चूंकि सरस्वती का अवतरण माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है.
यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु के कथन के अनुसार ब्रह्मा जी ने सरस्वती देवी का आह्वान किया. सरस्वती माता के प्रकट होने पर ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया. माता सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ, उससे 'सा' शब्द फूट पड़ा. यह शब्द संगीत के सात सुरों में प्रथम सुर है. इस ध्वनि से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा. हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों और अन्य जीवों को वाणी मिल गयी. नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी. इससे ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए 'वागेश्वरी' नाम दिया.
मां सरस्वती के पूजन की विधि
ज्ञान और वाणी के बिना संसार की कल्पना करना भी असंभव है. माता सरस्वती इनकी देवी हैं. अत: मनुष्य ही नहीं, देवता और असुर भी माता की भक्ति भाव से पूजा करते हैं. सरस्वती पूजा के दिन लोग अपने-अपने घरों में माता की प्रतिमा की पूजा करते हैं. पूजा समितियों द्वारा भी सरस्वती पूजा के अवसर पर पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है.
सरस्वती पूजा करते समय सबसे पहले सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखना चाहिए. इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत् पूजा करनी चाहिए. इसके बाद माता सरस्वती की पूजा करें. सरस्वती माता की पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन और स्नान कराएं. इसके बाद माता को फूल, माला चढ़ाएं. सरस्वती माता को सिन्दूर, अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करनी चाहिए. वसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित किया जाता है. देवी सरस्वती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं. सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं. प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदियां अर्पित करनी चाहिए. इस दिन सरस्वती माता को मालपुए और खीर का भी भोग लगाया जाता है.
सरस्वती पूजन के लिए हवन
सरस्वती पूजा करने बाद सरस्वती माता के नाम से हवन करना चाहिए. हवन के लिए हवन कुण्ड अथवा भूमि पर सवा हाथ चारों तरफ नापकर एक निशान बना लेना चाहिए. अब इस भूमि को कुशा से साफ करके गंगा जल छिड़ककर पवित्र करें और यहां पर हवन करें. हवन करते समय गणेश जी, नवग्रह के नाम से हवन करें. इसके बाद सरस्वती माता के नाम से 'ओम श्री सरस्वत्यै नम: स्वहा" इस मंत्र से एक सौ आठ बार हवन करना चाहिए. हवन के बाद सरस्वती माता की आरती करें और हवन का भभूत लगाएं.
सरस्वती विसर्जन
माघ शुक्ल पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा के बाद षष्ठी तिथि को सुबह माता सरस्वती की पूजा करने के बाद उनका विसर्जन कर देना चाहिए. संध्या काल में मूर्ति को प्रणाम करके जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.
सरस्वती पूजन के पीछे पौराणिक मान्यताएं:
1. श्रीकृष्ण ने की सरस्वती की प्रथम पूजा
इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे भी पौराणिक कथा है. इनकी सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने ही की है. देवी सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा, तो उनके रूप पर मोहित हो गईं और पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं. भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं. परंतु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण ने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाला माघ मास की शुक्ल पंचमी को तुम्हारा पूजन करेगा. यह वरदान देने के बाद स्वयं श्रीकृष्ण ने पहले देवी की पूजा की.
2. ब्रह्माजी ने की सरस्वती की रचना
सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्माजी ने जब धरती को मूक और नीरस देखा तो अपने कमंडल से जल लेकर छिड़क दिया. इससे सारी धरा हरियाली से भर गई, पर साथ ही देवी सरस्वती का उद्भव हुआ, जिसे ब्रह्माजी ने आदेश दिया कि वीणा और पुस्तक से इस सृष्टि को आलोकित करें. तभी से देवी सरस्वती के वीणा से झंकृत संगीत में प्रकृति विहंगम नृत्य करने लगती है.
