तंत्र के प्रयोगों से सब कुछ संभव है, पर यह एक विद्या है, जैसे चिकत्सा शास्त्र एक विद्या है. यह जीव की चिकित्सा का शास्त्र है और किसी भी उपचार की पूरी प्रक्रिया होती है. परीक्षण सहित. हाथ घुमा कर समस्याओं को दूर करने और हर समस्या का निदान करने वाला फ्रॉड होता है. इस दुनिया में सर्वशक्तिमान कोई नहीं ह कुण्डलिनी केवल मूलाधर में नहीं होती. ये रीढ़ में 9, शरीर में 99, कुल 108 होतीं हैं और कोई सम्पूर्ण शरीर, चाहे वह किसी भी इकाई का हो एक कुण्डलिनी ही होती है. ब्रह्मांड भी एक कुण्डलिनी है. यह एक ऐसी संरचना है जो सर्वत्र व्याप्त है. एक में एक समाई हुई, प्याज के परतों के सामान यह एक अति रहस्यमय, अति जटिल, विचित्र संरचना है. सनातनधर्म के सारे धार्मिक क्रियाकलाप, सभी पूजा पाठ, सभी देवी पिंडी, सभी शिवलिंग, या जो भी इस धर्म या तंत्र का सार्विज्ञानिक आधार है. उसके अन्दर कुण्डलिनी का ही विज्ञान है. कभी सोचा है की माला में 108 दानें क्यों होतें हैं? आयुर्वेद में 108 मर्मस्थल का रहस्य क्या है? दिव्य शिवलिंग 12 क्यों माने जाते हैं? देवी पिंडियों का रहस्य क्या है? जरूरत क्या है? बाबा लोग हैं? सब कुछ प्रदान करने वाले? मूर्खों के सर पर सिंग नहीं होते. वे देखने में आदमी जैसे ही लगते हैं.
इश्वर’ – परमात्मा नहीं है। यह परमात्मा में उत्पन्न होनेवाला एक नन्हा परमाणु है; जिसमे 9 पॉवर –पॉइंट्स होते हैं। यह 0 से 9 तक की उत्पत्ति है। इसी से हमारे अंकगणित के अंको का निर्धारण किया गया है।
यह परमाणु ही शाश्वत नियमों से विकसित होकर ब्रह्माण्ड बन जाता है और वह नन्हा परमाणु उसके केन्द्रीय नाभिक के मध्य बैठकर सरे ब्रह्माण्ड को धारण किये हुए संचालन-पोषण करता है।
यही परमाणु अपने शंक्राणु के रूप में अपनी ही प्रतिलिपियों का उत्सर्जन करके नयी-नयी इकाईओं को उत्पन्न कर रहा है| इसका एक निश्चित प्रोसेस है और सब निश्चित नियमों से होता हैं|
ब्रह्माण्ड के केंद्र में बैठे परमाणु के कारण ही ब्रह्माण्ड का अस्तित्व है और इसमें जीवन व्याप्त है। उसका दिल धड़क रहा है। वह रुक जाये , तो सभी मृत हो जायेंगे
हमारा जन्म उसी के शंक्राणु से होता है। हमारा जीवन उसी के द्वारा व्याप्त है; इसलिए यही इश्वर है। इसे ही विष्णु , राज राजेश्वर शिव , कामेश्वरी , काकिनी , आदि कहा जाता है। अंग्रेजी में जिसे ‘गॉड’ कहते है ; वह यही है।
पर मुसलमान जिसे खुदा कहते हैं ; वह यह नहीं है। ‘खुदा’ परमात्मा का ही पंथविशेष में दूसरा नाम है| इश्वर भौतिक पदार्थ है,क्योंकि इसका जन्म होता है। परमात्मा अभौतिक पदार्थ है। न तो इसका जन्म होता है और न ही यह नष्ट होता है।
शून्य तत्व परमात्मा है। उसमें शाश्वत नियमों से उत्पन्न होने वाला ‘परमाणु आत्मा है। यही अपनी प्रतिलिपियां सभी इकाई के केंद्र में डाल कर उसमें जीवन देता है। वास्तविक जीव यही हैं। किसी इकाई का शेष शारीर 9 उर्जास्तरो से बना एक खोल जैसा मशीन है , जिसके केंद्र में बैठकर यह ‘आत्मा’ उसे ऑपरेट करती है।
