Thursday, 30 November 2017

भगवान शिवजी का प्रिय पौधा “भांग” के चमत्कारिक औषधीय गुण एवं आयुर्वेदिक उपाय!! 🍃🌿🍃

भगवान शिवजी का प्रिय पौधा “भांग” के चमत्कारिक औषधीय गुण एवं आयुर्वेदिक उपाय!! 🍃🌿🍃
भांग को सामान्यत एक नशीला पौधा माना जाता है, जिसे लोग मस्ती के लिए उपयोग में लाते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि शिवजी को प्रिय भांग का पौधा औषधीय गुणों से भरा पड़ा है। भांग के मादा पौधों में स्थित मंजरियों से निकले राल से गांजा प्राप्त किया जाता है। भांग के पौधों में केनाबिनोल नामक रसायन पाया जाता है। भांग कफशामक एवं पित्तकोपक होता है।. शिवरात्री का दिन हो या रंगो का त्योहार होली हो भांग का रंग तो जमेगा ही। भांग पीकर रंग खेलने का मजा ही अलग है। भांग पीकर होश खोने की बात तो सब जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि भांग पीने के कुछ फायदे भी हैं। भांग, चरस या गांजे की लत शरीर को नुकसान पहुंचाती है। लेकिन इसकी सही डोज कई बीमारियों से बचा सकती है। इसकी पुष्टि विज्ञान भी कर चुका है।
पर हमारे देश में कुछ महामूर्ख एवं नशेड़ी किस्म के लोगों ने अपनी गलती करने, नाश करने या गलत आदत को छुपाने के लिए इस पौधे को भगवान् शिव शंकर से नशे के लिए जोड़ दिया। (जैसे आपने अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा कि यह तो भोले शंकर का प्रसाद है लेने में कोई हर्ज़ नहीं )। पर हम बताते हैं आपको कि ये पौधा भगवान शंकर को इसलिए प्रिय था क्योंकि इस पौधे के अंदर अनगिनत चमत्कारिक औषधीय गुण उपस्थित हैं। जिससे कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। इसके औषधीय गुण
1.) कान का दर्द:- भांग के 8 -10 बून्द रस को कान में डालने से कीड़े मरते हैं और कान की पीड़ा दूर हो जाती है !
2.) चक्कर आने से बचाव:- 2013 में वर्जीनिया की कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने यह साबित किया कि गांजे में मिलने वाले तत्व एपिलेप्सी अटैक को टाल सकते हैं। यह शोध साइंस पत्रिका में भी छपा। रिपोर्ट के मुताबिक कैनाबिनॉएड्स कंपाउंड इंसान को शांति का अहसास देने वाले मस्तिष्क के हिस्से की कोशिकाओं को जोड़ते हैं।
3.) ग्लूकोमा में राहत:- अमेरिका के नेशनल आई इंस्टीट्यूट के मुताबिक भांग ग्लूकोमा के लक्षण खत्म करती है। इस बीमारी में आंख का तारा बड़ा हो जाता है और दृष्टि से जुड़ी तंत्रिकाओं को दबाने लगता है। इससे नजर की समस्या आती है। गांजा ऑप्टिक नर्व से दबाव हटाता है।
4.) अल्जाइमर से बचाव:- अल्जाइमर से जुड़ी पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक भांग के पौधे में मिलने वाले टेट्राहाइड्रोकैनाबिनॉल की छोटी खुराक एमिलॉयड के विकास को धीमा करती है। एमिलॉयड मस्तिष्क की कोशिकाओं को मारता है और अल्जाइमर के लिए जिम्मेदार होता है। रिसर्च के दौरान भांग का तेल इस्तेमाल किया गया।
5.) कैंसर पर असर:- 2015 में आखिरकार अमेरिकी सरकार ने माना कि भांग कैंसर से लड़ने में सक्षम है. यह ट्यूमर के विकास के लिए जरूरी रक्त कोशिकाओं को रोक देते हैं. कैनाबिनॉएड्स से कोलन कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और लिवर कैंसर का सफल इलाज होता है.
6.) कीमोथैरेपी में कारगर:- कई शोधों में यह साफ हो चुका है कि भांग के सही इस्तेमाल से कीमथोरैपी के साइड इफेक्ट्स जैसे, नाक बहना, उल्टी और भूख न लगना दूर होते हैं. अमेरिका में दवाओं को मंजूरी देने वाली एजेंसी एफडीए ने कई साल पहले ही कीमोथैरेपी ले रहे कैंसर के मरीजों को कैनाबिनॉएड्स वाली दवाएं देने की मंजूरी दे दी है.
7.) दर्द निवारक:- शुगर से पीड़ित ज्यादातर लोगों के हाथ या पैरों की तंत्रिकाएं नुकसान झेलती हैं. इससे बदन के कुछ हिस्से में जलन का अनुभव होता है. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की रिसर्च में पता चला कि इससे नर्व डैमेज होने से उठने वाले दर्द में भांग आराम देती है.
8.) हैपेटाइटिस सी के साइड इफेक्ट से आराम:- थकान, नाक बहना, मांसपेशियों में दर्द, भूख न लगना और अवसाद, ये हैपेटाइटिस सी के इलाज में सामने आने वाले साइड इफेक्ट हैं. यूरोपियन जरनल ऑफ गैस्ट्रोलॉजी एंड हेपाटोलॉजी के मुताबिक भांग की मदद से 86 फीसदी मरीज हैपेटाइटिस सी का इलाज पूरा करवा सके. माना गया कि भांग ने साइड इफेक्ट्स को कम किया.
9.) खांसी और दमे में कारगर है भांग
10.) मांसपेशियों के दर्द:- डायटीशियन और स्पोर्ट्स न्यूट्रीशनिस्ट का कहना है कि अल्कोहल का कोई गुण नहीं होता है लेकिन सीमित मात्रा में भांग पीने के कुछ फायदे भी है। भांग (cannabis) में इन्फ्लैमटोरी गुण होता है जो मांसपेशियों के दर्द को कम करने में असरदार रूप से काम करता है।
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It may come as a shock to so many who dont know cannabis that it’s actually something of a miracle herb. Though this topic is controversial, some don't know how great the benefits of marijuana actually are ~~
1. It Can Help You Lose Weight. because cannabis helps the body regulate insulin production, and manage caloric intake more efficiently.
2. It Can Regulate and Prevent Diabetes. Because it helps regulate body weight, it only makes sense that it would help prevent regular diabetes.
3. It Fights Cancer. Both scientists and government have released a good amount of evidence showing that cannabinoids fight certain types of cancer.
4. It Can Help Depression. Depression is one of the more widespread medical conditions in America. And research is showing that cannabis can help treat it.
5. It’s Showing Promise in Treating Autism. Like many other high-profile disorders, autism may be a prime target for cannabis-based treatments. Science is digging into it, but in meantime, some parents are using it to help manage violent mood swings in autistic kids.