3. शक्ति के रूप में भी मां सरस्वती
मत्स्यपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, मार्कण्डेयपुराण, स्कंदपुराण तथा अन्य ग्रंथों में भी देवी सरस्वती की महिमा का वर्णन किया गया है. इन धर्मग्रंथों में देवी सरस्वती को सतरूपा, शारदा, वीणापाणि, वाग्देवी, भारती, प्रज्ञापारमिता, वागीश्वरी तथा हंसवाहिनी आदि नामों से संबोधित किया गया है. 'दुर्गा सप्तशती' में मां आदिशक्ति के महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूपों का वर्णन और महात्म्य बताया गया है.
4. कुंभकर्ण की निद्रा का कारण बनीं सरस्वती
कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की. जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए, तो देवों ने निवेदन किया कि आप इसको वर तो दे रहे हैं, लेकिन यह आसुरी प्रवृत्ति का है और अपने ज्ञान और शक्ति का कभी भी दुरुपयोग कर सकता है. तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया. सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं. सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा- 'मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है.' इस तरह त्रेता युग में कुंभकर्ण सोता ही रहा और जब जागा तो भगवान श्रीराम उसकी मुक्ति का कारण बने.
5. मां सरस्वती के विभिन्न स्वरूप
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजायुक्त और आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है. स्कंद पुराण में सरस्वती जटा-जूटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली व तीन नेत्रों वाली कही गई हैं. रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौम्य वर्णन मिलता है. 'दुर्गा सप्तशती' में भी सरस्वती के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता है. शास्त्रों में वर्णित है कि वसंत पंचमी के दिन ही शिव जी ने मां पार्वती को धन और सम्पन्नता की अधिष्ठात्री देवी होने का वरदान दिया था. उनके इस वरदान से मां पार्वती का स्वरूप नीले रंग का हो गया और वे ‘नील सरस्वती’ कहलायीं. शास्त्रों में वर्णित है कि वसंत पंचमी के दिन नील सरस्वती का पूजन करने से धन और सम्पन्नता से सम्बंधित समस्याओं का समाधान होता है. वसंत पंचमी की संध्याकाल में सरस्वती पूजा करने से और गौ सेवा करने से धन वृद्धि होती है.
अक्षराभ्यास का दिन है वसंत पंचमी
वसंत पंचमी के दिन बच्चों को अक्षराभ्यास कराया जाता है. अक्षराभ्यास से तात्पर्य यह है कि विद्या अध्ययन प्रारम्भ करने से पहले बच्चों के हाथ से अक्षर लिखना प्रारम्भ कराना. इसके लिए माता-पिता अपने बच्चे को गोद में लेकर बैठें. बच्चे के हाथ से गणेश जी को पुष्प समर्पित कराएं और स्वस्तिवाचन इत्यादि का पाठ करके बच्चे को अक्षराभ्यास करवाएं. मान्यता है कि इस प्रक्रिया को करने से बच्चे की बुद्धि तीव्र होगी.
वसंत पंचमी एक नजर में...
यह दिन वसंत ऋतु के आरंभ का दिन होता है. इस दिन देवी सरस्वती और ग्रंथों का पूजन किया जाता है. नव बालक-बालिका इस दिन से विद्या का आरंभ करते हैं. संगीतकार अपने वाद्ययंत्रों का पूजन करते हैं. स्कूलों और गुरुकुलों में सरस्वती और वेद पूजन किया जाता है. हिन्दू मान्यता के अनुसार, वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है. इस दिन बिना मुहूर्त जाने शुभ और मांगलिक कार्य किए जाते हैं !


