Friday, 8 December 2017

तंत्र की दुनिया रहस्यमयी

 जिस प्रकार तंत्र की दुनिया रहस्यमयी है उसी प्रकार तंत्रगुरु एवं तंत्र साधक भी रहस्यमय होते हैं। तंत्र साधक की तंत्र साधना में श्रद्धा विश्वास व अपने गुरु की सेवा को देखकर तंत्रगुरु अत्यन्त हर्षित रहते थे। आज तंत्र साधक कुछ भूतकाल से संबंधित विचारों को मन में लाकर बड़ा ही बैचेन हो रहा था। उसे बार-बार अपने तंत्रगुरु के अनुपम सहनशीलता से परिपूर्ण कुशल व्यवहार को सोचकर तथा कुछ कृत्घनी मनुष्यों के कुटिल व्यवहार को याद करके बड़ा ही भारी दु:ख हुआ। तंत्र साधक का चेहरा क्रोध से लाल हो गया और उसने सर्व शत्रुनाशक महाभयंकर "ब्रह्मास्त्र" प्रयोग को आज रात्रि में करने की सोची। उसने अपने तंतगुरु की आज्ञा लेना भी मुनासिब नहीं समझा क्योंकि तंत्र साधक ने जब भी किसी प्रयोग की आज्ञा मांगी तंत्रगुरु ने हमेशा ही मना किया। तंत्र साधक ने अपने तंत्रगुरु द्वारा दी गई काली माला, एक चमकदार त्रिशूल तथा काला आसन लिया और रात के गहन अंधकार में शमसान की ओर चल दिया। तंत्र साधक की गुरु भक्ति एवं तंत्र के प्रति अगाध विश्वास ने तंत्रगुरु के मन के तारों को उसके मन से जोड़ दिया था। तंत्रगुरु यह सब देख रहे थे और मन ही मन हर्षित भी हो रहे थे कि उनका शिष्य कितना स्वाभिमानी है। तंत्र साधक ने ज्यों ही निर्देशित दिशा से शमसान में प्रवेश किया वैसे ही चारों दिशाओं को कंपित कर देने वाली आवाज में "क्रीं" मंत्र का उच्चारण किया। शमसान में एक चिता अभी पूर्ण रूप ठंडी नहीं हुई थी वहां जाकर तंत्र साधक ने अपना आसन बिछाया तथा साथ में लाये गये त्रिशूल को शमसान की राख के बीच महाकाल की जयकार के साथ गाड़ दिया। अपने तंत्रगुरु का ध्यान कर सर्व प्रकार से रक्षा करने के बाद तंत्र साधक ने काली माला से "ब्रह्मास्त्र" शत्रुनाशक मंत्रों का जाप शुरु कर दिया। अभी ५१ माला ही जाप हुए थे कि अचानक पूरे शमसान में मसान ने अपनी सेना के साथ पूरे शमसान में तहलका मचा दिया तथा विभिन्न प्रकार से प्रलयकारी नृत्य करने लगे। तंत्र साधक इनकी प्रवाह किये बिना ही ५१ माला पूरी होने के साथ ही आंखें खोलकर त्रिशूल की ओर टकटकी बांधकर देखने लगे। कुछ समय के बाद ही आकाश में बिजली चमकी और त्रिशूल में आकर समा गई । अब शमसान में ओर भी भयावह दृश्य उपस्थित हो गये तथा तंत्र साधक ने बड़े ही भयंकर आवाज में त्रिशूल की ओर देखकर एक बार फिर तंत्रगुरु का ध्यान करके कहा, " हे महाकाल! इन गुरुद्रोहियों को आप इसी क्षण अपनी काल रूपी मुख का आहार बनाओ!" इतना कहते ही शमसान का भयावह दृश्य एक फिर से महाभयंकर हो गया और त्रिशूल बिजली की गड़गहाहट के साथ धीरे-२ उपर उठने लगा। इसी समय एक बड़ा शक्तिपुंज वहां प्रकट हुआ और उसने त्रिशूल को अपने हाथ में ले लिया। इसके साथ ही सारा शमसान शांत हो चुका था। उस शक्तिपुंज ने कहा, "प्रिय तंत्र साधक हम तुम्हारे तंत्र प्रयोग से बेहद खुश हुये पर इस प्रयोग की इन तुच्छ प्रणियोंके पर प्रयोग की मनाही है!" तंत्र साधक मुझे जिस अद्भुत साधक की तलाश थी वो मुझे आज मिल गया। तंत्र साधक सच्चा साधक वहीं है जो कि किसी भी पदार्थ में भेद बुद्धि नहीं रखता। अत: तुमने इन गुरुद्रोहियों द्वारा द्वारा मेरा अपमान किये जाने पर यह कदम उठाया वह सही भी है इससे तुमने सिद्ध कर दिया कि सच्चे साधक अपने गुरु की निंदा भी अपने सामने नहीं देख सकते । इतना कहते ही तंत्रगुरु जो प्रकाश पुंज के रुप में प्रकट हुये थे अपने वास्तविक रुप में प्रकट होकर बोले,"ये जो तुमने देखा यहीं गुरुतत्व है!" इतना कहकर फिर शक्तिपुंज के रुप में अंतर्धान हो गये। तंत्र साधक एक अकल्पनीय प्रसन्नता के साथ अपने घर आ पहुंचा। सुबह के चार बज चुके थे। स्नान व ध्यान के बाद ठीक सात बजे फिर वह अपने गुरुधाम के लिए रवाना हो गया क्योंकि वह एक सच्चा गुरु सेवक जो है.....!

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