किसी भी इकाई का नाभिक उसकी जीवात्मा है। सौरमंडल में सूर्य जीवात्मा है ;हमारे शरीर के केंद्र का पॉवर-पॉइंट , पृथ्वी में कोर उकसा जीवात्मा है।
किसी आक्समिक प्रहार या दुर्घटना से जब किसी इकाई के पॉवर-सर्किट का तीन स्तर नष्ट हो जाता या अलग हो जाता ; तो छ लेयर में कैद ‘आत्मा’ प्रेतात्मा कहलाती है। इसका शरीर नष्ट होता है; पर ऊर्जाशरीर बना रहता है।
यह प्रेतात्मा नेगेटिव न होने के कारण अपने आवेश से व्याकुल रहती है और नेगेटिव की चाह में किसी अन्य के शरीर में प्रविष्ट हो जाती है। महिलाये प्रकृति की नेगेटिव उत्पत्तिकेन्द्र हैं ; इसीलिए इनकी पहली पसंद महिलाये होती हैं।
इश्वर’ – परमात्मा नहीं है। यह परमात्मा में उत्पन्न होनेवाला एक नन्हा परमाणु है; जिसमे 9 पॉवर –पॉइंट्स होते हैं। यह 0 से 9 तक की उत्पत्ति है। इसी से हमारे अंकगणित के अंको का निर्धारण किया गया है।
यह परमाणु ही शाश्वत नियमों से विकसित होकर ब्रह्माण्ड बन जाता है और वह नन्हा परमाणु उसके केन्द्रीय नाभिक के मध्य बैठकर सरे ब्रह्माण्ड को धारण किये हुए संचालन-पोषण करता है।
यही परमाणु अपने शंक्राणु के रूप में अपनी ही प्रतिलिपियों का उत्सर्जन करके नयी-नयी इकाईओं को उत्पन्न कर रहा है| इसका एक निश्चित प्रोसेस है और सब निश्चित नियमों से होता हैं|
ब्रह्माण्ड के केंद्र में बैठे परमाणु के कारण ही ब्रह्माण्ड का अस्तित्व है और इसमें जीवन व्याप्त है। उसका दिल धड़क रहा है। वह रुक जाये , तो सभी मृत हो जायेंगे
हमारा जन्म उसी के शंक्राणु से होता है। हमारा जीवन उसी के द्वारा व्याप्त है; इसलिए यही इश्वर है। इसे ही विष्णु , राज राजेश्वर शिव , कामेश्वरी , काकिनी , आदि कहा जाता है। अंग्रेजी में जिसे ‘गॉड’ कहते है ; वह यही है।
पर मुसलमान जिसे खुदा कहते हैं ; वह यह नहीं है। ‘खुदा’ परमात्मा का ही पंथविशेष में दूसरा नाम है| इश्वर भौतिक पदार्थ है,क्योंकि इसका जन्म होता है। परमात्मा अभौतिक पदार्थ है। न तो इसका जन्म होता है और न ही यह नष्ट होता है।
शून्य तत्व परमात्मा है। उसमें शाश्वत नियमों से उत्पन्न होने वाला ‘परमाणु आत्मा है। यही अपनी प्रतिलिपियां सभी इकाई के केंद्र में डाल कर उसमें जीवन देता है। वास्तविक जीव यही हैं। किसी इकाई का शेष शारीर 9 उर्जास्तरो से बना एक खोल जैसा मशीन है , जिसके केंद्र में बैठकर यह ‘आत्मा’ उसे ऑपरेट करती है।
किसी भी इकाई का नाभिक उसकी जीवात्मा है। सौरमंडल में सूर्य जीवात्मा है ;हमारे शरीर के केंद्र का पॉवर-पॉइंट , पृथ्वी में कोर उकसा जीवात्मा है।
किसी आक्समिक प्रहार या दुर्घटना से जब किसी इकाई के पॉवर-सर्किट का तीन स्तर नष्ट हो जाता या अलग हो जाता ; तो छ लेयर में कैद ‘आत्मा’ प्रेतात्मा कहलाती है। इसका शरीर नष्ट होता है; पर ऊर्जाशरीर बना रहता है।
यह प्रेतात्मा नेगेटिव न होने के कारण अपने आवेश से व्याकुल रहती है और नेगेटिव की चाह में किसी अन्य के शरीर में प्रविष्ट हो जाती है। महिलाये प्रकृति की नेगेटिव उत्पत्तिकेन्द्र हैं ; इसीलिए इनकी पहली पसंद महिलाये होती हैं।
No comments:
Post a Comment