शिव की शारीरिक विशेषताएं

शिव की शारीरिक विशेषताएं
रंग
‘शिवतत्त्व भस्म के रंगका है । भस्म वैराग्यका प्रतीक है ।’
गंगा
‘भगवान शिव अखंड तपस्या करते हैं । जो ज्ञान शिवद्वारा शीशपर धारण की गई ज्ञानगंगा से ब्रह्मांड में बहता रहता है, उस ज्ञान के प्रवाह में आई बाधा को नागों ने दूर किया । ज्ञान की गंगा को प्रवाही बनाए रखने के लिए नागों ने बहुत सहायता की, इसलिए उन्हें ‘ब्राह्मण’ भी संबोधित किया जाता है । नागों ने हलाहल शोषित न किया होता, तो उस दिव्य ज्ञान से हम वंचित रह जाते ।’
चंद्रमा
‘शिव के सिरपर विद्यमान चंद्रमाका मुख दार्इं ओर होता है । वह शिव की सूर्यनाडी से उत्पन्न होनेवाली कार्य की तप्त ऊर्जाका नियमन करता है ।
जब सृष्टि विनाश के गर्त में जाती है, तो शिव अपनी दार्इं अर्थात् तेजतत्त्वरूपी नाडी के बलपर अपनी देह से तेज-कणोंका प्रक्षेपण कर ब्रह्मांड के स्तरपर कार्य करते हैं; परंतु इस कार्य से उत्पन्न तप्त ऊर्जा ब्रह्मांड सहन नहीं कर पाता । ऐसे समय, कार्य की मात्रा में चंद्रमा अपने माध्यम से ठंडक निर्माण करनेवाली तरंगें वायुमंडल में प्रक्षेपित कर, तप्त ऊर्जा की तरंगों की गति और उन की तीव्रता कम कर सृष्टिका नियमन करता है । इस कारण उस स्तरपर दार्इं नाडी के कार्य की मात्रा में और सृष्टि को संभाल ने के लिए, संतुलन व नियमन के लिए चंद्रमाका स्थान शिव की दार्इं ओर होता है ।’
भस्म
संतों की हथेलियों से निकलनेवाली भस्म में शिवतत्त्व की आंशिक शक्तिका होना : ‘कुछ संतों की हथेलियों से कभी-कभी भस्म (विभूति) निकलती है, अर्थात् ये संत कुछ क्षणों के लिए शिवदशा में जाते हैं और शिवदशा में जाने से पूर्व वे भस्म अथवा विभूति हथेली में आने के लिए प्रार्थना करते हैं । उस समय उन की हथेलियों की कुछ परतें जल जाती हैं और भस्म तैयार होती है । जली हुई परतों के स्थानपर नई परतें तुरंत निर्माण होती हैं । इस क्रियाका उन्हें भान भी नहीं रहता । इस प्रकार शिवदशा में जाकर जागृत स्नायुओं से तैयार हुई भस्म में भी शिवतत्त्व की आंशिक शक्ति होती है । इस कारण इस भस्म को भी `शिवभस्म’ ही कहा जाता है; परंतु आजकल भस्म को ही ‘विभूति’ कहा जाता है । भस्म में भी एक दैवी सुगंध होती है और वह अनिष्ट शक्तियों से हमारा रक्षण करती है ।
रुद्राक्ष
भगवान शिव निरंतर समाधि में होते हैं, इस कारण उनका कार्य सदैव सूक्ष्मस्तरसे ही जारी रहता है । यह कार्य अधिक सुव्यवस्थित हो, इस के लिए भगवान शिव ने भी रुद्राक्ष की माला शरीरपर धारण की है । इसी कारण शिव-उपासना में रुद्राक्षका असाधारण महत्त्व है । ’किसी भी देवताका जप करने हेतु रुद्राक्षमालाका प्रयोग किया जा सकता है । रुद्राक्षमाला को गले में या अन्यत्र धारण कर किया गया जप, बिना रुद्राक्षमाला धारण किए गए जप से हजार गुना लाभदायक होता है । इसी प्रकार अन्य किसी माला से जप करने की तुलना में रुद्राक्ष की माला से जप कर नेपर दस हजार गुना अधिक लाभ होता है ।
