मुक्ति का सरल सूत्र
अन्त मति सो गति.....अर्थात्
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजन्त्यंते कलेवरम्..।
मतलब साफ है कि अंत समय में भगवान् का स्मरण करने से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। मोक्ष यानि जीवन मरण से दूर शाश्वत आनन्द में गोते लगाना।तो प्रश्न उठता है कि जीवन में किए पाप कहाँ गये??
समाधान है कि भगवान का नाम पतित पावन है । उसी से पाप सफाया हो गया। पाप सफाया जब होता है जब नाम जपें और आगे पाप न करें। अंत समय में यही युक्ति काम आ सकती है।अतः इसे जरूर आजमाना। पर उसे ही भगवान अंत समय में याद रहेंगे जिसका जीवन भर का अभ्यास हो।अतः अभ्यास करिए।
और एक काम की बात....
मरणासन्न जीव के पास जब उसका जीवन अंत की घड़ियों में बचा हो तब प्रबुद्ध लोग उसे डिस्टर्ब न करें, केवल भगवान का कीर्तन, गीतापाठ आदि ही करें।कुछ मूर्ख मरणासन्न को बार बार झकोरते हैं कि---दादा पहिचानते हो? ये कौन हैं? किसी को बुलवाऊँ??आदि आदि..।
ऐसा न करे यदि वह भक्त,सज्जन रहा है तो कृपया उसे अंतिम समय भगवान में डूब जाने दीजिए......
यही प्रार्थना जीवहित में...।ऐसा न करें न करने दें।
अन्त मति सो गति.....अर्थात्
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजन्त्यंते कलेवरम्..।
मतलब साफ है कि अंत समय में भगवान् का स्मरण करने से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। मोक्ष यानि जीवन मरण से दूर शाश्वत आनन्द में गोते लगाना।तो प्रश्न उठता है कि जीवन में किए पाप कहाँ गये??
समाधान है कि भगवान का नाम पतित पावन है । उसी से पाप सफाया हो गया। पाप सफाया जब होता है जब नाम जपें और आगे पाप न करें। अंत समय में यही युक्ति काम आ सकती है।अतः इसे जरूर आजमाना। पर उसे ही भगवान अंत समय में याद रहेंगे जिसका जीवन भर का अभ्यास हो।अतः अभ्यास करिए।
और एक काम की बात....
मरणासन्न जीव के पास जब उसका जीवन अंत की घड़ियों में बचा हो तब प्रबुद्ध लोग उसे डिस्टर्ब न करें, केवल भगवान का कीर्तन, गीतापाठ आदि ही करें।कुछ मूर्ख मरणासन्न को बार बार झकोरते हैं कि---दादा पहिचानते हो? ये कौन हैं? किसी को बुलवाऊँ??आदि आदि..।
ऐसा न करे यदि वह भक्त,सज्जन रहा है तो कृपया उसे अंतिम समय भगवान में डूब जाने दीजिए......
यही प्रार्थना जीवहित में...।ऐसा न करें न करने दें।
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