Thursday 30 November 2017

आदि श्री शंकराचार्य द्वारा सोना बरसाने वाली मां लक्ष्मी की स्तुति। श्री कनकधारा स्तोत्रम्

आदि श्री शंकराचार्य
द्वारा सोना बरसाने
वाली मां लक्ष्मी की स्तुति।
श्री कनकधारा स्तोत्रम्
अंग हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृंगगनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अंगीकृताSखिलं-विभूतिरपामंलीला
मांगल्यदाSतु मममंगलदेवताया:।।.1।।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मरारे:
प्रेमत्रपा-
प्रणिहितानी गताSSगतानि।
मालादृशोर्मधुकरी व महोत्पले या
सा में श्रियं दिशतु सागरसंभवाया:।।
2।।
विश्वामरेनद्रपद-विभ्रमदानदक्ष
मानन्द-हेतुरधिकं मुर-विद्विषोSपि।
ईषान्निषीदतु मयि क्षणमीक्षार्द्ध
मिन्दीवरोदर-
सहोदरमिन्दिराया:।।3।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा
मुकुन्दमानंद कन्दमनिमेषमनंगतनत्रम्।
आकेकरस्थितकनीनिकपद्मनेत्रं भूत्यै
भवेन्मम भुजंगश्यांगनाया:।।4।।
बाह्मन्तरे मधुजित:श्रित कौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोSपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु में कमलालयाया:।।5।।
कालाम्बुदालि-
ललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे
स्फुरति या तडिदंगनेव।
मातु:
समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि में
दिशतु भार्गवनंदनाया:।।6।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किलयत् प्रभावान्
मांगल्यभाजि मधुमाथिनि मंमथेन।
मय्यापतेत्तदिह मंथर-मीक्षणार्धं
मन्दाSलसंच मकरालय-कन्यकाया:।।
7।।
दघाद् दयानुपवनो द्रविणांबुधारा-
मस्मिन्नकिंचन विहंगशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्म-धर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।
8।।
इष्टाविशिष्टमतयोSपि यया दयार्द्र-
दृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्ट: प्रहृष्ट-कमलोदर-दीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टराया:।।
9।।
गीर्दवतेति गरुड़ध्वजभामिनीति
शाकंभरीति शशिशेखर-वल्लभेति।
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु
संस्थिताये
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगरोस्तरुण्यै।।10।।
श्रुत्यै नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यै
रत्यै नमोSस्तु रमणीयगुणाश्रयायै।
शकत्यै नमोSस्तु शतपत्र-निकेतनायै
पुष्ट्यै नमोSस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभाय।।
11।।
नमोSस्तु नालीक-निभाननायै
नमोSस्तु सोमामृत-सोदरायै
नमोSस्तु नारायण-वल्लभायै।।12।।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रि-नन्दनानि
साम्राज्यदान-
विभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्-वन्दनानि दुरितारहरणोधतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यत्।।13।।
यत्कटाक्ष-समुपासनाविधि:
सेवकस्य सकलार्थसंपद:।
सन्तनोति वचनाSगंमानसै
स्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे।।14।।
सरसिज-निलये सरोजहस्ते
धवलतरांशुक-गन्ध-माल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्मम्।।15।।
दिग्धस्तिभि: कनककुंभमुखावसृस्ट
स्वर्वाहिनीविमलचारु-
जलप्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष
लोकाधिराजगृहिणीमृताब्धिपुत्रीम्।।
16।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूर-तरंगितैरपांग:।
अवलोकय मामकिंचनानां प्रथमं
पात्रमकृत्रमं दयाया:।।17।।
स्तवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतर-भोगभागिनो