तीन डोरियों से त्रिगुणों की तरंगें प्रक्षेपित कर नेवाला ‘डमरू’
‘शिव के हाथ में विद्यमान डमरू अप्रकट नादशक्तिका प्रतीक है और डमरू की तीन डोरियां प्रकट नादशक्तिका प्रतीक हैं । जिस समय इन तीन डोरियों की सहायता से डमरू से नाद उत्पन्न होता है, उस समय इन तीन डोरियों से सत्त्व, रज व तम तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । आवश्यकता के अनुसार इन तरंगों की मात्रा कम-अधिक होती है ।’
तांडवनृत्य
‘भगवान शिव तांडवनृत्य करते हैं, अर्थात् वे अलग-अलग मुद्रा में नृत्य करते हैं । (मुद्रा अर्थात् ‘तांड’ व अनेक तांड मिलकर ‘तांडव’ शब्द तैयार हुआ है । मुद्राओंद्वारा अथवा तांडवों से युक्त नृत्य, अर्थात् ‘तांडवनृत्य’) उस समय वे अपने शरीर में एकत्रित हुए हलाहलका रूपांतर मुद्राद्वारा नवरस में करते हैं और उस नवरस से ही नृत्य की उत्पत्ति होती है । तांडवनृत्य करनेवाले भगवान शिव को ‘नटराज’ कहा जाता है । इस प्रकारका नृत्य कोई भी नहीं कर सकता । तांडवनृत्य के नवरस में ‘नृत्यकला’ के रूप में जो आज पृथ्वीपर किया जाता है, उस नृत्यकला में शिव के नवरस के तत्त्वका १ अरब अंश ही होता है ।’ ‘तांडवनृत्य करते समय भगवान शंकर की प्रकट शक्ति ८० प्रतिशत होती है । सूक्ष्म के जानकार व दिव्यदृष्टि प्राप्त संत भी तांडवनृत्य देख सकते हैं ।
शिवजी का तारक व मारक तांडवनृत्य : शिवजी का तांडवनृत्य जब ताल पर होता है, तब उस ताल पर सृष्टि का कार्य व्यवस्थित चलता है । शिवजी का भान रहित तांडवनृत्य शिवजी की अंतशक्ति का रूप है । जब सृष्टि का अंतिम समय निकट आता है, तब शिवजी भान रहित तांडवनृत्य करते हैं । शिवजी के इस भान रहित नृत्य को ताल का बंधन न हो ने के कारण सृष्टि का संतुलन डगमगाने लगता है व अंत में सृष्टि का लय होता है; इसलिए नृत्य में ब्रह्मांड का विनाश करने की क्षमता है व संगीत में संपूर्ण ब्रह्मांड को चलाने की क्षमता है ।
शिवजी का ध्यान लगाना उनकी सुप्त अप्रकट शक्ति का तथा तांडव करना उनकी कार्यरत शक्ति का प्रतीक है : शिवजी का ध्यान उन की सुप्त अप्रकट शक्ति का प्रतीक है । यह शक्ति कार्य नहीं करती । तांडव शिवजी की प्रकट सगुण लयशक्ति का, अर्थात् प्रत्यक्ष कार्यरत शक्ति का प्रतीक हैै । प्रत्यक्ष कार्य की परिणामकारकता के लिए, अर्थात् ब्रह्मांड के रज-तम के समूल नाश के लिए तांडव में विद्यमान सगुण कार्यरत शक्ति आवश्यक होती है । तांडव तमप्रधान है तथा ध्यान सत्त्वप्रधान है ।
शिवतत्त्व से संबंधित आकार, रंग और रंगोली
‘शिवतत्त्व का रंग भस्म समान है । इस तत्त्व को आकर्षित करनेवाला आकृतिबंध यहां दर्शाया गया है । महाशिवरात्रि, श्रावण सोमवार इत्यादि दिनोंपर रंगोली में इस आकृतिका उपयोग करनेपर और शिव को इस आकार में पुष्पार्पण करने से शिवतत्त्व का अधिकाधिक लाभ होता है । भावयुक्त जीवद्वारा बनाई गई रंगोली में ३० प्रतिशत तत्त्व आ सकता है । रंग भरनेपर ईश्वर के विद्यमान होने में कम शक्ति खर्च करनी पडती है । इस से भावरहित जीव को भी उसका लाभ होता है । जीवका भाव ६० प्रतिशत से अधिक हो, तो बिना रंग भरी रंगोली बनानेपर भी उस जीव के भावानुसार वह विशिष्ट तत्त्व उस विशिष्ट आकार में आता है ।
