Thursday, 30 November 2017

भारत के युवक के चारों तरफ सेक्‍स घूमता रहता है पूरे वक्‍त

भारत के युवक के चारों तरफ सेक्‍स घूमता रहता है पूरे वक्‍त। और इस घूमने के कारण उसकी सारी शक्‍ति इसी में लीन और नष्‍ट हो जाती है। जब तक भारत के युवक की सेक्‍स के इस रोग से मुक्‍ति नहीं होती, तब तक भारत के युवक की प्रतिभा का जन्‍म नहीं हो सकता। प्रतिभा का जन्‍म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्‍स की सहज स्‍वीकृति हो जायेगी। हम उसे जीवन के एक तथ्‍य की तरह अंगीकार कर लेंगे—प्रेम से, आनंद से—निंदा से नहीं। और निंदा और घृणा का कोई कारण भी नहीं है।
सेक्‍स जीवन का अद्भुत रहस्‍य है। वह जीवन की अद्भुत मिस्ट्रि हे। उससे कोई घबरानें की,भागने की जरूरत नहीं है। जिस दिन हम इसे स्‍वीकार कर लेंगे, उस दिन इतनी बड़ी उर्जा मुक्‍त होगी भारत में कि हम न्‍यूटन पैदा कर सकेंगे,हम आइंस्‍टीन पैदा कर सकेंगे। उस दिन हम चाँद-तारों की यात्रा करेंगे। लेकिन अभी नहीं। अभी तो हमारे लड़कों को लड़कियों के स्‍कर्ट के आस पास परिभ्रमण करने से ही फुरसत नहीं है। चाँद तारों का परिभ्रमण कौन करेगा। लड़कियां चौबीस घंटे अपने कपड़ों को चुस्‍त करने की कोशिश करें या कि चाँद तारों का विचार करें। यह नहीं हो सकता। यह सब सेक्सुअलिटी का रूप है।

हम शरीर को नंगा देखना और दिखाना चाहते है। इसलिए कपड़े चुस्‍त होते चले जाते है।
सौंदर्य की बात नहीं है यह, क्‍योंकि कई बार चुस्‍त कपड़े शरीर को बहुत बेहूदा और भोंडा बना देते है। हां किसी शरीर पर चुस्‍त कपड़े सुंदर भी हो सकते है। किसी शरीर पर ढीले कपड़े सुंदर हो सकते है। और ढीले कपड़े की शान ही और है। ढीले कपड़ों की गरिमा और है। ढीले कपड़ों की पवित्रता और है।
लेकिन वह हमारे ख्‍याल में नहीं आयेगा। हम समझेंगे यह फैशन है, यह कला है, अभिरूचि है, टेस्‍ट है। नहीं ‘’टेस्‍ट’’ नहीं है। अभी रूचि नहीं है। वह जो जिसको हम छिपा रहे है भीतर दूसरे रास्‍तों से प्रकट होने की कोशिश कर रहा है। लड़के लड़कियों का चक्‍कर काट रहे है। लड़कियां लड़कों के चक्र काट रही है। तो चाँद तारों का चक्‍कर कौन काटेगा। कौन जायेगा वहां? और प्रोफेसर? वे बेचारे तो बीच में पहरेदार बने हुए खड़े है। ताकि लड़के लड़कियां एक दूसरे के चक्‍कर न काट सकें। कुछ और उनके पास काम है भी नहीं। जीवन के और सत्‍य की खोज में उन्‍हें इन बच्‍चों को नहीं लगाना है। बस, ये सेक्‍स से बचे जायें,इतना ही काम कर दें तो उन्‍हें लगता है कि उनका काम पूरा हो गया।
यह सब कैसा रोग है, यह कैसा डिसीज्‍ड माइंड, विकृत दिमाग है हमारा। हम सेक्‍स के तथ्‍यों की सीधी स्‍वीकृति के बिना इस रोग से मुक्‍त नहीं हो सकते। यह महान रोग है।
इस पूरी चर्चा में मैंने यह कहने की कोशिश की है कि मनुष्‍य को क्षुद्रता से उपर उठना है। जीवन के सारे साधारण तथ्‍यों से जीवन के बहुत ऊंचे तथ्‍यों की खोज करनी है। सेक्‍स सब कुछ नहीं है। परमात्‍मा भी है दुनिया में। लेकिन उसकी खोज कौन करेगा। सेक्‍स सब कुछ नहीं है इस दुनिया में सत्‍य भी है। उसकी खोज कौन करेगा। यहीं जमीन से अटके अगर हम रह जायेंगे तो आकाश की खोज कौन करेगा। पृथ्‍वी के कंकड़ पत्‍थरों को हम खोजते रहेंगे तो चाँद तारों की तरफ आंखे उठायेगा कौन?
संभोग से समाधि की और—26



1 comment:

  1. sahi kha guruji moh maya se nikalna hi prabh ka rasta hai

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