6. It Helps Regulate Seizures. Using medical cannabis to regulate seizures is another one of the more high-profile findings coming out of medical science. For folks with disorders like Epilepsy, cannabis is showing immense promise.
7. It Can Improve Lung Health. some conditions, including lung cancer and Emphysema, have been shown to regress when cannabis is thrown into the mix.
8. It Can Slow the Development of Alzheimer’s Disease. Cognitive degeneration is pretty much unavoidable as we age, and Alzheimer’s disease falls under that umbrella. The good news is that studies are showing cannabis can stop the progression of Alzheimer’s, which may lead to longer, richer lives for millions.
9. It Helps M.S. Patients. Cannabis helps alleviate many of the symptoms associated with Multiple Sclerosis, most notably the tremors, spasms, and pain.
10. It Can Help You Get Through Chemotherapy. Those suffering from cancers and its treatments like chemotherapy, have found comfort in cannabis’s soothing effects

11. It Calms Asthma Attacks. 🌿🍃🌿🍃🌿🍃🌿🍃

आदि श्री शंकराचार्य द्वारा सोना बरसाने वाली मां लक्ष्मी की स्तुति। श्री कनकधारा स्तोत्रम्

आदि श्री शंकराचार्य
द्वारा सोना बरसाने
वाली मां लक्ष्मी की स्तुति।
श्री कनकधारा स्तोत्रम्
अंग हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृंगगनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अंगीकृताSखिलं-विभूतिरपामंलीला
मांगल्यदाSतु मममंगलदेवताया:।।.1।।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मरारे:
प्रेमत्रपा-
प्रणिहितानी गताSSगतानि।
मालादृशोर्मधुकरी व महोत्पले या
सा में श्रियं दिशतु सागरसंभवाया:।।
2।।
विश्वामरेनद्रपद-विभ्रमदानदक्ष
मानन्द-हेतुरधिकं मुर-विद्विषोSपि।
ईषान्निषीदतु मयि क्षणमीक्षार्द्ध
मिन्दीवरोदर-
सहोदरमिन्दिराया:।।3।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा
मुकुन्दमानंद कन्दमनिमेषमनंगतनत्रम्।
आकेकरस्थितकनीनिकपद्मनेत्रं भूत्यै
भवेन्मम भुजंगश्यांगनाया:।।4।।
बाह्मन्तरे मधुजित:श्रित कौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोSपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु में कमलालयाया:।।5।।
कालाम्बुदालि-
ललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे
स्फुरति या तडिदंगनेव।
मातु:
समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि में
दिशतु भार्गवनंदनाया:।।6।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किलयत् प्रभावान्
मांगल्यभाजि मधुमाथिनि मंमथेन।
मय्यापतेत्तदिह मंथर-मीक्षणार्धं
मन्दाSलसंच मकरालय-कन्यकाया:।।
7।।
दघाद् दयानुपवनो द्रविणांबुधारा-
मस्मिन्नकिंचन विहंगशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्म-धर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।
8।।
इष्टाविशिष्टमतयोSपि यया दयार्द्र-
दृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्ट: प्रहृष्ट-कमलोदर-दीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टराया:।।
9।।
गीर्दवतेति गरुड़ध्वजभामिनीति
शाकंभरीति शशिशेखर-वल्लभेति।
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु
संस्थिताये
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगरोस्तरुण्यै।।10।।
श्रुत्यै नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यै
रत्यै नमोSस्तु रमणीयगुणाश्रयायै।
शकत्यै नमोSस्तु शतपत्र-निकेतनायै
पुष्ट्यै नमोSस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभाय।।
11।।
नमोSस्तु नालीक-निभाननायै
नमोSस्तु सोमामृत-सोदरायै
नमोSस्तु नारायण-वल्लभायै।।12।।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रि-नन्दनानि
साम्राज्यदान-
विभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्-वन्दनानि दुरितारहरणोधतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यत्।।13।।
यत्कटाक्ष-समुपासनाविधि:
सेवकस्य सकलार्थसंपद:।
सन्तनोति वचनाSगंमानसै
स्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे।।14।।
सरसिज-निलये सरोजहस्ते
धवलतरांशुक-गन्ध-माल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्मम्।।15।।
दिग्धस्तिभि: कनककुंभमुखावसृस्ट
स्वर्वाहिनीविमलचारु-
जलप्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष
लोकाधिराजगृहिणीमृताब्धिपुत्रीम्।।
16।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूर-तरंगितैरपांग:।
अवलोकय मामकिंचनानां प्रथमं
पात्रमकृत्रमं दयाया:।।17।।
स्तवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतर-भोगभागिनो
भवन्ति ते भुविबुधभाविताशया:।।
18।।
सुर्वणधारा मच्छङ्कराचार्यनिर्मितम्।
त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नित्यं स
कुबेरसमो भवेत्।।19।।
श्री श्री सूक्तम
ऊँ
हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मम
आ वह।।
ऊँ तां मSआ वह
जातवेदों लक्ष्मीमनगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं वह
जातवेदों लक्ष्मीमनगामिनी
म्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामवश्वं
पुरुषानहम्।।
ऊँ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद
प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्रये
श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
ऊँ
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारमार्द्रां
ज्वलतीं तृप्तां तर्पयंतीम्।
पदे स्थितां पद्वर्णां तामिहोपह्रये
श्रियम्।।
ऊँ चंद्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पदिनेमीं शरणमहं प्रपघेSलक्ष्मीर्मे
नश्यतां त्वां वृणोमि।।
ऊँ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोSथ विल्व:।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या
अन्तरा याश्य ब्राह्मा अलक्ष्मी:।।
ऊँ उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च
मणिना सह।
प्रादुर्भूतोSस्मिराष्ट्रेस्मिन्
कीर्त्तिमृद्धिं
ददातु मे।।
ऊँ क्षुत्पिपासमलां ज्येष्ठामलक्ष्म
ी नाशयाम्यहम्
अभूतिम समृद्धिं च सर्वां निणुर्द में
गृहात्।।
ऊँ मनस: काममाकूतिं वाच:
सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि: श्री:
श्रयतां दश:।।
ऊँ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय में कुले मातरं
पद्मालिनीम्।।
ऊँ आप: सृजंतु स्निग्धानि चिक्लीत वस
मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय में कुले।।
ऊँ
आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगला पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयी लक्ष्मीं जातवेदो मम
आवह ।।
ऊँ आर्दा य:
करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म
आवह।।
ऊँ तांमSआ वह
जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यांहिरण्यं
प्रभूतंगावो दास्योSश्वान् विन्देयं
पुरुषानहम्।।
ऊँ य: शुचि:
प्रयतो भूत्वा जुहुयावाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्।।
धनदा स्तोत्रम्
शिव उवाच:
अथात: सम्प्रवक्ष्यामि धनदा स्तोत्रं
उत्तमम्।
यशोक्तं सर्व तंत्रेषु इदानीं तत्
प्रकाशित्म।।
नम: सर्वस्वरपेण नम: कल्याणदायिके।
महासंपद्प्रदे देवि धनदायै नमोSस्तु ते।।
महाभोगप्रदे देवि महाकाम प्रपूरिते।
सुखमोक्षप्रदे देवि धनदायै नमोSस्तु ते
।।
ब्रह्मरूपे सदानंदे सदानंद स्वरूपिणि।
द्रुतसिद्धिप्रदे देवि धनदायै नमोSस्तु
ते।।
उद्यत्सूर्य प्रकाशाभे उद्यत्आर्दित्य
मंडले।
शिवतत्व प्रदे देवि धनदायै नमोSस्तु
ते।।
विष्णुरूपे विश्वमते विश्व पालन
कारिणी।
महासत्व गुणाक्रांते धनदायै नमोSस्तु
ते।।
शिवरूपे शिवानंदे कारणानंद-विग्रहे।
विश्व संहार रूपे च धनदायै नमोSस्तु ते।।
पंचतत्व स्वरूपे च पंचाचार-सदारते।
साधका भीष्ट दे देवि धनदायै
नमोSस्तु ते।
इदं स्तोत्रं मयाप्रोक्तं साधकाभीष्ट
दायकम्।
य: पठेत् पाठयेद्वापि स लभेत् सकल
फलम्।।
त्रिसंध्यं य: पठेत् नित्यं स्तोत्रमतेत्
समाहित:।
स सिद्धि लभते शीघ्रं
नात्रकार्या विचारणा।।
इंद्र रहस्यं परमं स्तोत्रं परम दुर्लभम्।
गोपनीयं प्रयत्नेन
स्वयोतिखि पार्वति।।
अप्रकाश्यमिदं देवि गोपनीयं
परात्परम्।