त्रिशूल
शिवजी के इस आभूषणका कार्य है सत्त्व, रज व तम को कम करना । त्रिशूल उत्पत्ति, स्थिति व लय से संबंधित है ।
१. उत्पत्ति : यहां उत्पत्तिका संबंध युद्ध अर्थात् अनिष्ट शक्तियों के संदर्भ में हो नेवाली क्रिया-प्रक्रियाओं की निर्मिति से है ।
२. स्थिति : काल के दो प्रकार हैं ।
२ अ. स्थिति काल : यह काल की स्थिरता दर्शाता है ।
२ आ. परिस्थिति काल : स्थिर कालका रूपांतर जब परिस्थिति काल में होता है, तब परिस्थिति कालका प्रतीक त्रिशूल दर्शाता है ।
३. लय : अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करना ।
बिल्वपत्र
महत्त्व : बिल्वपत्र में २ प्रतिशत शिवतत्त्व होता है । महाशिवरात्रि के दिन शिवपिंडीपर बेल चढानेपर बेल के डंठल के निकट सगुण शिवतत्त्व जागृत होता है व बेलद्वारा चैतन्य तथा शिवतत्त्व प्रक्षेपित होने लगता है । शिवपिंडी में विद्यमान २० प्रतिशत शिवतत्त्व को बेल स्वयं में आकृष्ट करता है । शिवतत्त्व से युक्त बेल को पानी में डुबोनेपर अथवा धान्य में रखनेपर बेल में विद्यमान शिवतत्त्व उस में संक्रमित होता है ।
सोमवार को बेलपत्र में शिवतत्त्व अधिक मात्रा में जागृत होता है । उस दिन उससे १० प्रतिशत शिवतत्त्व व सात्त्विकता प्रक्षेपित होती है । अन्य दिनों में बिल्वपत्र में शिवतत्त्व केवल १ प्रतिशत जागृत रहता है ।
बिल्वार्चन : ‘ॐ नमः शिवाय ।’ मंत्र जपते हुए अथवा भगवान शंकरजीका एक नाम लेकर एक बिल्वपत्र पिंडीपर अर्पण करने को बिल्वार्चन कहते हैं । जबतक पिंडी पूर्णतः ढक नहीं जाती, तबतक बिल्वपत्र चढाते रहना चाहिए । पिंडी के निचले भाग से बेल के पत्ते चढाना आरंभ करें । मूर्ति के चरणोें से अर्चन आरंभ करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है तथा मूर्ति को पूर्णतः ढका जा सकता है ।
शिवजी को बेलफल लगे पेड के ही पत्ते क्यों चढा ने चाहिए ? : (फल लगे पेड के बेल में सगुण व निर्गुण तरंगें ग्रहण व प्रक्षेपित कर ने की क्षमता अधिक होती है, इसलिए वह अधिक उपयुक्त है ।) फलवाला पेड अधिक परिपक्व भी होता है । ‘परिपक्व’ अर्थात् उस विशेष देवता की सगुण तथा निर्गुण, दोनों प्रकार की तरंगों को ग्रहण तथा प्रक्षेपित कर ने की क्षमता अधिक होना । ऐ से वृक्षका बिल्वदल भी उसी प्रकार उतना ही सक्षम होता है । ऐसी उत्कृष्ट क्षमतावाले बिल्वदल शिवजी को चढा ने से जीव को सगुण तथा निर्गुण, दोनों शिवतरंगोंका लाभ मिलता है
नामजप
‘ॐ नमः शिवाय ।’ नामजपका अर्थ : इस नामजप में ‘ॐ’ अर्थात् त्रिगुणातीत निर्गुण । ॐकार की निर्मिति जिस शिव से हुई, उन्हें प्रणाम !
