Friday, 8 December 2017

ज्ञान की ओर प्रगति

ज्ञान की ओर प्रगति
हमें जिस ज्ञानतक पहुंचना है वह बुद्धि का सत्य नहीं है, वह हमारे अपने और वस्तुओं के बारे में ठीक विश्वास, ठीक मत, ठीक सूचना नहीं है -वह केवल ज्ञान के बारे में सतही मन का विचार है । भगवान् के, अपने और विश्व के बारे में किसी मानसिक धारणातक पहुंचना एक ऐसा उद्देश्य है जो बुद्धि के लिये तो अच्छा है परंतु आत्मा के लिये काफी बड़ा नहीं है । वह हमें अनंत के सचेतन पुत्र न बना सकेगा ।

प्राचीन भारतीय मनीषा का ज्ञान से मतलब होता था एसी चेतना जो प्रत्यक्ष दर्शन और आत्मानुभव में उच्चतम सत्य को अपने अधिकार में रखती है । हम जिस उच्चतम को जानते हैं वही होना, वही बन जाना इस बात का चिह्न है कि हमें वास्तव में ज्ञान प्राप्त है ।
इसी कारण हमारे व्यावहारिक जीवन को, हमारे कर्म को, हमारी सत्य या ऋत की बौद्धिक धारणाओं या किसी सफल व्यावहारिक ज्ञान के साथ जहांतक हो सके संयत रखते हुए गढ़ना -नैतिक या प्राणिक परिपूर्ति -न तो हमारे जीवन का चरम लक्ष्य हैं और न हो सकता है ।
हमारा लक्ष्य होना चाहिये अपनी सच्ची सत्ता में, अपनी आत्मा की सत्ता में, परम और वैश्व सच्चिदानंद में वृद्धि ।

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