Friday, 1 December 2017

आज मैं आप सब को प्रेम की व्याख्या करता हूँ ।

जय श्री कृष्णा 
प्रेम - नफरत ' ईर्ष्या ' द्वेष का विरोधी है और भक्ति का एक रूप है । आज प्रेम का निम्न स्तर पर इस्तेमाल होने से उसकी सुगंध दुर्गंध मे बदल गई हैं । प्रेम की ताकत उसकी कमजोरी बन गई ' प्रेम का जादू बेअसर हो गया है। प्रेम प्रार्थना 🙏 बनाने की बजाय वासना बन कर रह गई हैं। प्रेम का इजहार दूषित नजरों से देखा जाने लगा है । प्रेम की तड़प दुख बनकर रह गई ' जो महाआनंद बन सकती थीं। । प्रेम की अग्नि शीतल अग्नि न बनकर ' नरक की आग बन गई। प्रेम का करिश्मा खोखला बनकर रह गया । प्रेम की नगरी पैसों का व्यापार बन गई। प्रेम की गीत मन - भंजन भजन नहीं बने बल्कि मनोरंजन के साधन बन गए। प्रेम का अमृत अंधश्रद्धा की मदिरा और बेहोशी का साधन बन गया । प्रेम का बल जो सेवा बन सकता था। ' वह निजी स्वार्थ बन गया । प्रेम की याद निराकार की ओर ले जाने की बजाय अहंकार की पुष्टि बन गई । प्रेम का अनुभव पूर्णता खो चुका । प्रेम का स्वाद इंद्रियों मे फँस कर रह गया। जो है ध्यान ' ज्ञान ' समझ ' प्रेम। ( भक्ति ) प्रार्थना और झमा । नफरत ' ईर्ष्या ' द्वेष से मुक्ति पाने के लिए इंसान को प्रेम ' भक्ति और झमा का वरदान दिया गया है। नफरत अगर रोग है तो झमा इसकी दवा। । संतों की शिक्षा में प्रेम ' भक्ति ' और झमा को हमेशा से महत्व दिया गया है ।
जय श्री कृष्णा 


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