शिवजी को बेलपत्र चढाने की पद्धतिका आधारभूत शास्त्र
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रंच त्र्यायुधं ।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।
अर्थात त्रिदल (तीन पत्र) युक्त, त्रिगुण के समान, तीन नेत्रों के समान, तीन आयुधों के समान एवं तीन जन्मों के पाप नष्ट कर नेवाला यह बिल्वपत्र, मैं शंकरजी को अर्पित करता हूं ।
तारक एवं मारक उपासनापद्धति अनुसार बेल कैसे चढाएं ?
बेल के पत्ते तारक शिवतत्त्व के वाहक हैं, जबकि बेल के पत्ते का डंठल मारक शिवतत्त्व का वाहक है ।
१. शिवजी के तारक रूप की उपासना करनेवाले : सामान्य उपास कों की प्रकृति तारक स्वरूप की होती है, अत: शिवजी की तारक उपासना उन की प्रकृति के अनुरूप एवं उन की आध्यात्मिक उन्नति हेतु पूरक सिद्ध होती है । ऐसे उपासक शिवजी के तारक तत्त्वका लाभ प्राप्त करने हेतु बेलपत्रका डंठल पिंडी की ओर एवं अग्र भाग अपनी ओर कर चढाएं ।
२. शिवजी के मारक रूप की उपासना करनेवाले : शाक्तपंथीय शिवजी के मारक रूप की उपासना करते हैं । ऐ से उपासक शिवजी के मारक तत्त्वका लाभ प्राप्त करने हेतु बेल के पत्तेका अग्रभाग देवता की ओर एवं डंठल अपनी ओर रख बेलपत्र चढाएं ।
बेल औंधा (उलटा) क्यों चढाएं ?
शिवपिंडीपर बेलपत्र औंधा चढाने से उस से निर्गुण स्तर के स्पंदन अधिक प्रक्षेपित होते हैं । इस से श्रद्धालु को अधिक लाभ मिलता है ।
शिवजी का कार्य
१. नाद की निर्मिति : नाद शिवजी द्वारा निर्मित है । शिवजी की प्रकट ज्ञानशक्ति से नादों की निर्मिति होती है । नादकण आकाशतत्त्व से बने हैं । अनेक आकाशतत्त्व के कणों के मिलने पर नादलहरियां निर्माण होती हैं । शिवलोक में सब से अधिक प्रमाण में नादलहरियां होती हैं, इसलिए आकाशतत्त्व ध्वनि में व्यक्त होता है । अनेक नादकणों के मिल ने पर ध्वनि निर्माण होती है । जब किसी व्यक्ति को नाद की अनुभूति होती है, तब उस व्यक्ति के ईश्वर के प्रति भाव के कारण, अर्थात् इस भाव की ऊर्जा के कारण, नादकणों का घनीकरण होकर नादलहरियां बनती हैं । इन नादलहरियों के एकत्रित आने से एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि में उनका रूपांतर होता है और साधक को नाद के रूप में ईश्वरीय तत्त्व की अनुभूति होती है । नादकणों का घनीकरण करने के लिए उच्च भावऊर्जा की आवश्यकता होती है । उत ने ही प्रमाण में ऊर्जा नहीं मिली, तो वायुकणों का घनीकरण होकर वायुतत्त्व की अर्थात् स्पर्श की अनुभूति होती है ।
२. शिवलोक के सब से निकट लोक – नादलोक : नादलोक शिवलोक के सबसे निकट है । शिवजी की शक्ति जब अप्रकट होती है, उस समय शिवलोक साधक को बर्फ समान ठंडा लगता है । नादलोक शिवलोक की अपेक्षा कम ठंडा होता है; क्योंकि नादलोक में शिवशक्ति नाद के माध्यम से गतिमान, अर्थात् कार्यरत होती है । यह नादरूपी शिवशक्ति संपूर्ण ब्रह्मांड को निरंतर गतिमान रखती है ।
३. शिवजी की ज्ञानशक्ति से संगीत व नृत्य की निर्मिति : शिव संगीत व नृत्यकलाओं के देवता हैं । शिवजी की ज्ञानशक्ति से संगीत व नृत्य की निर्मिति हुई है ।