जो दुख को ठीक से जान लेता है, वह सुख से छूट जाता है।

जो दुख को ठीक से जान लेता है, वह सुख से छूट
जाता है। जो दुख को ठीक से जान लेता है, वह
चाह से छूट जाता है। जिसकी कोई चाह
नहीं, उसका फिर कोई जन्म नहीं है।
अस्तित्व होगा उसका--शुद्धतम। वही शुद्धतम
अस्तित्व आनंद है।
लेकिन भूल मत करना आप। उस आनंद का आपके सुख से कोई
भी संबंध नहीं है। उस आनंद में दुख तो
खो ही जाते हैं, सुख भी खो जाता है।
इसलिए बुद्ध ने तो उस शब्द का प्रयोग करना भी
पसंद नहीं किया, आनंद शब्द का। क्योंकि आनंद से
सुख का आभास मिलता है। अगर शब्दकोश में जाएंगे खोजने, तो
आनंद का कुछ भी अर्थ किया जाए, उसमें सुख रहेगा
ही। पारलौकिक सुख होगा, अनंत सुख होगा, शाश्वत
सुख होगा, लेकिन सुख होगा ही। तो शब्दकोश ज्यादा
से ज्यादा इतना ही भेद कर सकता है कि यह
क्षणभंगुर सुख है, वह शाश्वत होगा। लेकिन होगा सुख। बुद्ध
ने शब्द ही छोड़ दिया था। बुद्ध कहते थे शांति, आनंद
नहीं। वे कहते थे, सब शांत हो जाएगा, सब शांत हो
जाएगा। उस शांत क्षण को आप जो भी चाहें कहें।
उस शांत क्षण में कोई भविष्य नहीं, कोई यात्रा
नहीं है। अस्तित्व के केंद्र-बिंदु से मिलन है।
यह हाथ में है। यह हाथ में इसलिए है कि समझ आपके पास
है। यह हाथ में इसलिए है कि समझ की धारा को
आप चाहें तो अभी दुख पर केंद्रित कर सकते हैं।
उसी का नाम ध्यान है। समझ की धारा को
दुख पर फोकस करने का नाम ध्यान है। और जो भी
व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों पर
अपनी समझ की धारा को नियोजित कर लेता
है, वह त्याग को उपलब्ध हो जाता है, और उस स्थिति को,
जहां फिर कोई पुनरागमन नहीं.
सहि मे यहि वह स्थिति हे जीसे हम ''परमतत्व'' ते नाम से पेहचानते है।


।। भोलेनाथ ।।

।। भोलेनाथ ।।
धन धन भोलेनाथ सदाशिव कमी नही ख़ज़ाने मे ।
तीनों लोक बसे बस्ती मे आप बसे वीराने मे ।।

