Friday, 8 December 2017

मैं क्या हूँ ???

मैं क्या हूँ ???
जाग्रतस्वप्नसुषुप्त्यादि प्रपञ्चम यत्प्रकाशते । तद्ब्रह्माहमिति ज्ञात्वा सर्वबंधै: प्रमुच्यते।। 17।।
त्रिषु धामसु यद्भोग्यम् भोक्ता भोगश्च यद्भवेत् , तेभ्यो विलक्षणः साक्षी चिन्मात्रोsहं सदाशिवः । 18

मय्येव सकलम् जातं मयि सर्वं प्रतिष्ठितम् । मयि सर्वं लयं याति तद्ब्रह्माद्वयमस्म्यहं ।। 19।।
कैवल्योपनिषद
जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति आदि अवस्था जो प्रपञ्च प्रतिभासित है वह परब्रह्मरूप है, वही मैं भी हूँ - ऐसा जानकार जीव समस्त बंधनो से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
तीनो अवस्थाओं में जो कुछ भी भोक्ता,भोग्य और भोग के रूप में है , उन सबसे विलक्षण साक्षिरूप, चिन्मय स्वरुप स्वयं सदाशिव मैं ही हूँ ।
मैं ही स्वयं वह ब्रह्मरूप हूँ, मुझमें ही यह सब कुछ प्रादुर्भूत हुआ है, मुझमे ही यह सभी कुछ स्थित भी है , मुझमे ही सभी कुछ विलीन हो जाता है , वह अद्वयरूप परब्रह्म परमात्मा मैं ही हूँ।

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