Friday, 1 December 2017

रिश्ते_मृत्यु_के_साथ_मिट_जाते_हैं

रिश्ते_मृत्यु_के_साथ_मिट_जाते_हैं 
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एक बार देवर्षि नारद अपने शिष्य तुम्बरू के साथ कहीं जा रहे थे गर्मियों के दिन थे । एक प्याऊ से उन्होंने पानी पिया और पीपल के पेड़ की छाया में जा बैठे । इतने में एक कसाई वहाँ से 25-30 बकरों को लेकर गुजरा । उसमें से एक बकरा एक दुकान पर चढ़कर मोठ खाने लपक पड़ा । उस दुकान पर नाम लिखा था – ‘शगालचंद सेठ।’ दुकानदार का बकरे पर ध्यान जाते ही उसने बकरे के कान पकड़कर दो-चार घूँसे मार दिये बकरा ‘बैंऽऽऽ…. बैंऽऽऽ…’ करने लगा और उसके मुँह में से सारे मोठ गिर पड़े । फिर कसाई को बकरा पकड़ाते हुए कहाः “जब इस बकरे को तू हलाल करेगा तो इसकी मुंडी मेरे को देना क्योंकि यह मेरे मोठ खा गया है । ”देवर्षि नारद ने जरा-सा ध्यान लगाकर देखा और जोर-से हँस पड़े । तुम्बरू पूछने लगाः “गुरुजी ! आप क्यों हँसे ? उस बकरे को जब घूँसे पड़ रहे थे तब तो आप दुःखी हो गये थे, किंतु ध्यान करने के बाद आप हँस पड़े । इसमें क्या रहस्य है ? ”नारद जी ने कहाः “छोड़ो भी…. यह तो सब कर्मों काफल है, छोड़ो । ”“नहीं गुरुजी ! कृपा करके बताइये ।”“ इस दुकान पर जो नाम लिखा है ‘शगालचंद सेठ’ – वह शगालचंद सेठ स्वयं यह बकरा होकर आया है । यह दुकानदार शगालचंद सेठ का ही पुत्र है । सेठ मरकर बकरा हुआ है और इस दुकान से अना पुराना सम्बन्ध समझकर इस पर मोठ खाने गया । उसके बेटे ने ही उसको मारकर भगा दिया । मैंने देखा कि 30 बकरों में से कोई दुकान पर नहीं गया फिर यह क्यों गया कमबख्त ? इसलिए ध्यान करके देखा तो पता चला कि इसका पुराना सम्बंध था । जिस बेटे के लिए शगालचंद सेठ ने इतना कमाया था, वही बेटा मोठ के चार दाने भी नहीं खाने देता और गलती से खा लिये हैं तो मुंडी माँग रहा है बाप की । इसलिए कर्म की गति और मनुष्य के मोह पर मुझे हँसी आ रही हैं कि अपने – अपने कर्मों का फल को प्रत्येक प्राणी को भोगना ही पड़ता है और इस जन्म के रिश्ते – नाते मृत्यु के साथ ही मिट जाते हैं, कोई काम नहीं आता।


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