जटाजूट सर गंगा गले रुण्डन माला ।
माथे छोटा चन्दा रखे कृपा का प्याला ।।
जिसको देखो भय से व्यापै गल सर्पन की माला ।
त्रिनेत्र धारी भवभयहारी करे तीनों लोक उजियाला ।।
पीने को भँग सदाशिव खाने को धतूरा ।
रहत सदा मौन मस्ती मे धरत ध्यान न्यारा ।।
नाम अनेक आप के शंभो सबसे उत्तम नंगा ।
अजब आप की माया जटा जूट बिच गंगा ।।
भूत प्रेत बैताल नाथ आप का लश्कर सबसे चंगा ।
तीनों लोक विधाता आप बने दानी भिखमंगा ।।
नाथ भोलेनाथ बताओ क्या मिलता अलख जगाने मे ।
तीनों लोक बसे बस्ती मे आप बसे वीराने मे ।।
धन धन भोलेनाथ सदाशिव कमी नही ख़ज़ाने मे ।
तीनों लोक बसे बस्ती मे आप बसे वीराने मे ।।
।। महादेव ।।

जब पार्वती ने बनाया भोजन तो शिवजी ने उन्हें बताई ये अनोखी बात*

🌹🌹जब पार्वती ने बनाया भोजन तो शिवजी ने उन्हें बताई ये अनोखी बात*
*एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा की प्रभु मैंने पृथ्वी पर देखा है कि जो व्यक्ति पहले से ही अपने प्रारब्ध से दुःखी है आप उसे और ज्यादा दुःख प्रदान करते हैं और जो सुख में है आप उसे दुःख नहीं देते है। भगवान ने इस बात को समझाने के लिए माता पार्वती को धरती पर चलने के लिए कहा और दोनों ने इंसानी रूप में पति-पत्नी का रूप लिया और एक गावं के पास डेरा जमाया । शाम के समय भगवान ने माता पार्वती से कहा की हम मनुष्य रूप में यहां आए है इसलिए यहां के नियमों का पालन करते हुए हमें यहां भोजन करना होगा। इसलिए मैं भोजन कि सामग्री की व्यवस्था करता हूं, तब तक तुम भोजन बनाओ।*

*जब भगवान के जाते ही माता पार्वती रसोई में चूल्हे को बनाने के लिए बाहर से ईंटें लेने गईं और गांव में कुछ जर्जर हो चुके मकानों से ईंटें लाकर चूल्हा तैयार कर दिया। चूल्हा तैयार होते ही भगवान वहां पर बिना कुछ लाए ही प्रकट हो गए। माता पार्वती ने उनसे कहा आप तो कुछ लेकर नहीं आए, भोजन कैसे बनेगा। भगवान बोले - पार्वती अब तुम्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। भगवान ने माता पार्वती से पूछा की तुम चूल्हा बनाने के लिए इन ईटों को कहा से लेकर आई तो माता पार्वती ने कहा - प्रभु इस गावं में बहुत से ऐसे घर भी हैं जिनका रख रखाव सही ढंग से नहीं हो रहा है। उनकी जर्जर हो चुकी दीवारों से मैं ईंटें निकाल कर ले आई। भगवान ने फिर कहा - जो घर पहले से ख़राब थे तुमने उन्हें और खराब कर दिया। तुम ईंटें उन सही घरों की दीवार से भी तो ला सकती थीं।माता पार्वती बोली - प्रभु उन घरों में रहने वाले लोगों ने उनका रख रखाव बहुत सही तरीके से किया है और वो घर सुंदर भी लग रहे हैं*
*ऐसे में उनकी सुंदरता को बिगाड़ना उचित नहीं होता।भगवान बोले - पार्वती यही तुम्हारे द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर है। जिन लोगो ने अपने घर का रख रखाव अच्छी तरह से किया है यानि सही कर्मों से अपने जीवन को सुंदर बना रखा है उन लोगों को दुःख कैसे हो सकता है।मनुष्य के जीवन में जो भी सुखी है वो अपने कर्मों के द्वारा सुखी है, और जो दुखी है वो अपने कर्मों के द्वारा दुखी है । इसलिए हर एक मनुष्य को अपने जीवन में ऐसे ही कर्म करने चाहिए की, जिससे इतनी मजबूत व खूबसूरत इमारत खड़ी हो कि कभी भी कोई भी उसकी एक ईंट भी निकालने न पाए। प्रिय बंधुओ व मित्रो, यह काम जरा भी मुश्किल नहीं है। केवल सकरात्मक सोच और निः स्वार्थ भावना की आवश्यकता है । इसलिए जीवन में हमेशा सही रास्ते का ही चयन करें और उसी पर चलें।*
*सीख: 1.हमेशा अच्छे कर्म करें।*
*2. जीवन में हमेशा सही रास्ते का चयन करें*

स्त्री का सच्चा गुरु....!!!

स्त्री का सच्चा गुरु....!!!
एक समय शिव जी और माता पार्वती कैलाश पर विराजमान थे कि तभी कहीं से कुछ जल के कुछ छीटे दोनों पर पड़े। माँ पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि यहाँ कैलाश पर ये जल के छीटे कहाँ से आये। इस पर शिव जी ने बोला कि दूर कहीं महासागर में किसी बड़ी मछली की पूंछ पटकने से ये छीटे आये हैं। इस पर माता पार्वती बोलीं कि वो मछली इतनी बलशाली है अवश्य ही मैं उसे अपना गुरु बनाऊँगी। इस पर शिव जी ने कहा कि स्त्री का गुरु उसका पति ही होता है। अतः मैं ही तुम्हारा गुरु हूँ। माता नहीं मानी और हठ करके उस मछली के पास पहुंची।

मछली से माता बोली कि तुम इतनी बलशाली हो मैं तुम्हे अपने गुरु के रूप में धारण करना चाहती हूँ। कृपया मुझे अपनी शिष्या स्वीकार करें। इस पर मछली ने नम्रतापूर्वक कहा कि मुझ जैसी अनगिनत मछलियाँ इस सागर में समाहित हैं अगर गुरु बनाना है तो इस सागर को बनाइये।
माता सागर के पास पहुंची और गुरु बनाने की मंशा प्रकट की। ये सुनकर सागर ने क्षमा मांगते हुए कहा कि हे देवी अगर गुरु बनाना है तो इस धरती को बनाये जिसमे मुझ जैसे सात सात महासागर हैं।
अब माता ने धरती माँ से निवेदन किया, सुनते ही धरती माँ ने कहा कि मेरा बोझ तो स्वयं शेषनाग ने अपने फण पर उठा रखा है। गुरु बनाना है तो उन्हें बनाइये।
अब शेषनाग के पास पहुँच कर माता ने उनसे गुरु बन जाने का आग्रह किया तो शेषनाग ने कहा कि हे माते गुरु बन ने योग्य तो भगवान शिव ही हैं क्योंकि उन्होंने ही मुझे अपने कंठ प्रदेश में धारण कर रखा है।

