Friday, 8 December 2017

साधना सूत्र

साधना सूत्र 

*साधक को अपने दोष दिखने लग जाय तो समझो उसके दोष दूर हो रहे हैं। दोष अपने आप में होते तो नहीं दिखते। अपने से पृथक हैं इसलिए दिख रहे हैं। जो भी दोष तुम्हारे जीवन में हो गये हों उनको आप अपने से दूर देखो। आत्मशान्ति के प्रवाह में उन्हें डुबा दो।
* मन में यदि भय न हो तो बाहर चाहे कैसी भी भय की सामग्री उपस्थित हो जाये, आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकती | मन में यदि भय होगा तो तुरन्त बाहर भी भयजनक परिस्थियाँ न होते हुए भी उपस्थित हो जायेंगी | वृक्ष के तने में भी भूत दिखने लगेगा |


* जो समय गुरु-सेवन,भक्ति में लगाना है, वह यदि जड़ पदार्थों में लगाया तो तुम भी जड़ीभाव को प्राप्त हो जाओगे। तुमने अपना सामर्थ्य, शक्ति, पैसा और सत्ता अपने मित्रों व सम्बन्धियों में ही मोहवश लगाया तो याद रखो, कभी-न-कभी तुम ठुकराये जाओगे, दुःखी बनोगे और तुम्हारा पतन हो ही जायेगा।
*जैसे बीज की साधना वृक्ष होने के सिवाय और कुछ नहीं,
उसी प्रकार जीव की साधना आत्मस्वरूप को जानने के सिवाय और कुछ नहीं।
*आपके पास सद्गुरु रुपी कल्पवृक्ष है। आप जो चाहें उससे पा सकते हैं। उसके सहारे आपका जीवन जहाँ जाना चाहता है, जा सकता है, जहाँ पहुँचना चाहता है, जो बनना चाहता है बन सकता है। ऐसा कल्पवृक्ष हर किसी के पास है।
*विघ्न, बाधाएँ, दुःख, संघर्ष, विरोध आते हैं वे तुम्हारी भीतर की शक्ति जगाने कि लिए आते है। जिस पेड़ ने आँधी-तूफान नहीं सहे उस पेड़ की जड़ें जमीन के भीतर मजबूत नहीं होंगी। जिस पेड़ ने जितने अधिक आँधी तूफान सहे और खड़ा रहा है उतनी ही उसकी नींव मजबूत है। ऐसे ही दुःख, अपमान, विरोध आयें तो ईश्वर का सहारा लेकर अपने ज्ञान की नींव मजबूत करते जाना चाहिए। दुःख, विघ्न, बाधाएँ इसलिए आती हैं कि तुम्हारे ज्ञान की जड़ें गहरी जायें। लेकिन हम लोग डर जाते है। ज्ञान के मूल को उखाड़ देते हैं।
शेर के मुँह मे आया हुआ शिकार भले बच जाये परंतु सद्गुरू के निगाह मे आया हुआ साधक कभी नही बच सकता है I
सद्गुरू उसे भव सागर से पार लगा देते है शिष्य और गुरू का बंधन एक जन्म का नही होता है यह वह बंधन है जो जन्म जन्मांतर का होता है और
बाकी सब बंधन मरने के बाद हमारा साथ छोड देते है परंतु यकिन मानिये
यदि ब्रहमवेता सद्गुरू यदि आपका हाथ पकड लिया तो, आपको मुक्त होने से कोई नही रोक सकता........

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