भैरव का मूल मंत्र :---
रविवार एवं बुधवार को भैरव की उपासना का दिन माना गया है।
कुत्ते को इस दिन मिष्ठान खिलाकर दूध पिलाना चाहिए।
भैरव की पूजा में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ करना चाहिए।
भैरव की प्रसन्नता के लिए श्री बटुक भैरव मूल मंत्र का पाठ करना शुभ होता है।
मूल मंत्र- 'ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं'।
श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।
क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है।
श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप 'काल भैरव' के नाम से विख्यात हैं।
दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें "आमर्दक" कहा गया है।
शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है।
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
सनी शर्मा
फेसबुक पेज नाम :-NATH PANTH & SHIV GORAKSH DHAM SATNALI
ब्लागस्पाट :-shivgurugorkahnath.blogpot.com
THANKING YOU .......
रविवार एवं बुधवार को भैरव की उपासना का दिन माना गया है।
कुत्ते को इस दिन मिष्ठान खिलाकर दूध पिलाना चाहिए।
भैरव की पूजा में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ करना चाहिए।
भैरव की प्रसन्नता के लिए श्री बटुक भैरव मूल मंत्र का पाठ करना शुभ होता है।
मूल मंत्र- 'ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं'।
श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।
क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है।
श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप 'काल भैरव' के नाम से विख्यात हैं।
दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें "आमर्दक" कहा गया है।
शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है।
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
सनी शर्मा
फेसबुक पेज नाम :-NATH PANTH & SHIV GORAKSH DHAM SATNALI
ब्लागस्पाट :-shivgurugorkahnath.blogpot.com
THANKING YOU .......