Friday, 8 December 2017

"बौद्ध योग के पांच ध्यान"

"बौद्ध योग के पांच ध्यान"
(श्री गोपालप्रसाद ‘वंशी’ बेतिया)
श्री भगवान बुद्ध ने पाँच प्रकार के ध्यान की शिक्षा दी है।

पहला योगाभ्यास
यह ‘प्रीति’ या ‘प्रेम’ का ध्यान है। इस ध्यान में तुम अपने मन को इस प्रकार साधते हो कि जीव मात्र का भला चाहते हो, यहाँ तक कि अपने शत्रुओं से भी भ्रातृभाव रखते हो। इसी का नाम ‘सत्वषु मैत्री’ है। इस में निरन्तर तुम्हारी यही भावना रहती है कि सब का भला हो।
दूसरा योगाभ्यास
यह ध्यान ‘दया’ और ‘करुणा’ का है। इस में तुम यह चिन्तन करते हो कि सब जीव दुख में हैं और अपनी कल्पना शक्ति के द्वारा उन के दुखों का चित्र भी अपने हृदय पट पर खींचते हो कि जिस से तुम्हारी मन में उनके प्रति दया का भाव उत्पन्न हो और तुम से जो कुछ बन सके उनकी सहायता करो।
तीसरा योगाभ्यास
यह ध्यान ‘हर्ष’ और ‘सुख’ का है। इसमें तुम दूसरों के कल्याण का विचार करते हो और उनकी प्रसन्नता से प्रसन्न होकर उनकी मंगल-कामना की भावना करते हो।
चौथा योगाभ्यास
‘अपवित्रता’ का ध्यान है। इसमें तुम रोग, शोक और पाप के बुरे परिणामों पर विचार करते हो और यह सोचते हो कि इन्द्रियजन्य सुख बहुधा कैसे तुच्छ होते हैं और उनके कैसे भयंकर फल होते हैं।
पाँचवाँ योगाभ्यास
‘शाँति’ का ध्यान है। इसमें तुम्हारे मन से राग-द्वेष, हानि-लाभ, निष्ठुरता और पीड़ा, ऐश्वर्य और दरिद्र, सम्पत्ति और विपत्ति, न्याय और अत्याचार के विचार निकल जाते हैं। अपनी वर्तमान दशा पर सब प्रकार संतुष्ट रहते हो। न तुम्हें किसी वस्तु की चाह होती है और न किसी की आवश्यकता होती है। प्रत्येक दशा में तुम परमात्मा के अनुगृहीत और कृतज्ञ हो। तुम्हारे भीतर क्रमशः इन पाँचों ध्यानों का अभ्यास करने से मनुष्य मुक्ति पद को पाता है।
सन्दर्भ: अखण्ड ज्योति, फरवरी,1945

No comments:

Post a Comment