Thursday 30 November 2017

जो दुख को ठीक से जान लेता है, वह सुख से छूट जाता है।

जो दुख को ठीक से जान लेता है, वह सुख से छूट
जाता है। जो दुख को ठीक से जान लेता है, वह
चाह से छूट जाता है। जिसकी कोई चाह
नहीं, उसका फिर कोई जन्म नहीं है।
अस्तित्व होगा उसका--शुद्धतम। वही शुद्धतम
अस्तित्व आनंद है।
लेकिन भूल मत करना आप। उस आनंद का आपके सुख से कोई
भी संबंध नहीं है। उस आनंद में दुख तो
खो ही जाते हैं, सुख भी खो जाता है।
इसलिए बुद्ध ने तो उस शब्द का प्रयोग करना भी
पसंद नहीं किया, आनंद शब्द का। क्योंकि आनंद से
सुख का आभास मिलता है। अगर शब्दकोश में जाएंगे खोजने, तो
आनंद का कुछ भी अर्थ किया जाए, उसमें सुख रहेगा
ही। पारलौकिक सुख होगा, अनंत सुख होगा, शाश्वत
सुख होगा, लेकिन सुख होगा ही। तो शब्दकोश ज्यादा
से ज्यादा इतना ही भेद कर सकता है कि यह
क्षणभंगुर सुख है, वह शाश्वत होगा। लेकिन होगा सुख। बुद्ध
ने शब्द ही छोड़ दिया था। बुद्ध कहते थे शांति, आनंद
नहीं। वे कहते थे, सब शांत हो जाएगा, सब शांत हो
जाएगा। उस शांत क्षण को आप जो भी चाहें कहें।
उस शांत क्षण में कोई भविष्य नहीं, कोई यात्रा
नहीं है। अस्तित्व के केंद्र-बिंदु से मिलन है।
यह हाथ में है। यह हाथ में इसलिए है कि समझ आपके पास
है। यह हाथ में इसलिए है कि समझ की धारा को
आप चाहें तो अभी दुख पर केंद्रित कर सकते हैं।
उसी का नाम ध्यान है। समझ की धारा को
दुख पर फोकस करने का नाम ध्यान है। और जो भी
व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों पर
अपनी समझ की धारा को नियोजित कर लेता
है, वह त्याग को उपलब्ध हो जाता है, और उस स्थिति को,
जहां फिर कोई पुनरागमन नहीं.
सहि मे यहि वह स्थिति हे जीसे हम ''परमतत्व'' ते नाम से पेहचानते है।


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