।। हर हर महादेव ।।


भारत के युवक के चारों तरफ सेक्‍स घूमता रहता है पूरे वक्‍त

भारत के युवक के चारों तरफ सेक्‍स घूमता रहता है पूरे वक्‍त। और इस घूमने के कारण उसकी सारी शक्‍ति इसी में लीन और नष्‍ट हो जाती है। जब तक भारत के युवक की सेक्‍स के इस रोग से मुक्‍ति नहीं होती, तब तक भारत के युवक की प्रतिभा का जन्‍म नहीं हो सकता। प्रतिभा का जन्‍म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्‍स की सहज स्‍वीकृति हो जायेगी। हम उसे जीवन के एक तथ्‍य की तरह अंगीकार कर लेंगे—प्रेम से, आनंद से—निंदा से नहीं। और निंदा और घृणा का कोई कारण भी नहीं है।
सेक्‍स जीवन का अद्भुत रहस्‍य है। वह जीवन की अद्भुत मिस्ट्रि हे। उससे कोई घबरानें की,भागने की जरूरत नहीं है। जिस दिन हम इसे स्‍वीकार कर लेंगे, उस दिन इतनी बड़ी उर्जा मुक्‍त होगी भारत में कि हम न्‍यूटन पैदा कर सकेंगे,हम आइंस्‍टीन पैदा कर सकेंगे। उस दिन हम चाँद-तारों की यात्रा करेंगे। लेकिन अभी नहीं। अभी तो हमारे लड़कों को लड़कियों के स्‍कर्ट के आस पास परिभ्रमण करने से ही फुरसत नहीं है। चाँद तारों का परिभ्रमण कौन करेगा। लड़कियां चौबीस घंटे अपने कपड़ों को चुस्‍त करने की कोशिश करें या कि चाँद तारों का विचार करें। यह नहीं हो सकता। यह सब सेक्सुअलिटी का रूप है।

हम शरीर को नंगा देखना और दिखाना चाहते है। इसलिए कपड़े चुस्‍त होते चले जाते है।
सौंदर्य की बात नहीं है यह, क्‍योंकि कई बार चुस्‍त कपड़े शरीर को बहुत बेहूदा और भोंडा बना देते है। हां किसी शरीर पर चुस्‍त कपड़े सुंदर भी हो सकते है। किसी शरीर पर ढीले कपड़े सुंदर हो सकते है। और ढीले कपड़े की शान ही और है। ढीले कपड़ों की गरिमा और है। ढीले कपड़ों की पवित्रता और है।
लेकिन वह हमारे ख्‍याल में नहीं आयेगा। हम समझेंगे यह फैशन है, यह कला है, अभिरूचि है, टेस्‍ट है। नहीं ‘’टेस्‍ट’’ नहीं है। अभी रूचि नहीं है। वह जो जिसको हम छिपा रहे है भीतर दूसरे रास्‍तों से प्रकट होने की कोशिश कर रहा है। लड़के लड़कियों का चक्‍कर काट रहे है। लड़कियां लड़कों के चक्र काट रही है। तो चाँद तारों का चक्‍कर कौन काटेगा। कौन जायेगा वहां? और प्रोफेसर? वे बेचारे तो बीच में पहरेदार बने हुए खड़े है। ताकि लड़के लड़कियां एक दूसरे के चक्‍कर न काट सकें। कुछ और उनके पास काम है भी नहीं। जीवन के और सत्‍य की खोज में उन्‍हें इन बच्‍चों को नहीं लगाना है। बस, ये सेक्‍स से बचे जायें,इतना ही काम कर दें तो उन्‍हें लगता है कि उनका काम पूरा हो गया।
यह सब कैसा रोग है, यह कैसा डिसीज्‍ड माइंड, विकृत दिमाग है हमारा। हम सेक्‍स के तथ्‍यों की सीधी स्‍वीकृति के बिना इस रोग से मुक्‍त नहीं हो सकते। यह महान रोग है।
इस पूरी चर्चा में मैंने यह कहने की कोशिश की है कि मनुष्‍य को क्षुद्रता से उपर उठना है। जीवन के सारे साधारण तथ्‍यों से जीवन के बहुत ऊंचे तथ्‍यों की खोज करनी है। सेक्‍स सब कुछ नहीं है। परमात्‍मा भी है दुनिया में। लेकिन उसकी खोज कौन करेगा। सेक्‍स सब कुछ नहीं है इस दुनिया में सत्‍य भी है। उसकी खोज कौन करेगा। यहीं जमीन से अटके अगर हम रह जायेंगे तो आकाश की खोज कौन करेगा। पृथ्‍वी के कंकड़ पत्‍थरों को हम खोजते रहेंगे तो चाँद तारों की तरफ आंखे उठायेगा कौन?
संभोग से समाधि की और—26



