राहु सता रहा हो, मारकेश चल रहा हो, मृत्यु तुल्य कष्ट हो,विवाह न हो रहा हो, विवाह हो गया और विवाह में परेशानियां हो, मन अशान्त हो, मानसिक परेशानी हो, आर्थिक दिक्कत हो, समाज में सम्मान न मिल रहा हो तो शिव पूजा के उपाय किये जाते हैं परन्तु शिव पूजा कब की जाये और कैसे की जाये, यह हममें से बहुत कम लोग जानते हैं इसलिए शिव पूजा का फल नहीं प्राप्त होता है।
शिव पुराण के अनुसार शिव सिद्धि हेतु शिव-पार्वती संवाद :-
भगवन शिव ने पार्वतीजी से कहा :- "एकांत स्थान पर सुखासन में बैठ जाएँ. मन में ईश्वर का स्मरण करते रहें. अब तेजी से सांस अन्दर खींचकर फिर तेजी से पूरी सांस बाहर छोड़कर रोक लें. श्वास इतनी जोर से बाहर छोड़ें कि इसकी आवाज पास बैठे व्यक्ति को भी सुनाई दे. इस प्रकार सांस बाहर छोड़ने से वह बहुत देर तक बाहर रुकी रहती है. उस समय श्वास रुकने से मन भी रुक जाता है और आँखों की पुतलियाँ भी रुक जाती हैं. साथ ही आज्ञा चक्र पर दबाव पड़ता है और वह खुल जाता है. श्वास व मन के अल्प कालिक रुकने से अपने आप ही ध्यान होने लगता है और आत्मा का प्रकाश दिखाई देने लगता है. यह विधि शीघ्र ही आज्ञा चक्र को जाग्रत कर देती है.
फिर शिवजी ने पार्वतीजी से कहा :-
रात्रि में एकांत में बैठ जाएँ आँखों बंद करें. हाथों की अँगुलियों से आँखों की पुतलियों को दबाएँ. इस प्रकार दबाने से तारे-सितारे दिखाई देंगे. कुछ देर दबाये रखें फिर धीरे-धीरे अँगुलियों का दबाव कम करते हुए छोड़ दें तो आपको सूर्य के सामान तेजस्वी गोला दिखाई देगा. इसे तैजस ब्रह्म कहते हैं. इसे देखते रहने का अभ्यास करें. कुछ समय के अभ्यास के बाद आप इसे खुली आँखों से भी आकाश में देख सकते हैं. इसके अभ्यास से समस्त विकार नष्ट होते हैं, मन शांत होता है और परमात्मा का बोध होता है.
ऊँ नम: शिवाय का महत्व व जाप पूजा पद्धति :-
ऊँ नम: शिवाय का जप जब आद्रा नक्षत्र हो और चतुर्दशी तिथि हो तो जप अक्षत फलदायक होता है। शिव पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। दूसरी चीज जब आर्द्रा नक्षत्र हो और सूर्य की संक्रांति हो तो जप अक्षत फलदायक होता है। कोई भी समस्या हो, आपको फल मिलेगा लेकिन शिव पुराण में एक बात का और उल्लेख है कि कलयुग में कर्म भी करने पड़ेंगे। आपके कर्म निष्फल न हो इसलिए कर्म के समय जप करने से आपको भोले बाबा की कृपा प्राप्त होगी। हर नक्षत्र के चार पग होते हैं, मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम पग में आप जाप करते है तो हजारों समस्याओं से बच जाते हैं ।
पूजा का जो काल है उसी काल में पूजा करने से अद्भुत फल की प्राप्ति होती है। ब्रम्हा, बिष्णु और महेश के संवाद के जो अंश शिव पुराण में हैं, जो सूत जी हमारे सामने लाये थे, उन्ही के कुछ अशं मैं आपका बता रहा हूं। भगवान शिव को पुष्प और पुनर्वसु नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र या चतुर्दशी या प्रदोषकाल अत्यंत प्रिय हैं। पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम भाग में जप का विशेष महत्व है।
यदि आप केवल ऊँ का जप करते है तो भी अपूर्व फलदायक होता है। खासतौर से विद्यार्थियों के लिए और जो योगी है, सिद्ध है, ध्यान की गहराइयों में जाना चाहते हैं वह इन नक्षत्र में प्रणव का जप किया करें, अवश्य फल मिलेगा। शिव-साधना के लिए, किसी कार्य विशेष के लिए, शिवमय होने के लिए, मोक्ष की कामना के लिए या फिर आप किसी गंभीर समस्या में उलझ जायें या शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने का यही उचित समय है
