Friday, 1 December 2017

रावण संहिता की सबसे दिव्य साधनाओं में से एक अति शक्तिशाली और तीव्र फलगामी साधना हम यहाँ दे रहे हैं

रावण संहिता की सबसे दिव्य साधनाओं में से एक अति शक्तिशाली और तीव्र फलगामी साधना हम यहाँ दे रहे हैं
भूतडामर तंत्र के अनुसार इस योगिनी की कृपा से ही कुबेर धनवान बने थे
योगिनीयों में सर्व प्रधान है सुरसुन्दरी है इनकी साधना करने वाले के पास जीवन में कोई कम
ी नही रहती, वो सर्व शक्तिशाली और विद्वान बन जाता है सुरसुन्दरी जीवन उसके साथ रहकर उसकी आग्या का पालन करती है.. सुरसुन्दरी की साधना इस तरह से है
सबसे पहले प्रातः काल में स्नान करके शुद्ध होकर
आसन पर बैठे
और
"ऊँ हौं"
इस मन्त्र से आचमन करे
आचमन के बाद
" ऊँ हुं फट् "
इस मन्त्र से दिग्बन्धन करें
फिर मूल मन्त्र से प्राणायाम करके करऩ्गन्यास करें
अष्टदल पद्म अंकित करके जीवन्यास करें
चौकी पर अष्ट दल कमल बनाकर उसमें सुरसुन्दरी का ध्यान करें
ये ध्यान का मंत्र है
" पूर्ण चंद्र निभां गौरीं विचित्राम्बरधारिणीम् "
" पीनोतुंगकुचां वामां सर्वेषाम् अभयप्रदाम "
इस प्रकार ध्यान करके मूल मंत्र से पाद्यादि द्वारा धूप दीप नैवेद्य और गुलाब के फूलों से पूजा करें
इस मंत्र का जप करें ये ही मूल मंत्र है
" ऊँ ह्रीं आगच्छ सुरसुन्दरी स्वाहा "
सुबह, दोपहर और शाम इन तीनों यमय में एक एक हजार जप करना है इसी मंत्र का
किसी भी महीने की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक साधना करनी है
अर्ध रात्रि को देवी साधक के पास आती है हो सकता है वो आपकी परीक्षा भी ले
साधक देवी को सन्मुख प्रसन्न देखकर चन्दन और पुष्प द्वारा अर्घ्य दे
और अपना वर मांगे, उस समय साधक देवी को माता, बहन या पत्नी कहकर संबोधन करे
साधक यदि सुरसुन्दरी को माता मानेगा तो देवी साधक को मनोहर द्रव्य प्रदान करती है और उसे राजा तक बना देती स्वर्ग और पाताल से जो चाहे वस्तु लाकर देती है, और प्रतिदिन देवी साधक के निकट आकर उसका पुत्र के समान पालन करती है
यदि साधक देवी को बहन माने तो वो कई तरह के दिव्य पदार्थ और दिव्य वस्त्र प्रदान करती है तथा देवकन्या और नागकन्या लाकर देती है, भूत भविष्य वर्तमान सब बताती है
यदि साधक देवी को पत्नी माने तो संसार में वो सबसे शक्तिशाली हो जाता है कोई उसे नुकसान नही पहुंचा सकता, वो साधक स्वर्ग, मर्त्य और पाताल में बेरोक टोक जाने की शक्ति पा लेता है
और देवी जो सब शकेतियां साधक को देती है उसका वर्णन नही किया जा सकता
साधक उनके साथ सुख संभोग करता हुआ समय बिताता है, इस प्रकार देवी भार्या रूप में पाने के बाद साधक दूसरी स्त्री की चाह ना करे नही तो देवी क्रोधित होकर साधक का नाश कर देती है
यह विधि पूर्ण निष्ठा पर लाभ देती ह

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