बुद्धत्व कभी—कभी खिलता है।

बुद्धत्व कभी—कभी खिलता है।
वह सहस्रार का कमल कभी—कभी खिलता है। उसकी आकांक्षा न करे मनुष्य जो रोज खिलता है, जो रोज मिलता है। उस क्षुद्र में कुछ भी नहीं है। उसकी आकांक्षा करे जो अपूर्व है, अद्वितीय है, अनिर्वचनीय, पकड़ के बाहर है। उसे चाहे जो असंभव है।
जिस दिन असंभव को चाहा, उसी दिन मनुष्य धार्मिक हुआ। असंभव की वासना— धर्म की परिभाषा है।
संभव में क्या भरोसा करना! संभव में भरोसा करने के लिए कोई बुद्धिमानी चाहिए, कोई बड़ी प्रतिभा चाहिए? संभव में भरोसा तो बुद्धु से बुद्धु को आ जाता है।असंभव में भरोसे के लिए भीतर श्रद्धा के पहाड़ उठें, गौरीशंकर निर्मित हो, तो असंभव
की श्रद्धा होती है। असंभव की चाह है धर्म। 'पैशनफॉर द इंपॉसिबल!'
' धर्म, अध्यात्म जैसे संबोधन अनावश्यक रूप से आत्मज्ञान के साथ जोड़
दिए गए हैं?'
नहीं, जरा भी नहीं। वे संबोधन बडे सार्थक हैं। धर्म का अर्थ होता है. स्वभाव।
वह बड़ा सांकेतिक शब्द है।
धर्म का अर्थ रिलिजन या मजहब नहीं होता। रिलिजन या मजहब को तो संप्रदाय कहते हैं।
धर्म का अर्थ तो बड़ा गहरा है।
जिसके कारण जैन, धर्म है; और जिसके कारण हिंदू धर्म है; जिसके कारण ये सारे धर्म, धर्म कहे जाते है—वह जो सबका सारभूत है, उसका नाम धर्म है। ये सब उस धर्म तक पहुंचने के मार्ग हैं, इसलिए संप्रदाय हैं।
जैन एक संप्रदाय है, बौद्ध एक संप्रदाय है, इस्लाम और ईसाइयत एक संप्रदाय है।
धर्म तो वह है जहां तक संप्रदाय पहुंचा देते हैं। इसलिए इस्लाम को धर्म कहना उचित नहीं—संप्रदाय! 'संप्रदाय' शब्द अच्छा है। इसका अर्थ होता है मार्ग, जिससे हम पहुंचें। जिस पर पहुंचें, वह धर्म है।
'धर्म' बड़ा अनूठा शब्द है। उसका गहरा अर्थ होता है. स्वभाव;जो आत्यंतिक स्वभाव है;भीतर के आखिरी केंद्र पर जो छिपा है बीज की तरह, उसका प्रगट हो जाना।
दुनिया में धर्म नहीं हैं।कभी—कभी धार्मिक व्यक्ति होते हैं। जो हैं, वे सब संप्रदाय हैं।
धर्म शब्द व्यर्थ नहीं है। ऐसे जबर्दस्ती आत्मज्ञान के ऊपर नहीं थोप दिया गया है।
और अध्यात्म भी बड़ा बहुमूल्य शब्द है। उसका भी वही मतलब होता है;वह, जो मनुष्य की निजता है।


आदेश आदेश

आदेश आदेश
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गुरु जब शिष्य के धन पर अकार्षित होता है तो उसका गुरु तत्व नष्ट हो जाता है
और वैसे ही शिष्य जब गुरु से छल या कपट करता है और उनके धन की और अकार्षित होता है तो उसका शिष्य तत्व उसी छण नष्ट हो जाता है थना
वह जीवन में किसी भी साधना भक्ति में कभी भी सफल नहीं होता है 
यह हमारी बात अटल है

अगर यह गुण गुरु या फिर शिष्य मैं है तो उनका पतन निश्चित होता है
किसी भी कार्य को करने के पहले हमें बुनियादी बातो का मनन करना आवश्यक है
क्योंकि
* अधकुचली विद्या बुरी ओछे कुल की नार।
कोड पडी धरती बुरी यह तीनो एक समान।।*
हमें आधी शिक्षा कभी भी नहीं लेनी चाहिए क्योंकि अगर हम अधुरे है शरेन। तो कभी पुरे नहीं हो सकते जब हम पुरे नहीं हो सकते तो हम किसी को सही दिशा दिखा भी नहीं सकते हैं
क्योंकि हम अधुरे है
कहने का अर्थ यह है
चाहे भक्ति हो
चाहे गुरु सेवा हो
चाहे मंत्र तंत्र की शिक्षा हो
हमें हमेशा संपूर्णता से ग्रहण करना चाहिए
यही छोटी छोटी बातों पर हमे ध्यान देना चाहिए।।

अब कोई माने या ना माने"ॐ" के जाप से होता है शारीरिक लाभ

अब कोई माने या ना माने"ॐ" के जाप से होता है शारीरिक लाभ"ॐ" केवल एक पवित्र ध्वनि ही नहीं, अपितु अनंत शक्ति का प्रतीक है। ॐअर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, जो सर्व विदित है । अ उ म् । "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना , "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात्"ब्रह्मलीन" हो जाना । ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है । ॐ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का प्रदायक है । मात्र ॐ का जप कर कई साधकों ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर ली।कोशीतकी ऋषि निस्संतान थे, संतान प्राप्तिके लिए उन्होंने सूर्यका ध्यान कर ॐ का जाप किया तो उन्हे पुत्र प्राप्ति हो गई । गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में उल्लेख है कि जो "कुश" के आसन पर पूर्व कीओर मुख कर एक हज़ार बार ॐ रूपी मंत्र का जाप करता है, उसके सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं।उच्चारण की विधि : प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारणकरें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।ॐ के उच्चारण से शारीरिक लाभ -
1. अनेक बार ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।
2. अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछभी नहीं।
3. यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
4. यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
5. इससे पाचन शक्ति तेज़ होती है।
6. इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
7. थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।8. नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात कोसोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।
9. कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।
10. ॐ के पहले शब्द का उच्चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।
11. ॐ के दूसरे शब्द का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रंथी पर प्रभाव डालता है।कृपया हिंदुत्व व आध्यात्म के ज्ञान को और अटूट करने के लिए शेयर करें ...



*एक साधू

*एक साधू किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया।पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं तो तीन-चार पनिहारिनें पानी के लिए आईं तो एक पनिहारिन ने कहा- "आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया। पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली। उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया। दूसरी बोली,"साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई। अभी रोष नहीं गया, तकिया फेंक दिया।" तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें ?तब तीसरी पनिहारिन बोली,"बाबा! यह तो पनघट है, यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?"लेकिन एक चौथी पनिहारिन ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी- "साधु, क्षमा करना, लेकिन हमको लगता है, तूमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है, अभी तक वहीं का वहीं बने हुए है। दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तूम जैसे भी हो, हरिनाम लेते रहो।"सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना।आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे, "अभिमानी हो गए।"नीचे देखकर चलोगे तो कहेंगे... "बस किसी के सामने देखते ही नहीं।"आंखे बंद कर दोगे तो कहेंगे कि "ध्यान का नाटक कर रहा है।"चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि "निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।"और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि "किया हुआ भोगना ही पड़ता है।"ईश्वर को राजी करना आसान है, लेकिन संसार को राजी करना असंभव है। दुनिया क्या कहेगी,उस पर ध्यान दोगे तो आप अपना ध्यान नहीं लगा पाओगे।*