इसके अलावा अध्यात्म या मोक्ष की कामना के इच्छुक लोगों को लिंग की पूजा करनी चाहिए। जो लोग अध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं, अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा चाहते हैं जिससे समाज के लोगों का कल्याण किया जा सकें, उन्हें शिवलिंग की पूजा अवश्य करनी चाहिए और गृहस्थ कार्यों के सम्पादन हेतु, गृहस्थ कार्यों की उन्नति हेतु मूर्ती की पूजा उचित है । अर्थात यदि आप कोई ऐसा कार्य करना चाहते हैं जिससे गृहस्थ जन की उन्नति हो तो शंकर जी की प्रतिमा की पूजा कीजिए और यदि अध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो शिवलिंग की पूजा कीजिए। यदि शिवलिंग स्वयं बना कर उसकी पंचोपाचार से या षोडषोपचार से प्राण-प्रतिष्ठा की जायें और उसकी नियमित पूजा की जाये तो उसका अद्भत फल मिलता है।
जब राहु या पितृदोष लग जाता है या केतु बहुत ज्यादा परेशान करता है, मंगल साथ नहीं देता है या जब कभी मारकेश लग जाता है तो हम सब जानते हैं कि पूरे घर की क्या हालत होती है। सब लोग बिखर जाते है, कुछ समझ में नहीं आता, कोई भी कार्य नहीं होता, लांछन लगते हैं, यहां तक सरकारी समस्या भी उठ खड़ी होती है। अनेक किस्म की परेशानिया उठ खड़ी होती हैं। अनेक किस्म की परेशानियां खड़ी होती हैं, सब लोग साथ छोड़कर चले जाते हैं, निंदा भी करते हैं। ऐसे में कोई रास्ता न सूझे तो शिवलिंग की स्थापना अपने हाथ से बना कर करें, फिर प्राण-प्रतिष्ठा करें और नियमित पूजा करें, अद्भुत फल प्राप्त होगा !!!
पूजा का जो काल है उसी काल में पूजा करने से अद्भुत फल की प्राप्ति होती है। ब्रम्हा, बिष्णु और महेश के संवाद के जो अंश शिव पुराण में हैं, जो सूत जी हमारे सामने लाये थे, उन्ही के कुछ अशं मैं आपका बता रहा हूं। भगवान शिव को पुष्प और पुनर्वसु नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र या चतुर्दशी या प्रदोषकाल अत्यंत प्रिय हैं। पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम भाग में जप का विशेष महत्व है।
यदि आप केवल ऊँ का जप करते है तो भी अपूर्व फलदायक होता है। खासतौर से विद्यार्थियों के लिए और जो योगी है, सिद्ध है, ध्यान की गहराइयों में जाना चाहते हैं वह इन नक्षत्र में प्रणव का जप किया करें, अवश्य फल मिलेगा। शिव-साधना के लिए, किसी कार्य विशेष के लिए, शिवमय होने के लिए, मोक्ष की कामना के लिए या फिर आप किसी गंभीर समस्या में उलझ जायें या शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने का यही उचित समय है
इसके अलावा अध्यात्म या मोक्ष की कामना के इच्छुक लोगों को लिंग की पूजा करनी चाहिए। जो लोग अध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं, अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा चाहते हैं जिससे समाज के लोगों का कल्याण किया जा सकें, उन्हें शिवलिंग की पूजा अवश्य करनी चाहिए और गृहस्थ कार्यों के सम्पादन हेतु, गृहस्थ कार्यों की उन्नति हेतु मूर्ती की पूजा उचित है । अर्थात यदि आप कोई ऐसा कार्य करना चाहते हैं जिससे गृहस्थ जन की उन्नति हो तो शंकर जी की प्रतिमा की पूजा कीजिए और यदि अध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो शिवलिंग की पूजा कीजिए। यदि शिवलिंग स्वयं बना कर उसकी पंचोपाचार से या षोडषोपचार से प्राण-प्रतिष्ठा की जायें और उसकी नियमित पूजा की जाये तो उसका अद्भत फल मिलता है।
जब राहु या पितृदोष लग जाता है या केतु बहुत ज्यादा परेशान करता है, मंगल साथ नहीं देता है या जब कभी मारकेश लग जाता है तो हम सब जानते हैं कि पूरे घर की क्या हालत होती है। सब लोग बिखर जाते है, कुछ समझ में नहीं आता, कोई भी कार्य नहीं होता, लांछन लगते हैं, यहां तक सरकारी समस्या भी उठ खड़ी होती है। अनेक किस्म की परेशानिया उठ खड़ी होती हैं। अनेक किस्म की परेशानियां खड़ी होती हैं, सब लोग साथ छोड़कर चले जाते हैं, निंदा भी करते हैं। ऐसे में कोई रास्ता न सूझे तो शिवलिंग की स्थापना अपने हाथ से बना कर करें, फिर प्राण-प्रतिष्ठा करें और नियमित पूजा करें, अद्भुत फल प्राप्त होगा !!!
सनी शर्मा (पंजाब)
आदेश आदेश नाथ जी को
पेज नाम :-NATH PANTH & SHIV GORAKSH DHAM SATNALI
आदेश आदेश नाथ जी को
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om namha shivay adesh adesh
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