भवन्ति ते भुविबुधभाविताशया:।।
18।।
सुर्वणधारा मच्छङ्कराचार्यनिर्मितम्।
त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नित्यं स
कुबेरसमो भवेत्।।19।।
श्री श्री सूक्तम
ऊँ
हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मम
आ वह।।
ऊँ तां मSआ वह
जातवेदों लक्ष्मीमनगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं वह
जातवेदों लक्ष्मीमनगामिनी
म्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामवश्वं
पुरुषानहम्।।
ऊँ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद
प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्रये
श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
ऊँ
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारमार्द्रां
ज्वलतीं तृप्तां तर्पयंतीम्।
पदे स्थितां पद्वर्णां तामिहोपह्रये
श्रियम्।।
ऊँ चंद्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पदिनेमीं शरणमहं प्रपघेSलक्ष्मीर्मे
नश्यतां त्वां वृणोमि।।
ऊँ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोSथ विल्व:।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या
अन्तरा याश्य ब्राह्मा अलक्ष्मी:।।
ऊँ उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च
मणिना सह।
प्रादुर्भूतोSस्मिराष्ट्रेस्मिन्
कीर्त्तिमृद्धिं
ददातु मे।।
ऊँ क्षुत्पिपासमलां ज्येष्ठामलक्ष्म
ी नाशयाम्यहम्
अभूतिम समृद्धिं च सर्वां निणुर्द में
गृहात्।।
ऊँ मनस: काममाकूतिं वाच:
सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि: श्री:
श्रयतां दश:।।
ऊँ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय में कुले मातरं
पद्मालिनीम्।।
ऊँ आप: सृजंतु स्निग्धानि चिक्लीत वस
मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय में कुले।।
ऊँ
आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगला पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयी लक्ष्मीं जातवेदो मम
आवह ।।
ऊँ आर्दा य:
करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म
आवह।।
ऊँ तांमSआ वह
जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यांहिरण्यं
प्रभूतंगावो दास्योSश्वान् विन्देयं
पुरुषानहम्।।
ऊँ य: शुचि:
प्रयतो भूत्वा जुहुयावाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्।।
धनदा स्तोत्रम्
शिव उवाच:
अथात: सम्प्रवक्ष्यामि धनदा स्तोत्रं
उत्तमम्।
यशोक्तं सर्व तंत्रेषु इदानीं तत्
प्रकाशित्म।।
नम: सर्वस्वरपेण नम: कल्याणदायिके।
महासंपद्प्रदे देवि धनदायै नमोSस्तु ते।।
महाभोगप्रदे देवि महाकाम प्रपूरिते।
सुखमोक्षप्रदे देवि धनदायै नमोSस्तु ते
।।
ब्रह्मरूपे सदानंदे सदानंद स्वरूपिणि।
द्रुतसिद्धिप्रदे देवि धनदायै नमोSस्तु
ते।।
उद्यत्सूर्य प्रकाशाभे उद्यत्आर्दित्य
मंडले।
शिवतत्व प्रदे देवि धनदायै नमोSस्तु
ते।।
विष्णुरूपे विश्वमते विश्व पालन
कारिणी।
महासत्व गुणाक्रांते धनदायै नमोSस्तु
ते।।
शिवरूपे शिवानंदे कारणानंद-विग्रहे।
विश्व संहार रूपे च धनदायै नमोSस्तु ते।।
पंचतत्व स्वरूपे च पंचाचार-सदारते।
साधका भीष्ट दे देवि धनदायै
नमोSस्तु ते।
इदं स्तोत्रं मयाप्रोक्तं साधकाभीष्ट
दायकम्।
य: पठेत् पाठयेद्वापि स लभेत् सकल
फलम्।।
त्रिसंध्यं य: पठेत् नित्यं स्तोत्रमतेत्
समाहित:।
स सिद्धि लभते शीघ्रं
नात्रकार्या विचारणा।।
इंद्र रहस्यं परमं स्तोत्रं परम दुर्लभम्।
गोपनीयं प्रयत्नेन
स्वयोतिखि पार्वति।।
अप्रकाश्यमिदं देवि गोपनीयं
परात्परम्।


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