मार्ग

मार्ग 
मेरा मार्ग हृदय का मार्ग बताया जाता रहा है, लेकिन यह सत्य नहीं है। हृदय तुम्हें सभी तरह की कल्पनाएं, भ्रम, छल, मधुर सपने देगा--लेकिन यह तुम्हें सत्य नहीं दे सकता। सत्य दोनों के पार है; यह तुम्हारी चेतना में है, जो कि न तो मन है न ही हृदय। बस चूंकि चेतना दोनों से अलग है, यह दोनों का लयबद्ध उपयोग कर सकती है। कुछ क्षेत्रों में मन खतरनाक है, क्योंकि इसके आंखें हैं पर पैर नहीं--यह अपाहिज है।हृदय कुछ आयामों में कार्य कर सकता है। इसके पास आंखें नहीं हैं पर पैर हैं ; यह अंधा है लेकिन यह त्वरा से चल सकता है, बहुत तेज गति के साथ--निश्चित ही, यह जाने बिना कि कहां जा रहा है। यह संयोग मात्र ही नहीं है कि दुनिया की सभी भाषाओं में प्रेम को अंधा कहा जाता है। यह प्रेम नहीं है जो अंधा है, यह हृदय है जिसके पास आंखें नहीं हैं।जैसे-जैसे तुम्हारा ध्यान गहरा होता है, जैसे-जैसे तुम्हारा हृदय और मन से तादात्म्य टूटने लगता है, तुम पाते हो कि तुम त्रिकोण बनने लगते हो। और तुम्हारी वास्तविकता तीसरी शक्ति में है : चेतना में। चेतना आसानी से सम्हाल सकती है क्योंकि हृदय और मन दोनों इसके हिस्से हैं:
ओशो


👉 सौभाग्य भरे क्षणों को तिरस्कृत न करें

👉 सौभाग्य भरे क्षणों को तिरस्कृत न करें
🔴 ईश्वर ने मनुष्य को एक साथ इकट्ठा जीवन न देकर उसे अलग−अलग क्षणों में टुकड़े−टुकड़े करके दिया है। नया क्षण देने से पूर्व वह पुराना वापिस ले लेता है और देखता है कि उसका किस प्रकार उपयोग किया गया। इस कसौटी पर हमारी पात्रता कसने के बाद ही वह हमें अधिक मूल्यवान क्षणों का उपहार प्रदान करता है।।
🔵 समय ही जीवन है। उसका प्रत्येक क्षण बहुमूल्य है। वे हमारे सामने ऐसे ही खाली हाथ नहीं आते वरन् अपनी पीठ कीमती उपहार लादे होते हैं। यदि उनकी उपेक्षा की जाय तो निराश होकर वापिस लौट जाते है किन्तु यदि उनका स्वागत किया जाय तो उन मूल्यवान संपदाओं को देकर ही जाते है किन्तु यदि ईश्वर ने अपने परम प्रिय राजकुमार के लिए भेजी है।

🔴 जीवन का हर प्रभात सच्चे मित्र की तरह नित नये अनुदान लेकर आता है। वह चाहता है उस दिन का शृंगार करने में इस अनुदान के किये गये सदुपयोग को देख कर प्रसन्नता व्यक्त करें।
🔵 उपेक्षा और तिरस्कार पूर्वक लौटा दिये गये जीवन के क्षण−घटक दुखी होकर वापिस लौटते हैं। आलस्य और प्रमाद में पड़ा हुआ मनुष्य यह देख ही नहीं पाता कि उसके सौभाग्य का सूर्य दरवाजे पर दिन आता है और कपाट बन्द देख कर निराश वापिस लौट जाता है।
🌹 रवीन्द्रनाथ टैगोर
🌹 अखण्ड ज्योति- अप्रैल 1974 पृष्ठ 1

होश (HOSH)

होश
होश की चाबी ऐसी चाबी है। तुम चाहे काम पर लगाओ तो काम को खोल देती है क्रोध पर लगाओ क्रोध को खोल देती है लोभ पर लगाओ लोभ को खोल देती है; मोह पर लगाओ, मोह को खोल देती है। तालों की फिकर ही नहीं है—मास्टर की है। कोई भी ताला इसके सामने टिकता ही नहीं। वस्तुत: तो ताले में चाबी डल ही नहीं पाती, तुम चाबी पास लाओ और ताला खुला।
यह चमत्कारी सूत्र है। इससे महान कोई सूत्र नहीं। इससे तुम बचते हो और बाकी तुम सब तरकीबें करते हो, जो कोई भी काम में आने वाली नहीं हैं। तुम्हारी नाव में हजार छेद हैं। एक छेद बंद करते हो तब तक दूसरे छेदों से पानी भर रहा है। तुम क्रोध से जूझते हो, तब तक काम पैदा हो रहा है।

सूत्र हैं, कर्म के प्रति जागो। पहला सूत्र। जब कर्म के प्रति होश सध जाए तो फिर जागो कर्ता के प्रति। होश के दीए को जरा भीतर मोड़ो। जब कर्ता के प्रति दीया साफ—साफ रोशनी देने लगे, तो अब उसके प्रति जागो जो जागा हुआ है—साक्षी के प्रति। अब जागरण के प्रति जागो। अब चैतन्य के प्रति जागो। वही तुम्हें परमात्मा तक ले चलेगा।
ऐसा समझो, साधारण आदमी सोया हुआ है। साधक संसार के प्रति जागता है, कर्म के प्रति जागता है। अभी भी बाहर है, लेकिन अब जागा हुआ बाहर है। साधारण आदमी सोया हुआ बाहर है। धर्म की यात्रा पर चल पड़ा व्यक्ति बाहर है, लेकिन जागा हुआ बाहर है।
फिर जागने की इसी प्रक्रिया को अपनी तरफ मोड़ता है। एक दफे जागने की कला आ गयी, कर्म के प्रति, उसी को आदमी कर्ता की तरफ मोड़ देता है। हाथ में रोशनी हो, तो कितनी देर लगती है अपने चेहरे की तरफ मोड़ देने में! बैटरी हाथ में है, मत देखो दरख्त, मत देखो मकान, मोड़ दो अपने चेहरे की तरफ! हाथ में बैटरी होनी चाहिए, रोशनी होनी चाहिए। फिर अपना चेहरा दिखायी पड़ने लगा।
साधारण व्यक्ति संसार में सोया हुआ है; साधक संसार में जागा हुआ है; सिद्ध भीतर की तरफ मुड़ गया, अंतर्मुखी हो गया, अपने प्रति जागा हुआ है। अब बाहर नहीं है, अब भीतर है और जागा हुआ है। और महासिद्ध, जिसको बुद्ध ने महापरिनिर्वाण कहा है, वह जागने के प्रति भी जाग गया। अब न बाहर है न भीतर, बाहर—भीतर का फासला भी गया। जागरण की प्रक्रिया दोनों के पार है।
ओशो


शक्ति बिना मुक्ति नहीं

शक्ति बिना मुक्ति नहीं
🔶 यह बात भली-भाँति हृदयंगम कर लेनी चाहिये कि शक्ति बिना मुक्ति नहीं। गरीबी से, गुलामी से, बीमारी से, बेईमानी से भव बाधा से तब तक छुटकारा नहीं मिल सकता, जब तक कि शक्ति का उपार्जन न किया जाय। आर्य जाति सदा से ही शक्ति का महत्व स्वीकार करती है और उसने शक्ति पूजा को ऊँचा स्थान दिया है।
🔷 एक महात्मा का कथन है कि Right is might, therefore might is Right अर्थात् सत्य ही शक्ति है, इसलिए शक्ति ही सत्य है, अविद्या, अन्धकार और अनाचार का नाश सत्य के प्रकाश द्वारा ही हो सकता है। मन में शक्ति का उदय होने पर साधारण से मनुष्य कोलम्बस, लेनिन, गाँधी, सनयातसेन जैसी हस्ती बन जाते हैं।
🔶 आत्मा की मुक्ति भी ज्ञान शक्ति एवं साधन शक्ति से ही होती है। अकर्मण्य और निर्बल मन वाला व्यक्ति आत्मोद्धार नहीं कर सकता और न ही ईश्वर को ही प्राप्त कर सकता है। लौकिक और पारलौकिक सब प्रकार के दुख द्वंद्वों से छुटकारा पाने के लिए शक्ति की ही उपासना करनी पड़ेगी। निस्संदेह शक्ति के बिना मुक्ति नहीं मिल सकती अशक्त मनुष्य तो दुख द्वंद्वों में ही पड़े-पड़े बिलबिलाते रहेंगे और कभी भाग्य को, कभी ईश्वर को, कभी दुनिया को दोष देते हुए झूठी विडंबना करते रहेंगे। जो व्यक्ति किसी भी दशा में महत्व प्राप्त करना चाहते है, उन्हें चाहिये कि अपने इच्छित मार्ग के लिये शक्ति संपादन करे।


👉 ‘बुरे’ भी ‘भले’ बन सकते हैं (भाग 2)

👉 ‘बुरे’ भी ‘भले’ बन सकते हैं (भाग 2)
🔶 एक बार स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में अध्यात्म पर भाषण दे रहे थे। अमेरिकनों ने सभा में ही पूछा स्वामी जी! क्या भारतवासी पूर्ण अध्यात्मवादी हो गये हैं, जिससे उन्हें उपदेश न देकर आपको अमेरिका आने की आवश्यकता अनुभव हुई? स्वामी जी ने इस प्रश्न का बड़ा अच्छा उत्तर दिया। उन्होंने कहा- आप अमेरिका निवासी रजोगुणी स्थिति में है, धनी और विद्या सम्पन्न है इसलिए आप ही सतोगुण स्थिति में चलने के, अध्यात्म का अवलम्बन करने के अधिकारी हैं। मैं अधिकारी पात्रों को ढूँढ़ता हुआ आपके पास अमेरिका आया हूँ। मेरे देश वासी इस समय, दरिद्रता, अविद्या और पराधीनता में जकड़े पड़े हैं, उनकी स्थिति तम की है। मैं उनसे कहा करता हूँ कि- तुम उद्योगी बनो, अधिक कमाओ, अच्छा खाओ और सम्मान पूर्वक जीना सीखो यही उनके लिए आत्मोन्नति का मार्ग है। तम की स्थिति को पार कर रजोगुण में जागृत होना और तदुपरान्त सतोगुण में पदार्पण करना आत्मोन्नति का यह सीधा सा मार्ग है।

🔷 जो लोग पिछले जीवन में कुमार्ग गामी रहे हैं, बड़ी ऊटपटाँग गड़बड़ करते रहे हैं वे भूले हुए, पथभ्रष्ट तो अवश्य हैं पर इस गणन प्रक्रिया द्वारा भी उन्होंने अपनी चैतन्यता बुद्धिमत्ता, जागरुकता और क्रियाशीलता को बढ़ाया है। यह बढ़ोतरी एक अच्छी पूँजी है। पथ भ्रष्टता के कारण जो पाप उनसे बन पड़े हैं वे पश्चाताप और दुःख के हेतु अवश्य हैं पर संतोष की बात इतनी है कि इस कँटीले, पथरीले, लहू-लुहान करने वाले, ऊबड़-खाबड़ दुखदायी मार्ग में भटकते हुए भी मंजिल की दिशा में ही यात्रा की है। यदि अब संभल जाया जाय और सीधे राजमार्ग से, सतोगुणी आधार से आगे बढ़ा जाय तो पिछला ऊल-जलूल कार्यक्रम भी सहायक ही सिद्ध होगा।
🔶 पिछले पाप नष्ट हो सकते हैं, कुमार्ग पर चलने से जो घाव हो गये हैं वे थोड़ा दुख देकर शीघ्र अच्छे हो सकते हैं। उनके लिए चिंता एवं निराशा की कोई बात नहीं। केवल अपनी रुचि और क्रिया को बदल देना है। यह परिवर्तन होते ही बड़ी तेजी से सीधे मार्ग पर प्रगति होने लगेगी। दूरदर्शी तत्वज्ञों का मत है कि जब बुरे आचरणों वाले व्यक्ति बदलते हैं तो आश्चर्य जनक गति से सन्मार्ग में प्रगति करते हैं और स्वल्प काल में ही सच्चे महात्मा बन जाते हैं। जिन विशेषताओं के कारण वे सफल बदमाश थे वे ही विशेषताएं उन्हें सफल संत बना देती है।